ऐतिहासिक धरोहर है गगहा का सूर्य मंदिर,सीधे मूर्ति पर पड़ती है सूर्य की किरणें.

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गुप्त वंश काल में हुई थी मूर्ति स्थापना, नहीं करता कोई रात्रि विश्राम

धर्मसेन शिवमंदिर नाम से भी जानते है लोग

भौगोलिक दृष्टिकोण से गगहा का सबसे ऊंचा स्थान

सावन माह में जलाभिषेक के लिये सोमवार व शुक्रवार को लगती है भारी भीड़

गोरखपुर जनपद से करीब 41 किलोमीटर दक्षिण राजमार्ग 29 (गोरखपुर-वाराणसी) पर स्थित बाबा शक्ति सिंह की तपोभूमि गगहा मे बाबा शक्ति सिंह के वंशज चंद्रवंशी क्षत्रिय लोग निवास करते है। यहां एक प्राचीन सूर्य मंदिर स्थित है। इस मंदिर की क्षेत्र में काफी मान्यता है। इस मंदिर को ज़्यादातर लोग धर्मसेन शिवमंदिर के नाम से भी जानते है। गगहा के दीपक सिंह बताते हैं कि गगहा की भूमि अपने में तमाम गौरवशाली इतिहास को संजोए हुए है। गगहा के राजस्व गांव देवकली (धर्मसेन) में स्थित भगवान सूर्य का ऐतिहासिक मंदिर इसका प्रमाण है।

छठी शताब्दी से है इतिहास: पुरातत्व विशेषज्ञों का कहना है कि इस मंदिर में मौजूद पत्थर के शिलालेखों से ये बात पता चलती है कि छठी शताब्दी गुप्त वंश साम्राज्य के शासन काल में ये मंदिर बनवाया गया था। और 600 ईसा में भगवान सूर्य की मूर्ति यहां स्थापित की गयी थी। उसी समय से इस गांव में वैदिक सूर्यवंशी शाकल द्वीपीय ब्रह्मण भी निवास करते है। जो इस मंदिर का देखरेख करने के लिये बुलाये गये हैं। मंदिर का प्रांगण एक एकड़ क्षेत्र में फैला हुआ है। जिसमे मनौती पूरी होने पर श्रद्धालुओं द्वारा बनवाई गयी अन्य मंदिरों की श्रृंखला भी मौजूद है।

यहां भगवान सूर्य की (नर-नारी रूप) दो प्रमुख प्राचीन मूर्ति बजरंगबली के साथ विराजमान है, इनके अलावा मनौती पूरी होने पर जनसहयोग से लोगों ने भगवान शंकर, गणेश और हनुमान जी के साथ अम्बिका के रूप में देवी दुर्गा की प्रतिमा भी स्थापित की हुई है।

मंदिर की विशेषता: सूर्य राज मंदिर को खास इस तरह से बनाया गया है। कि प्रातः की सूर्य की किरणें सीधे मूर्ति पर पड़ती है। इस मंदिर में कोई भी रात्रि विश्राम नहीं करता। मंदिर के समीप तारावती नदी बहती थी, जिसका प्रमाण तारा तालाब आज भी यहाँ मौजूद है। ऊपर से देखने पर नदी का बहाव का भौगोलिक निशान आज भी प्रतीत होता है। इस ऐतिहासिक सूर्य मंदिर में भगवान सूर्य की पूजा लड्डू व जनेऊ, पुष्प, धूप, दीप आदि से की जाती है। वर्षों से यहाँ पर सावन माह में श्रद्धालु जलाभिषेक करते है, तथा महाशिवरात्रि पर दिन में इस मंदिर परिसर में भव्य मेला लगता है। और रात्रि में मंदिर से कुछ दूर गांव में धनुषयज्ञ होता है। मंदिर परिसर से अत्यंत विषैले सर्प आये दिन निकलते दिखाई पड़ते है, किंतु वे किसी को भी क्षति नहीं पहुचते है।

ऐतिहासिक मंदिर: देवकली गांव में स्थित सूर्यराज मंदिर एक महत्वपूर्ण धार्मिक और ऐतिहासिक स्थान है, जिसे भारत सरकार के पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा गोरखपुर जिले के सूर्य मंदिर की मान्यता प्राप्त है। यह सूर्य मंदिर गगहा प्रखंड के देवकली (धर्मसेन) में स्थित है। यह गोरखपुर जिला मुख्यालय से करीब 41 किमी की दूरी पर है। जिसे स्थानीय लोगों द्वारा पुनर्निर्मित किया गया है। यह सूर्यदेव के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है जिसका ऐतिहासिक महत्‍व भी है।

भौगोलिक दृष्टिकोण: यह मंदिर एक ऊंचे टीले पर स्थित है, जो भौगोलिक दृष्टिकोण से गगहा का सबसे ऊंचा स्थान है।

वर्तमान में मंदिर की हालत खस्ताहाल: मंदिर का परकोटा पुराने चूने व पुराने पतले ईंट का बना होने से जर्जर व कमजोर हो गया है, शिखर की परतें उखड़ रही हैं। मंदिर की नींवें कमजोर हो गयीं हैं। परिक्रमा में मंदिर का पिछला हिस्सा क्षतिग्रस्त होने से कठिनाई उत्पन्न हो रही है, यहाँ की जमीन दरकने लगी है। इस ऐतिहासिक धरोहर को सुरक्षित रखने की जरूरत है।

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