कितनी अच्छी है ये किताब कहे तो सभी ने खूब तारीफ की

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कितनी अच्छी है ये किताब कहे तो सभी ने खूब तारीफ की

ब्यूरो चीफ आर एल पाण्डेय

लखनऊ। साहित्यकार संसद एवं नमन प्रकाशन लखनऊ के संयुक्त तत्वावधान में “सम्मान समारोह” एवं “गज़लों की एक शाम ‘अधीर’ जी के नाम”
कार्यक्रम की अध्यक्षता श्री भोलानाथ ‘अधीर जी ने की। जिसके तहत देश के जाने माने शायरात / शायरो ने अपने-अपने कलाम पेश किये।

कार्यक्रम की शुरूआत डॉ. शोभा दीक्षित ‘भावना जी ने अपनी वाणी वन्दना की गज़ल, “पहले तेरा ही नाम लिखती हूँ माँ तुझे मैं प्रणाम लिखती हूँ, तेरी वीणा के गूँजते हैं स्वर/ छन्द उनपे ललाम लिखती हूँ” से की तो सभी वाह-वाह कर उठे। कार्यक्रम में लखनऊ की मशहूर शायरा रचना मिश्रा जी ने ग़ज़ल “हम अँधेरों से निकलकर रौशनी बन जायेंगे/मौत लेने आ गयी तो जिन्दगी बन जायेंगे” पढ़कर सभी को प्रसन्न कर दिया। उस्ताद शायर रामप्रकाश ‘बेखुद’ साहब ने गज़ल “हर तरफ जाले थे बिल थे घोसलें छप्पर में थे/जाने कितने घर हमारे एक कच्चे घर में थे’ का पाठ किया और भरपूर तालियां बटोरीं। गोरखपुर से तशरीफ लाये उस्ताद सरवत जमाल साहब जब पढ़ा “जो मेरे हाथ में माचिस की तीलियां होती / फिर अपने शहर में क्या इतनी झाड़ियां होती” तो पूरा पंडाल तालियों से गूंज उठा। मनीष शुक्ल ने ग़ज़ल “अब हमारे बीच दरवाज़ा नहीं दीवार है/ और कोई दीवार दस्तक से कभी खुलती नहीं” सुनाकर अपनी शायरी की धाक जमायी। बारांबकी से तशरीफ लाये डा. फिदा हुसैन साहब ने अपनी ग़ज़ल का शेर “बचा ने कोई भी इन्सान अपनी बस्ती में / सभी को हिन्दू मुसलमान कर गया कोई जब पढ़ा तो हर कोई उनकी गंगा जमुनी तहजीब की प्रशंसा करता दिखा। हमारे लखनऊ के मशहूर शायर चन्द्र शेखर वर्मा जी ने उपस्थित जन समूह का मन इस शेर से मोह लिया “कुर्सी पर तो बैठ के तुम अच्छे लगते हो/ नीचे उतरो फिर देखें कैसे लगते हो”। शहर के लाडले शायर फारूक आदिल ने तरन्नुम से जब पढ़ा “खुदकशी हरगिज़ न करना चाहिये / ज़िन्दगी से लड़ के मरना चाहये” तो हर कोई झूमता नज़र आया। मशहूर हास्य कवि अरविन्द झा ने अपनी हज़ल “होठ पर है तिल मेरे और उनके बायें गाल पर /बात कुछ ऐसी हुई हम तिलमिला कर आ गये” सुनाई तो पंडाल खिलखिला उठा। संजय मल्होत्रा ‘हमनवा’ ने जब अपनी गज़ल का शेर पढ़ा “मेरी गज़लों को पढ़ के तू भी कभी / कितनी अच्छी है ये किताब कहे तो सभी खूब तारीफ की। नवीन शुक्ल ‘नवीन’ ने जब ग़ज़ल “हमारी महफिलों में लोग सबसे खुल के मिलते है/ अना महफूज रखना या बचाना हो तो मत आना’ का शेर पढ़ा तो सभी तालियां बजाने पर मजबूर हो गये। अधीर जी जो एक हास्य कवि के रूप में जाने जाते हैं, अपने अध्यक्षीय उ‌द्बोधन के साथ अपनी ग़ज़ल “पल्यूशन है सफोकेशन नहीं है / अभी खतरे की सिचुयेशन नहीं है” सुनाई और सभी को अपनी गंभीर शायरी के फन से भी परिचित कराया। संचालन नवीन शुक्ल ‘नवीन’ ने किया और धन्यवाद ज्ञापन संस्था के उपाध्यक्ष मुनेन्द्र शुक्ल जी ने कर कार्यक्रम का समा किया।

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