नमामि गंगे का सच: बायोरेमेडियल ट्रीटमेंट के बाद भी गंगा में गिर रहा घरों का गंदा पानी

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माघ मेले में संतों-भक्तों को संगम पर डुबकी लगाने के लिए निर्मल गंगा की धारा मिलेगी या नहीं, यह कहना जल्दबाजी होगी। छह जनवरी को प्रथम स्नान पर्व है, लेकिन इससे पहले कई स्नान घाटों पर स्नान योग्य जल नहीं रह गया है। हाईकोर्ट के आदेश के बाद बायोरेमेडियल ट्रीटमेंट के बावजूद झूंसी, नैनी समेत शहर के 60 नालों का गंदा पानी गंगा-यमुना में जा रहा है।

झूंसी के किनारे गंगातट पर आठ नालों से गंदा पानी ट्रिटमेंट कर गंगा में गिराया जा रहा है। हालत यह है कि झूंसी के गंगा घाटों पर पानी स्नान करने लायक भी नहीं रह गया है। इसके साथ ही रसूलाबाद तथा दारागंज घाट पर भी गंगा का जल काला होता जा रहा है। उधर, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अफसरों का दावा है कि नालों से गिरने वाले गंदे पानी को पूरी तरह से ट्रीटमेंट करके ही गंगा में गिराया जा रहा है। प्रयागराज में गंगा की सेहत के पीछे बीओडी (बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड) की मात्रा खतरनाक स्तर पर पहुंचना है। जल निरंतर कम होने से भी गंगा में प्रदूषण की मात्रा बढ़ रही है। घाट के किनारे रहने वाले लोगों का कहना है कि प्रवाह कम होने के साथ ही जल का रंग भी बदल रहा है। रसूलाबाद घाट से पहले राजापुुर एसटीपी से गंदा पानी ट्रीटमेंट करके गंगा में भेजा जाता है। दारागंज घाट पर भी ट्रीटमेंट के बाद ही पानी गंगा में गिराया जा रहा है। कमोवेश यही स्थिति झूंसी के छतनाग घाट पर भी है। लेकिन, यहां रहने वाले लोगों का कहना है कि एसटीपी का पानी जहां भी शोधित होकर गंगा में गिर रहा है, वहीं पर प्रदूषण ज्यादा है। उधर, उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने माघ मेला से पहले गंगा-यमुना में पानी की नियमित जांच शुरू कर दी है। बोर्ड ने बुधवार को भी गंगा और यमुना के जल के नमूनों की जांच की। जांच में झूंसी के पास डाउन स्ट्रीम में गंगा का बीओडी स्तर तीन मिलीग्राम प्रति लीटर मिला है। हालांकि संगम पर गंगा का बीओडी 2.7 मिलीग्राम प्रति लीटर पाया गया है। इसी तरह यमुना का बीओडी लोड 2.8 मिलीग्राम प्रति लीटर है। गंगा का बीओडी तीन मिलीग्राम प्रति लीटर पर होना खतरे की घंटी माना जा रहा है। कहा जा रहा है कि जल निरंतर कम होने से यह नौबत आई है।

महाकुंभ से पहले नालों को बंद करने की योजना
दो साल बाद 2025 में गंगा की रेती पर लगने वाले महाकुंभ की परियोजना में गंगा में बढ़ रहे प्रदूषण के बिंदु को भी शामिल किया गया है। परियोजना में यह तय किया गया है कि महाकुुंभ से पहले सभी 60 नालों को बंद कर दिया जाए। परियोजना में इस बिंदु को प्रमुखता से रखा गया है। क्योंकि प्रयागराज में गंगा की निर्मलता को दूषित करने का सबसे बड़ा कारण यही नाले बने हुए हैं। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड भी शासन की मंशा के अनुरूप कार्य में जुटा हुआ है।

गंगा की निगरानी पहले से बढ़ा दी गई है। अब कोशिश हो रही है कि गंगा का बीओडी और न बढ़े। हालांकि, गंगा-यमुना में डिजॉल्व्ड ऑक्सीजन बेहतर होने से जलीय जीवों को कोई खतरा नहीं है। जांच के जरिए पता लगाया जा रहा है कि प्रदूषण कैसे बढ़ रहा है। सीवेज ट्रीटमेंट प्लांटों की वजह से गंगा में प्रदूषण बढ़ा हुआ दिख रहा है। इसके लिए विशेष तैयारी के साथ कार्य करेंगे। – आरके सिंह, क्षेत्रीय अधिकारी, उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड।

एसटीपी निर्माण समय पर नहीं हुआ तो कैसे साफ होंगी गंगा
नालों के गंदा पानी को गंगा-यमुना में गिरने से रोकने के लिए तीन नए एसटीपी का निर्माण अभी तक पूरा नहीं हो सका है। जल निगम को निर्माण पूरा कराने के लिए दो साल का समय दिया गया था। कोरोना संक्रमण की पाबंदियों के कारण एक साल का अतिरिक्त समय दिया गया, उसके बाद भी एसटीपी निर्माण का कार्य पूरा नहीं हो सका है। ऐसे में गंगा की निर्मलता के दावे की हकीकत को समझा जा सकता है।

झूंसी, नैनी और फाफामऊ में तीन नए एसटीपी निर्माण का कार्य चल रहा है। इसमें नैनी में 42 एमएलडी, झूंसी में 16 और फाफमऊ में 14 एमएलडी के एसटीपी का निर्माण कार्य 2019 में शुरू हुआ था। तीनों एसटीपी का कार्य पूरा करने के लिए दो साल का समय दिया गया था। इस बीच कोरोना महामारी के कारण समय पर कार्य पूरा नहीं हो सका, ऐसे में निर्माण कराने वाली संस्था को एक साल का अतिरिक्त समय देते हुए सितंबर 2022 तक पूरा करना था, लेकिन ऐसा हो नहीं सका।

नमामी गंगे परियोजना के अधीक्षण अभियंता एके सिंह के मुताबिक नैनी में बन रहा 42 एमएलडी के एसटीपी का कार्य पूरा हो गया और उसे नवंबर में शुरू कर दिया गया है। फाफामऊ में बन रहे 14 एमएलडी के एसटीपी निर्माण कार्य लगभग पूरा हो गया है और इसी माह उसे भी शुरू करने की तैयारी है। जहां तक झूंसी में बन रहे एसटीपी की बात है, तो उसका कार्य भी तेजी से चल रहा है। उम्मीद है कि अगले साल मार्च 2023 में उसे भी शुरू कर दिया जाएगा।  अधिकारियों की माने तो तीनों एसटीपी शुरू होने के बाद गंगा और यमुना में नालों का गंदा पानी सीधे नहीं जा सकेगा।

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की टीम ने की गंगा के पानी की जांच
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) की दो टीमों ने गंगा के पानी के नमूने लिए। टीम ने गंगा में प्रदूषण बढ़ने के कारणों की जांच की। सोमवार से केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की चार सदस्यीय टीम प्रयागराज में डेरा डाले थी। लखनऊ से तीन दिवसीय दौरे पर प्रयागराज पहुंची सीपीसीबी की टीम पानी के नमूने लेने के लिए बुधवार को शहर के अलग-अलग हिस्सों में गई। सीपीसीबी की टीम ने चिह्नित नालों के अलावा जांच के लिए गंगाजल के भी नमूने लिए।

मंगलवार को भी सीपीसीबी की टीम ने रसूलाबाद घाट से गंगाजल के नमूने लिए थे। इसके बाद टीम घाट के पास ज्वाला देवी सरस्वती विद्या मंदिर, रसूलाबाद श्मशान घाट के पास जोंधवल का नाला, शंकरघाट नाला, शिवकुटी में चिल्ला नाला, नेहरू पार्क का नाला, फाफामऊ का बसना नाला, राजापुर नाला और लोतेहरन नाले से पानी के नमूने लिए गए। बुधवार को जांच टीम ने नैनी नाला, पोंगहट नाला, राजापुर नाला, सलोरी नाला से सैंपक एकत्र किए। उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्षेत्रीय अधिकारी आरके सिंह ने बताया कि सीपीसीबी की दोनों टीमों द्वारा एकत्र किए गए नमूनों की जांच लखनऊ के लैब में की जाएगी। इसकी रिपोर्ट अगले सप्ताह तक आने की उम्मीद है।

गंगा तट के किनारे करोड़ों की लागत से तैयार हो रही एसटीपी 
झूंसी में गंगातट पर करोड़ों की लागत से सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट तैयार किया जा रहा है। तकरीबन दो साल बाद गंगा की रेती पर लगनेे वाले महाकुंभ से पहले एसटीपी बनकर तैयार हो जाएगा। यहां एसटीपी के कई चैंबर बनकर तैयार हो गए हैं। प्रदूूषण नियंत्रण बोर्ड के क्षेत्रीय अधिकारी आरके सिंह ने बताया कि झूंसी की एसटीपी तैयार होने के बाद यहां के दो दर्जन से ज्यादा गांवों तथा सैकड़ों कालोनियों का गंदा पानी साफ होकर गंगा में गिराया जा सकेगा। अब तक झूंसी की आवासीय कॉलोनियों का पानी बायोरेमेडिकल विधि से शोधित कर गंगा में किराया जा रहा है। इसके साथ ही नैनी और फाफामऊ में भी एसटीपी के जरिये ही गंदा पानी शोधित कर गंगा में गिराया जाएगा।

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