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हरदोई। शिव सत्संग मण्डल के योग विशेषज्ञ एवं दार्शनिक परामर्शदाता डॉ संदीप कुमार चौरसिया के अनुसार
सिजोफ्रेनिया एक गंभीर मानसिक बीमारी है। ये बीमारी ज्यादातर बचपन में या फिर किशोरावस्था में होती है। सिजोफ्रेनिया के मरीज को ज्यादातर भ्रम और डरावने साए दिखने की शिकायत होती है। कई अन्य समस्याएं भी इस बीमारी के मरीज को हो सकती हैं। सिजोफ्रेनिया का मरीज बहुत आसानी से जिंदगी से निराश हो सकता है। और कई बार तो मरीज को आत्महत्या करने की भी प्रबल इच्छा होती है। पूरी दुनिया की करीब 1 फीसदी आबादी सिजोफ्रेनिया की शिकार है। जबकि भारत में इस बीमारी के मरीजों की संख्या करीब 40 लाख के आसपास है। इस लेख में आपको सिजोफ्रेनिया क्या है, सिजोफ्रेनिया के कारण, लक्षण और सिजोफ्रेनिया के योगिक उपचार हेतु योग प्रोटोकॉल के बारे में जानकारी प्रस्तुत कर रहा हूँ l
सिजोफ्रेनिया से खतरा
सिजोफ्रेनिया को मानसिक बीमारियों में सबसे खतरनाक माना जाता है। सिजोफ्रेनिया का अगर सही इलाज न किया जाए तो करीब 25 फीसदी मरीजों के आत्महत्या करने का खतरा होता है। भारत में विभिन्न डिग्री के सिजोफ्रेनिया से लगभग 40 लाख लोग पीड़ित हैं। सिजोफ्रेनिया का इलाज न करवा पाने वाले करीब 90 प्रतिशत रोगी भारत जैसे विकासशील देशों में हैं। अगर बात पूरी दुनिया की करें तो दुनिया भर में सिजोफ्रेनिया के करीब ढाई करोड़ मरीज हैं। सिजोफ्रेनिया के आंकड़ों की बात करें तो प्रति 1000 व्यस्कों में से ये बीमारी 10 लोगों को हो सकती है। इस बीमारी के आम शिकार ज्यादातर 16-45 आयु वर्ग के लोग होते हैं।
सिजोफ्रेनिया की बीमारी ज्यादातर लोगों को 16 से 30 की उम्र के बीच में होती है। पुरुषों को ये बीमारी महिलाओं से कम उम्र में हो सकती है। ज्यादातर मामलों में मरीज को इस बीमारी की चपेट में आने के बारे में पता ही नहीं चल पाता है। हालांकि कुछ मामलों में मरीज सिजोफ्रेनिया का शिकार होने के तुरंत बाद ही इसके दलदल में और गहरे धंसता चला जाता है। सिजोफ्रेनिया के मरीज को साए दिखने या फिर किसी के होने का आभास होने की समस्या हो सकती है। सिजोफ्रेनिया के ज्यादातर मरीज दूसरों पर निर्भर हो जाते हैं क्योंकि न तो वह अपनी देखभाल कर पाते हैं और न ही नौकरी जैसे काम कर पाते हैं।सिजोफ्रेनिया के बहुत से मरीज इलाज का विरोध भी करते हैं, वह इस बात को मानने के लिए भी तैयार नहीं होते हैं कि उन्हें कोई समस्या है। कुछ मरीजों में इसके लक्षण साफ तौर पर दिखते हैं जबकि दूसरे मरीजों को देखकर कोई अनुमान नहीं लगाया जा सकता है। लेकिन उनसे बातचीत करने पर पर इस बात का पता चल जाता है कि वह वाकई क्या सोचते हैं। सिजोफ्रेनिया के लक्षण और संकेत हर मरीज में अलग तरह के हो सकते हैं।
सिजोफ्रेनिया की श्रेणियां: सिजोफ्रेनिया के लक्षणों को मुख्य रूप से चार कैटेगरी में बांटा जा सकता है।
1. सकारात्मक लक्षण: ऐसे लक्षणों को मानसिक लक्षण के नाम से भी जाना जाता है। जैसे, किसी के होने का भ्रम होना या फिर डरावने साए दिखना।
2. नकारात्मक लक्षण: इन लक्षणों को पहचानने के लिए विशेषज्ञ डॉक्टर की मदद लेनी पड़ती है। ये लक्षण ज्यादातर मनुष्य को खुद से ही दूर ले जाते हैं। इन लक्षणों के चरम पर पहुंचने के बाद मरीज के चेहरे पर किसी भी तरह के एक्सप्रेशन नहीं आते हैं। इसके अलावा इंसान अपनी जिंदगी में भी हताश और नाउम्मीद हो जाता है।
3. संज्ञानात्मक लक्षण:ये लक्षण मरीज की सोचने-समझने की क्षमता के प्रभावित होने से समझे जाते हैं। मरीज की सोच बेहद सकारात्मक या फिर बेहद नकारात्मक हो सकती है। इस लक्षण वाले मरीज ज्यादा देर तक किसी एक चीज पर ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते हैं।
4. भावनात्मक लक्षण: ये ज्यादातर नकारात्मक लक्षण होते हैं, जैसे भावनाओं का मर जाना। यानी कि इस बीमारी में मरीज को न तो सुख महसूस होता है न ही दुख की अनुभूति होती है।
सिजोफ्रेनिया के लक्षण :
सिजोफ्रेनिया के प्रमुख लक्षण इस प्रकार हैं।
1. भ्रम मरीज को गलत यकीन होने लगते हैं। इस यकीन के कई रूप हो सकते हैं जैसे खुद को सताए जाने का भ्रम या फिर खुद के अमीर/ ताकतवर होने का भ्रम मरीज को ये भी महसूस हो सकता है कि दूसरे उन्हें अपने इशारों पर नचाने की कोशिश कर रहे हैं। या, फिर उन्हें ये एहसास भी हो सकता है कि उनमें दैवीय शक्तियां हैं। कुछ मामलों में सिजोफ्रेनिया के मरीजों को विभिन्न पर्सनैलिटी डिसऑर्डर का शिकार होते भी देखा गया है। इन डिसऑर्डर में मुख्य रूप से बॉर्डर लाइन पर्सनैलिटी या हिस्ट्रीऑनिक पर्सनैलिटी के लक्षण दिखना बेहद आम है।
2. माया :सिजोफ्रेनिया के मरीज को अजीब सी आवाजें सुनाई देती हैं। उन्हें ऐसी चीजें दिखाई और महसूस होती हैं जो असल में होती ही नहीं हैं। इसके अलावा कई मामलों में उन्हें चीजों का स्वाद और खुशबू महसूस होने की शिकायत होती है जो वहां होती ही नहीं हैं। हालांकि, मनोचिकित्सकों के पास सिजोफ्रेनिया के मरीजों को होने वाले विचित्र अनुभवों की लंबी लिस्ट होती है। माया वाले मरीज के साथ सबसे बड़ी समस्या ये होती है कि, वो ये मानने को ही तैयार नहीं होता है कि, जो वो देख या सुन रहा है वो असल में नहीं है। उसे लगता है कि, लोग जबरन उसे गलत ठहराने की कोशिश कर रहे हैं। क्योंकि वो तो सामने खड़ी अवास्तविक चीज को भी देख या सुन रहा होता है।
3. सोचने में विकार: सिजोफ्रेनिया के मरीज की सोचने की क्षमता भी इस बीमारी के कारण प्रभावित होती है। हो सकता है कि मरीज बातचीत करते हुए बिना किसी लॉजिकल कारण के किसी दूसरे विषय पर बात करना शुरू कर दे। कई बार ये परिवर्तन इतने ज्यादा होते हैं कि सुनने वाला बुरी तरह खीझ जाता है।
सिजोफ्रेनिया के अन्य लक्षण :
सिजोफ्रेनिया के मरीज में कुछ अन्य लक्षण भी मिल सकते हैं। जैसे,
1. प्रेरणा की कमी: सिजोफ्रेनिया के मरीज में कुछ भी करने की इच्छा खत्म हो जाती है। मरीज रोजमर्रा के जरूरी काम जैसे, कपड़े धोना और खाना बनाने तक को टालने लगता है।
2. भावनाओं को जाहिर न कर पाना: सिजोफ्रेनिया का मरीज अक्सर खुशी और दुख के फर्क को महसूस नहीं कर पाता है। वह ज्यादातर इन भावनाओं के प्रति उदासीन या तटस्थ बना रहता है।
3. समाज से कटकर रहना: जब सिजोफ्रेनिया का मरीज सामाजिक रूप से खुद को अलग-थलग कर लेता है। उसे अक्सर ऐसा लगता है कि कोई उसे नुकसान पहुंचाना या फिर मार डालना चाहता है। मशहूर फिल्म अभिनेत्री परवीन बाबी को सिजोफ्रेनिया के इसी लक्षण की शिकायत थी।
4. बीमारी से बेखबर रहना: सिजोफ्रेनिया के मरीज को दिखाई देने वाले मायावी दृश्य और भ्रम इतने असली होते हैं कि उसे यकीन ही नहीं होता है कि वह बीमार हैं। वह साइड इफैक्ट्स के डर से दवाएं खाना भी बंद कर देते हैं। उन्हें ये भी डर हो सकता है कि उन्हें दवाओं की जगह पर जहर दिया जा सकता है।
5. संज्ञानात्मक कठिनाइयां: सिजोफ्रेनिया के मरीज की ध्यान केंद्रित करने, चीजों को याद करने, भविष्य की योजना बनाने और जिंदगी को फिर से शुरू करने की क्षमता कम होते-होते खत्म हो जाती है। बीमारी के चरम पर मरीज को दूसरों से बात करने में भी समस्या होती है
सिजोफ्रेनिया होने के कारण
विशेषज्ञ मानते हैं कि किसी भी इंसान को सिजोफ्रेनिया होने की कई वजहें हो सकती हैं। कई रिसर्च में ऐसा पाया गया है कि कई बार जेनेटिक और पर्यावरणीय कारण मिलकर इंसान को सिजोफ्रेनिक बना देते हैं। ये स्थिति भी कई बार परिस्थितियों पर निर्भर करती है, लेकिन पर्यावरण अगर इसे प्रभावित करे तो ये समस्या कई गुना तेजी से इंसान को चपेट में ले सकती है। अब हम आपको कुछ ऐसे प्रमुख कारणों के बारे में बताएंगे, जिन्हें विशेषज्ञ सिजोफ्रेनिया होने की मुख्य वजह मानते हैं। जैसे
1. वंशानुगत कारणों से अगर आपके परिवार के किसी सदस्य को कभी भी सिजोफ्रेनिया की शिकायत नहीं रही है तो किसी सामान्य इंसान को ये बीमारी होने की संभावना 1 फीसदी से भी कम होती है। हालांकि अगर किसी के माता-पिता को ये बीमारी हो जाए तो संतान को सिजोफ्रेनिया होने का खतरा 10 फीसदी तक बढ़ जाता है।
2. दिमाग में कैमिकल असंतुलन की वजह से विशेषज्ञ मानते हैं कि दिमाग में एक न्यूरो ट्रांसमीटर पाया जाता है, जिसे डोपामाइन कहा जाता है। अगर डोपामाइन में असंतुलन आ जाए तो सिजोफ्रेनिया हो सकता है। अन्य न्यूरोट्रांसमीटर जैसे सेरोटोनिन को भी इसमें शामिल किया जा सकता है।
3. पारिवारिक रिश्तों की वजह से अभी तक ऐसा कोई साक्ष्य नहीं पाया गया है जिससे ये पता किया जा सके कि किसी को पारिवारिक रिश्तों के कारण सिजोफ्रेनिया हुआ हो। हालांकि, कुछ मरीजों ने जरूर ये बताया है कि परिवार में टेंशन के कारण उनकी समस्या और बढ़ जाती है।
4. पर्यावरणीय कारण यद्यपि इसका भी कोई सीधा सबूत विशेषज्ञों को नहीं मिला है। लेकिन कई विशेषज्ञों का मानना है कि बच्चे के जन्म से पहले अगर मां तनाव में रहे या फिर उसे कोई वायरल इंफेक्शन हुआ हो, तो बच्चे में सिजोफ्रेनिया होने के चांस बढ़ जाते हैंं। लेकिन इस फैक्ट पर विशेषज्ञों में मतभेद हैं और इस पर रिसर्च चल रही है।
5. तनावपूर्ण अनुभव कई बार तनाव भरे अनुभवों के कारण भी सिजोफ्रेनिया के लक्षण प्रकट हो सकते हैं। असल में ज्यादातर मामलों में सिजोफ्रेनिया के असली लक्षण प्रकट होने से पहले लोगों में बुरा व्यवहार करने, बेचैनी और ध्यान न केंद्रित कर पाने की समस्याएं होने लगती हैं। इसकी वजह से इंसान की जिंदगी में अन्य समस्याएं जैसे रिलेशनशिप प्रॉब्लम, तलाक और बेरोजगारी जैसी दिक्कतें होने लगती हैं।
6. ड्रग्स के सेवन से कई बार नशीले पदार्थों का सेवन करने की वजह से भी इंसान को सिजोफ्रेनिया हो सकता है। इन ड्रग्स में मरिजुआना और एलएसडी का नशा करने वालों को सिजोफ्रेनिया होने का खतरा सबसे ज्यादा होता है।
इसके अलावा ऐसे लोग जो सिजोफ्रेनिया का इलाज करवा रहे हैं या फिर किसी अन्य मानसिक बीमारी से परेशान हैं। वह अगर गांजे का सेवन करते हैं तो सिजोफ्रेनिया की बीमारी उन्हें अपनी चपेट में ले सकती है। कुछ रिसर्चर मानते हैं कि कुछ दवाओं जैसे स्टेरॉयड और स्टिमुलेंट्स के सेवन से भी ये मानसिक बीमारी हो सकती है।
सिजोफ्रेनिया का योगिक उपचार
इस दुनिया में कोई भी बीमारी लाइलाज नहीं है। जरुरत है तो सिर्फ मरीज की इच्छाशक्ति और सही इलाज की। सिजोफ्रेनिया की बीमारी का भी इलाज संभव है। मनोवैज्ञानिक इस बीमारी के इलाज के लिए काउंसलिंग, साइकोथेरेपी और थेरेपी सेशन की मदद लेते हैं। साइकोलॉजिकल काउंसलिंग से सिजोफ्रेनिया के लक्षणों को ठीक करने में मदद मिलती है। योग विशेषज्ञ योग अभ्यासक्रम के अनुसार योगाभ्यास करवाकर 3 से 6 माह में पूरी तरह से प्रबंन्धन करने में सफल होते हैl
सिजोफ्रेनिया के प्रबंधन हेतु योगाभ्यास क्रम (योग प्रोटोकॉल)
1- तीन बार ओम् का उच्चारण फिर गायत्री मंत्र, समय 3 मिनट
2- योगिक सूक्ष्म व्यायाम, समय 12 मिनट
इसके अंतर्गत हाथ संबंधित क्रियाएं, कंधे संबंधित क्रियाएं, ग्रीवा संबंधित क्रियाएं और कमर संबंधित क्रियाएं (नोट- यह क्रियाएं बैठकर करने में अति उत्तम हैं)
3- योगासन समय 15 मिनट
इसके अंतर्गत बैठ के किए जाने वाले आसन – भद्रासन, पश्चिमोत्तानासन, शशकासन, अर्ध-मत्स्येंद्रासन।
खड़े होकर किए जाने वाले आसन- ताड़ासन, त्रियक ताड़ासन अर्ध चक्रासन कटिचक्रासन, त्रिकोणासन।
लेट कर पीठ के बल की जाने वाले आसन- मत्स्यासन, नौकासन, शवासन और लेटकर पेट के बल किए जाने वाले आसन- भुजंगासन ,उत्तानपादासन, मकरासन हैl
4 – कपालभाति 12 मिनट के 3 राउंड, समय 3 मिनट
5 -प्राणायाम, समय 10 मिनट
इसके अंतर्गत नाड़ी शोधन प्राणायाम के सभी चरण, शीतली प्राणायाम, शीतकारी प्राणायाम भस्त्रिका प्राणायाम का अभ्यास किया जाता है।
6- शांति पाठ, समय 2 मिनट
उपरोक्त प्रोटोकॉल योग चिकित्सक के निर्देश में 45 मिनट प्रतिदिन 7 दिनों तक किए जाने के लिए है फिर मरीज में उत्पन्न होने वाले परिवर्तन को देखकर ही आदि का प्रोटोकॉल 3 से 6 महीने तक कराया जाएगाl
नोट- सिजोफ्रेनिया के मरीजों को ध्यान का अभ्यास वर्जित है।