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ब्यूरो चीफ आर एल पाण्डेय
लखनऊ: राजधानी में मंगलवार को शाम 8:52 मिनट तथा प्रातः 1:57 मिनट पर भूकम्प के झटको ने राजधानी निवासियो को हिलाकर रख दिया और लोग विवस हो गये इसके सोचने के लिये कि इसका क्या कारण है । क्योकि चंद्रग्रहण जो आमावस्या को साय 5:30 से 6:30 पर समाप्त हुआ था, उसी के क्रम में यह भी घटना का होना किसी अनिष्ट का सूचक माना जा रहा है । नेपाल में तो 8- लोगो की मृत्यु तथा मकानो के गिरने से तवाही उत्पन्न हो गई है ।
डॉ भरत राज सिंह, जो एक वरिष्ठ पर्यावरणविद तथा स्कूल आफ मैंनेजमेंन्ट साइंसेज, लखनऊ के महा-निदेशक तकनीकी हैं ने बताया कि हिमालय की सृन्खला के नजदीक है और हिमालय की पहाडियो में जलवायु-परिवर्तन के कारण अनेको घटनाये हो रही हैं उसी कडी में भूकम्प भी एक बडी घटना निरंतर होना स्वाभाविक है । इसके मुख्य कारण उन्होने अपनी गोलबल-वार्मिंग-2012 तथा क्लाइमेट चेंज- 2013 की पुस्तको में, पूर्व में ही कर चुके हैं कि हिमालय ग्लैसियर, उत्तरी व दक्षिणी ध्रुव के ग्लैसियर के बाद विश्व का तीसरा बडा क्षेत्र है । यह भी विगत 2015 के पश्चात से तीजे पिघल रहा है और जिसके कारण अभी तक वर्फ की चट्टाने जिनकी ऊंचाई औसतन 2500-3000 मीटर तक रही है, अब वह मात्र 1000 मीटर से कही- कही कम हो चुकी है जिसके कारण तथा पहाडियो के नीचे की प्लेटे भी अधिक दवाव बना रही हैं । इसके कारण हिमालय की पहाडिया ऊपर उठ रही हैं जिससे भूकम्प की तीब्रता व आने की संख्या में हर वर्ष बढोत्तरी स्वाभाविक है । यहाँ तक की पहाडिया के पत्थरो के आपस के जुडाव में ढीलापन आ रहा है जिससे थोडी सी तूफानी वारिस हो तोभी बडी-बडी चट्टाने टूट रही है तथा ग्लेसियर की चट्टानो के गिरने की निरंतरता बढती जा रही है । इससे पहाडी इलाको का जन-जीवन केदारनाथ की धटना के पश्चात से दूभर होता जा रहा है । इन कारणॉ का उद्धरण डा. सिह ने अपनी पुस्तक गोलबल-वार्मिंग-2015 में भी कर चुके हैं ।
भारत सरकार को इस पर दूर्गामी नीतिगत योजना बनानी होगी, जिससे आने वाले समय में इन प्रकार के आने वाले प्रत्यासित घटनाओ से बचा जा सके ।