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विनोबा जी के लिए तो कारागृह ही सत्याग्रह का आश्रम बन जाता था: रमेश भइया
ब्यूरो चीफ आर एल पाण्डेय
लखनऊ। विनोबा विचार प्रवाह के सूत्रधार रमेश भैया ने बताया कि आज से सौ साल पहले वर्ष 1923 से 1942 तक बाबा विनोबा की अनेक जेल यात्राएं हुईं। ऋषि विनोबा को हर बार जेल में सच्चे आश्रम जीवन के दर्शन का अनुभव हुआ करता था। विनोबा जी अक्सर कहा करते थे कि जेल में गिनती के कपड़े ,पानी का टमलर (बर्तन ) और एक कटोरा, बस इतना ही सामान। बाबा कहते थे इससे अधिक असंग्रह व्रत का पालन और कहां हो सकता था? दैनिक दिनचर्या में नियमानुसार नहाना,खाना, काम करना,और घंटी की आवाज पर सोना और जागना। एक दम नियमित जीवन! बीमार पड़ने की भी अनुमति नहीं। भोजन में अस्वाद व्रत का पालन तो प्रतिदिन होता ही था। इससे अधिक संयम का पालन हम सब आश्रम में भी कहां कर पाते हैं ? और फिर चिंतन मनन के लिए जेल में भरपूर समय। *जेल भी आश्रम जीवन की साधना का अंग बन सकता है।* बाबा कहते थे कि जेल में सबके साथ रहने का जो मौका मिला, उससे बाबा विनोबा के जीवन को बहुत लाभ हुआ था। पहली बार वर्ष 1923 में नागपुर झंडा सत्याग्रह के सिलसिले में बाबा विनोबा को पकड़ा गया था। उस समय पहले बाबा विनोबा को नागपुर जेल में रखा गया। फिर वहां से अकोला जेल में भेज दिया गया। बाबा विनोबा ने बताया कि उस समय अपराधी लोगों के लिए जो धारा लगाई जाती थी वही बाबा विनोबा पर भी लगाई गई थी। इसलिए बाबा को जेल में पत्थर तोड़ने की सख्त मजदूरी का काम दिया गया था। स्वर्गीय राजगोपालाचारी जी विनोबा जी से मिलने जेल में गए थे और फिर लौटकर उन्होंने एक लेख में लिखा था। कि देवदूत के समान विनोबा की पवित्र आत्मा ,विद्वता,तत्वज्ञान,और धर्म के ऊंचे शिखरों पर विहार करती है।इसके बाबजूद इस आत्मा ने जो विनम्रता धारण कर रखी है, वह इतनी परिपूर्ण है और दिल की सच्चाई इतनी सहज है कि जो अधिकारी विनोबा जी को नहीं पहचानता,उसे तो इनकी महानता का पता तक नहीं चलता। इनको जिस श्रेणी के लिए निश्चित की गई मजदूरी के अनुसार ये बराबर पत्थर तोडते रहते हैं।अंदाज ही नहीं होता कि यह देव तुल्य मनुष्य विनोबा चुपचाप कितनी शारीरिक यातनाएं जेल में सहन कर रहा है।