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गुरु महिमा: गुरु पूर्णिमा पर विशेष कार्यक्रम:आचार्य आर एल पाण्डेय
लखनऊ: ब्यूरो चीफ
सनातन काल से हमारे यहां धर्म शास्त्रों में पूजन – अर्चन की परंपरा रही है।इसी श्रृंखला में आषाढ़ पूर्णिमा गुरु पूर्णिमा के रूप में परंपरारत प्रतिवर्ष मनाई जाती है। शिष्यगण अपने गुरुओं के प्रति बड़े श्रद्धा एवं निष्ठा के साथ अर्चन – बंदन करते हैं।इसीदिन वेदव्यास का जन्म भी हुआ था जिसे व्यास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है।इसी दिन भगवान शंकर ने दक्षिणामूर्ति के रूप में प्रकट होकर ब्रह्मा के मानस पुत्रों को वेदों का ज्ञान प्रदान किया था। गुरु पूर्णिमा के दिन लाखों श्रद्धालु गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करते हैं। गुरु पूर्णिमा के दिन महाभारत के रचयिता वेदव्यास ने वेदों के सार ब्रह्मसूत्र की रचना भी प्रारंभ किया था। ‘ श्रद्धावान लभते ज्ञानम’ श्रद्धावान प्राणी ही उस अमृत तुल्य ज्ञान को प्राप्त कर भवसागर को पार कर सकता है। ‘ सा विद्या या विमुक्तये’ विद्या वही है जो इस संसार सागर से प्राणी को विमुक्त करा सके। शास्त्रों में भगवान से भी गुरु को श्रेष्ठ कहा गया है।’तीन लोक नौ खंड में गुरु ते बड़ा न कोय, कर्ता करै न करि सके गुरु करे सो होय।’ इसी प्रकार से हम प्रतिदिन गुरू के प्रति श्रद्धा के रूप में स्मरण करते हैं। गुरु ब्रह्मा गुरु विष्णु गुरु देवो महेश्वर: , गुरु साक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमः।
अज्ञानता के अंधकार से ज्ञान के प्रकाश की ओर ले कर जाने वाला ही गुरु
गुरु का अर्थ है,अज्ञानता के अंधकार से ज्ञान के प्रकाश की ओर ले कर जाने वाला। गुरु हमारे भीतर ज्ञान का प्रकाश करता है। एक सच्चा गुरु हमारे मन के भावों को जान लेता है और हमारे मन की शंका का निवारण भी कर देता है। हमारे अवगुणों को पहचान कर उन्हें दूर कर देता है। हमारे धर्म शास्त्रों में गुरु की बहुत प्रशंसा की गई है।यहां तक कि हमें जीवन में जिस भी व्यक्ति से किसी भी तरह का ज्ञान प्राप्त होता है उसे गुरु की ही संज्ञा दी गई है।
किसी भी व्यक्ति का पहला गुरु उसके माता-पिता होते हैं। वह ही एक बालक को चलना फिरना,खाना पीना, और हर प्रकार का व्यवहारिक ज्ञान सिखाते हैं। माता को शास्त्रों मे सब गुरुओं में सर्वश्रेष्ठ गुरु माना गया है।
मां की समानता कोई नहीं कर सकता क्योंकि एक मां ही अपने बच्चे की पहली पाठशाला होती है। इस तरह एक मां अपने बच्चे की पहली गुरु मानी गई हैं। मां से हमें जो संस्कार मिलते हैं वह जीवन भर हमारे साथ चलते हैं।
मां के साथ-साथ किसी भी बालक का गुरु उसका पिता होता है। पिता ही वह व्यक्ति होता है जो बच्चे को अपने से ज्यादा तरक्की करते हुए देखना चाहता है। मां बच्चे को बाहर ले जाती है तो उसे अपनी कमर में उठाती है लेकिन पिता उसे अपने कंधे पर बैठाता है ताकि वह दुनिया को अच्छी तरह से देख सके। पिता की डांट से उनका प्यार छिपा होता है। शास्त्रों में भी पिता के महत्व को बताते हुए कहा गया है कि पिता द्वारा डांटा गया पुत्र, गुरु के द्वारा शिक्षित किया गया शिष्य, सुनार के द्वारा हथौड़े से पीटा गया सोना, ये सब आभूषण ही बनते हैं।
जिस भी व्यक्ति से आपने ज्ञान अर्जित किया है। वह चाहे आध्यात्मिक गुरु हो या फिर पाठशाला गुरु हो उनका सम्मान करें। गुरु हमारे जीवन को एक दिशा प्रदान करता है। हमारा भटकाव समाप्त हो जाता है और हमारे जीवन को एक उचित दिशा में ले जाता है।
धार्मिक गुरु हमें भवसागर से पार लगाने में भी सहायक होता है, वहीं शैक्षिक गुरु हमें किसी भी विषय में दक्ष बनाने में सक्षम होता है। गुरु का हमारे जीवन में कितना महत्व है उसका अंदाजा हम इसी बात से लगा सकते हैं कि श्री राम और श्री कृष्ण ने भी गुरु के महत्व को समझते हुए गुरु से शिक्षा ली। श्री राम के गुरु वशिष्ठ थे और श्री कृष्ण के गुरु ऋषि सांदीपनि थे।
पहले समय में गुरु शिष्य को शिक्षा गुरुकुल में देते थे लेकिन वर्तमान समय में गुरु कुल का स्थान विद्यालय और कालेजों ने ले लिया है। गुरु या फिर कहे शिक्षक ही वह व्यक्ति होता है जो स्वयं वहीं रहकर अपने शिष्यों को आगे बढ़ाने के गुर सिखाता है कि आपको कामयाब कैसे होना है।
भारत में गुरु को बहुत ही सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है।गुरु हमें संस्कार और अनुशासन में रहना सिखाते हैं। जीवन में विभिन्न क्षेत्रों में हमें कुछ भी सिखने के लिए अलग-अलग गुरुओं की आवश्यकता होती है।
इसी तरह जीवन में आध्यात्मिक गुरु का भी बहुत विशेष स्थान है। वह हमारे जीवन की दशा और दिशा दोनों को बहुत प्रभावित करते हैं। सच्चे गुरु के संपर्क में आने से व्यक्ति संस्कारवान, विनयी और विनम्र हो जाता है। गुरु उसे संसारिक कर्मों को करते हुए ईश्वर की भक्ति कैसे कर सकते हैं यह सिखाते हैं। गुरु के प्रवचनों को सुनकर हमें हमारे बहुत से सवालों के जवाब मिल जाते हैं।
गुरु को सम्मानित करने के लिए आषाढ़ पूर्णिमा के दिन गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है। इसदिन चारों वेदों के ज्ञाता महर्षि वेदव्यास जी का जन्म हुआ था। इसदिन शिष्य गुरु को व्यास जी का अंशमान कर उनकी पूजा अर्चना और आरती करते हैं। अपने माता-पिता और गुरु का सम्मान केवल एक दिन नहीं अपितु हर रोज करना चाहिए क्योंकि शास्त्रों में कहा गया है कि
अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविनः।
चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशो बलम्।।
जो बालक नित्य माता-पिता और गुरुजनों को प्रणाम और उनकी सेवा करता है, उसकी आयु, विद्या, यश और बल चारों वृद्धि होती हैं।