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विकसित भारत @ 2047 और भारतीय भाषाएँ विषय पर एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी

“विकसित भारत ना केवल आर्थिक, बल्कि सांस्कृतिक और मानव मूल्यों के आधार पर भी विकसित हो- कपिल खन्ना

सत्यवती महाविद्यालय (सांध्य) एवं भारतीय भाषा समिति, दिल्ली विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में “विकसित भारत @ 2047 और भारतीय भाषाएँ ” विषय पर एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का सफल आयोजन सत्यवती महाविद्यालय (सांध्य) में हुआ।

चार सत्रों में आयोजित इस राष्ट्रीय संगोष्ठी के अंतिम सत्र के मुख्य अतिथि व भारत विकास परिषद के राष्ट्रीय संगठन मंत्री सुरेश जैन जी ने कहा कि ” भारत को विकसित करने के लिए भाषाएं बाधा नहीं है, बाधा है भाषा आधारित राजनीति। भाषा तो हृदय का पक्ष है, भावों का उदगार है। वहीं भारतीय भाषाएँ हमारे राष्ट्रीय चेतना का प्रमाण हैं। इसके प्रसारण में सभी भारतीय भाषाएं सक्षम हैं। आवश्यक है हम अपनी भाषा में अपने छात्रों के समक्ष भारत की अवधारणा, वर्तमान स्थिति आदि को रखें और उनके साथ मिलकर वर्तमान की राजनैतिक चुनौतियों को समझते हुए समाधान की तलाश करें।

उद्घाटन सत्र के मुख्य अतिथि एवं विश्व हिंदू परिषद, दिल्ली प्रांत के अध्यक्ष कपिल खन्ना ने विकसित भारत की अवधारणा को समझने के लिए भारतीयता की अवधारणा को समझने पर बल दिया। उन्होंने कहा कि भारत प्राचीन काल से ही विकसित रहा है, ना सिर्फ आर्थिक, बल्कि सांस्कृतिक और मानव मूल्यों के आधार पर भी। हमें पुनः उसी वैभवशाली समाज जिसका आध्यात्मिक चेतना भी उसी स्वाभिमान से जागृत हो उसे जानना समझना होगा।

दिल्ली विश्वविद्यालय के अधिष्ठाता, योजना तथा अध्यक्ष, भारतीय भाषा समिति, प्रो. निरंजन कुमार ने कहा कि मानव मूल्यों के विकास से युक्त विकास ही असली विकास है। उन्होंने बताया कि किस प्रकार भारतीय भाषाएं वैज्ञानिक चेतना के प्रसार में सहायक रही हैं। दुनिया के सभी विकसित देश अपनी भाषा का प्रयोग करते हैं, वहीं आर्थिक दृष्टि से पिछड़े लगभग सभी देश आज भी उपनिवेशकालीन भाषाओं का ही प्रयोग करते हैं।

कार्यक्रम संयोजक व सत्यवती महाविद्यालय (सांध्य) के प्राचार्य, प्रो. हरिमोहन शर्मा जी ने कहा कि विकसित भारत @2047 का रास्ता वर्तमान युवा पीढ़ी का लक्ष्य हो, जिसमें आर्थिक दृष्टि के साथ ही सांस्कृतिक और भारत बोध की दृष्टि आवश्यक है।

राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित इस सेमिनार में हिंदी, संस्कृत, तेलुगु, कन्नड़ और उर्दू, बांग्ला के विद्वानों, प्रोफेसरों, प्राचार्यों और शोधार्थियों की भागीदारी रही। वक्ताओं में दूरदर्शन के संपादक अशोक श्रीवास्तव, सभ्यता अध्ययन केंद्र के निदेशक रवि शंकर, जोधपुर के शिक्षाविद प्रणय कुमार, प्रो. अवनिजेश अवस्थी, प्रो. रसाल सिंह, प्रो. मिथुन, प्रो. के. सुधा कुमारी, प्रो. वेंकट रमैया आदि प्रमुख विद्वानों ने अपने विचार रखे। साथ ही बड़ी संख्या में शोधार्थियों ने अपने शोध पत्र वाचन कर विकसित भारत में भारतीय भाषाओं के महत्व को रेखांकित किया।

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