कृषि विश्वविद्यालय ने विकसित की रोग रोधी एवं प्रदेश के अनुकूल प्रजातियां

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मिल्कीपुर-अयोध्या। विकसित प्रजातियों से बढ़ेगा किसानों का आय एवं उत्पादन ,
विकसित प्रजातियों से किसानों में खुशी की लहर ।
आचार्य नरेंद्र देव कृषि विश्वविद्यालय ने धान ,गेहूं, चना व मटर की विशेष प्रकार की प्रजातियों को विकसित कर इतिहास रचा है। यही नहीं इन प्रजातियों के विकसित होने से किसानों में भी खुशी की लहर दौड़ गई है। विकसित की जाने वाली प्रजातियों में धान की एन.डी.जी.आर.-702 (जल भवानी), गेहूं की एन.डब्ल्यू.- 6046, चना की नरेंद्र चना- 1 व मटर की नरेन्द्र मटर -1 शामिल है। इन प्रजातियों की अपनी एक अलग पहचान है। इन प्रजातियों को विकसित करने का मुख्य उद्देश्य यह भी है कि किसान भाई कम समय व कम लागत में अच्छी पैदावार ले सके, जिससे की उनको भी आर्थिक तौर पर फसल की पैदावार का ज्यादा से ज्यादा लाभ मिल सके।
इन प्रजातियों की पूरे प्रदेश में पैदावार हेतु राज्य बीज विमोचन समिति लखनऊ द्वारा विमोचित की गई है, जिससे कि हमारे प्रदेश के सभी किसान भाई इसका भरपूर तरीके से लाभ उठा सकें । और कम लागत में अच्छी पैदावार को बढ़ावा दे सकें, वहीं दूसरी तरफ विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ बिजेंद्र सिंह ने प्रसन्नता व्यक्त की एवं वैज्ञानिकों को बधाई देते हुए कहा कि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित प्रजातियां रोग रोधी एवं प्रदेश के अनुकूल विकसित की गई है ।
विश्वविद्यालय के मीडिया प्रभारी डॉ अखिलेश कुमार सिंह ने बताया कि कृषि विश्वविद्यालय ने जिन प्रजातियों को विकसित किया है, उनकी विशेषताएं इस प्रकार हैं-
1. धान की एन.डी.जी.आर.- 702 (जल भवानी) – इस प्रजाति को विकसित करने वाले वैज्ञानिक डाँ नितेंद्र प्रकाश बताते हैं कि यह गहरे पानी (70-120 cm) या जलभराव वाले क्षेत्रों के लिए विकसित की गई है। इसमें जलस्तर बढ़ने के साथ – साथ पौधों में भी तेजी से बढने की क्षमता पाई गई है। इसकी पैदावार 35 से 40 कुंतल प्रति हेक्टेयर की है , यह प्रजाति नेक ब्लास्ट तथा तना छेदक के प्रति मध्यम अवरोधी है। यह फसल 140 से 145 दिन के अंदर पक कर पूरी तरह से तैयार भी हो जाती है । जो कि सामान्य बीजों की तुलना में बहुत अलग है और इसके अपने अलग-अलग फायदे भी हैं.
2. गेहूं एन.डब्ल्यू .-6046 – इस प्रजाति को विकसित करने वाले वैज्ञानिक डॉ विनोद सिंह बताते हैं कि इस बीज की खास बात यह है कि इस प्रजाति की फसल मे पकने के बाद भी दाने नहीं झड़ते हैं तथा पौधे गिरते नहीं हैं।साथ ही उन्होंने बताया कि यह फसल रतुआ एवं पर्ण झुलसा जैसे रोग के प्रति अवरोधी है। बिना पानी के भी इस फसल की पैदावार ली जा सकती है। बिना सिंचाई किए इस फसल से 21 से 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज प्राप्त की जा सकती है, और मात्र एक सिंचाई के इस फसल की पैदावार में 25 से 30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की वृद्धि दर्ज की जा सकती है। इस फसल के पकने की अवधि ( मध्यम )125 से 127 दिन की है। इसके पौधों की ऊंचाई 95 से 97 सेंटीमीटर की होती है और इस के दाने का रंग अंबर होता है।
3 .चना नरेंद्र -1 – चना के इस प्रजाति को विकसित करने वाले डॉ शिवनाथ ने बताया कि यह एक देसी चने की प्रजाति है, जिस के दाने चिकने एवं अपेक्षाकृत 100 दाने (25.5ग्राम) बड़े होते हैं। इसके पकने की अवधि 135 से 140 दिन की है इस प्रजाति की उत्पादन क्षमता 25 से 30 कुंटल प्रति हेक्टेयर की है। यही नहीं इस प्रजाति की खास बात यह है कि यह विभिन्न रोगों जैसे उकढा, ड्राई रूट राट तथा एस्कोकाइटा ब्लाइट एवं फली बेधक जैसे कीटों से लड़ने की क्षमता रखते हैं ।
4.मटर नरेंद्र-1- मटर की इस प्रजाति को विकसित करने वाले वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ एम पी चौहान ने बताया कि यह एक मध्यम लंबाई (68 सेमी.) एवं क्रीमी सफेद तथा बड़े दाने की प्रजाति है। इस प्रजाति के पकने की अवधि मात्र 115 से 118 दिन की है। साथ ही डाँ चौहान ने बताया कि इसकी उत्पादन क्षमता 20 से 25 कुंटल प्रति हेक्टेयर की है। यह प्रजाति पाउड्री मिल्ड्यू व रस्ट रोगों से पूरी तरह से लड़ने में सक्षम है।
विश्वविद्यालय के उप निदेशक शोध , डॉ शंभू प्रसाद गुप्ता, सहायक निदेशक शोध, डॉ रविंदर सिंह, डॉ वेद प्रकाश , डॉ मनोज सिंह एवं डॉ विजय किशोर आदि ने प्रसन्नता व्यक्त करते हुए संबंधित वैज्ञानिकों को बधाई दी।

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