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प्रदेश में चल रहे खून की काली कमाई में ब्लड बैग का अहम रोल होता है। ये बैग सिर्फ लाइसेंसी ब्लड बैंकों को ही मिलता हैं, लेकिन खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन विभाग (एफएसडीए) और ब्लड बैंकों की मिलीभगत से ये दलालों तक पहुंच जाते हैं। दलाल एक यूनिट ब्लड में मिलावट कर उसे दो से तीन यूनिट बना देते हैं।
प्रदेश में कुल 429 ब्लड बैंक हैं। इनमें 109 सरकारी, 112 चैरिटेबल और 208 निजी क्षेत्र के हैं। प्रदेश में करीब 10 कंपनियां ब्लड बैग की आपूर्ति करतीं हैं। सरकारी ब्लड बैंकों में टेंडर प्रक्रिया के तहत ब्लड बैग खरीदे जाते हैं, जबकि निजी ब्लड बैंक थोक विक्रेताओं से लेते हैं। थोक कारोबारियों को भी इसका लाइसेंस लेना होता है। हर बैग पर नंबर लिखा होता है। यह बैग कंपनी से किस ब्लड बैंक तक पहुंचा है, इसका पूरा विवरण दर्ज किया जाता है। एफएसडीए की जिम्मेदारी होती है कि हर माह इसका ऑडिट करे, पर ऐसा होता नहीं है। इसके अलावा कुछ कंपनियां नकली बैग भी तैयार कर लेती हैं। ये लाइसेंसी विक्रेताओं के जरिए निजी ब्लड बैंकों तक पहुंचते हैं। इनके जरिए भी मिलावट का का कारोबार चलता है। फर्जी कंपनियों के बैग पकड़ने की भी जिम्मेदारी एफएसडीए की है।