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शोधार्थी ने तार्किक प्रत्यक्षवाद के केंद्रीय तत्व, सत्यापन सिद्धांत, पर विस्तार से चर्चा की
ब्यूरो चीफ आर एल पाण्डेय
लखनऊ। लखनऊ विश्वविद्यालय के दर्शनशास्त्र विभाग द्वारा दिनांक 07/09/2024 को सैटरडे सेमिनार श्रृंखला के अंतर्गत एक महत्वपूर्ण व्याख्यान आयोजित किया गया। इस व्याख्यान का आयोजन विभागाध्यक्षा डॉ. रजनी श्रीवास्तव के संयोजन में किया गया । व्याख्यान प्रस्तुतकर्ता विभाग के शोधार्थी सौरभ थे, जिन्होंने “सत्यापन सिद्धांत” पर अपने विचार साझा किए।
शोधार्थी ने तार्किक प्रत्यक्षवाद के केंद्रीय तत्व, सत्यापन सिद्धांत, पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने बताया कि यह सिद्धांत कहता है कि कोई कथन तभी सार्थक होता है जब उसे अनुभवात्मक रूप से सत्यापित किया जा सके या वह विश्लेषणात्मक रूप से सत्य हो। उन्होंने वियना मंडल और ए.जे. आयर के योगदान की चर्चा की, जिनके अनुसार अनुभव से सत्यापित न किए जा सकने वाले धर्म और नैतिकता जैसे विषय निरर्थक हैं।
इसके अलावा, उन्होंने कार्ल पॉपर की आलोचनाओं पर भी प्रकाश डाला, जिन्होंने सत्यापन सिद्धांत के कठोर मापदंडों पर सवाल उठाया और खंडनीयता के सिद्धांत को पेश किया। पॉपर के अनुसार, वैज्ञानिक सिद्धांतों को सत्यापित करने की बजाय, उन्हें खंडनीय होना चाहिए, ताकि उन्हें अनुभव के आधार पर गलत साबित किया जा सके।
व्याख्यान के अंत में विभाग की अध्यक्ष डॉ. रजनी श्रीवास्तव ने व्याख्याता के विचारों का सार प्रस्तुत किया और व्याख्यान को संक्षिप्त किया। इस आयोजन में दर्शनशास्त्र विभाग के कई प्राध्यापक और छात्र उपस्थित रहे, जिनमें डॉ. प्रशांत शुक्ला और डॉ. राजेंद्र वर्मा ,डॉ ममता सिंह प्रमुख रहे। व्याख्यान की कोऑर्डिनेटर विभाग की शोध छात्र निशी कुमारी रही।