लखनऊ, भोपाल से उज्जैन के मध्य यात्रा विनोबा विचार प्रवाह लोक वस्त्र बनाने का काम गांव में खड़ा हो:रमेश भइया

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लखनऊ, भोपाल से उज्जैन के मध्य यात्रा विनोबा विचार प्रवाह लोक वस्त्र बनाने का काम गांव में खड़ा हो:रमेश भइया

ब्यूरो चीफ आर एल पाण्डेय

लखनऊ। विनोबा विचार प्रवाह के सूत्रधार रमेश भइया ने कहा कि बाबा विनोबा कहते थे कि मान लीजिए ,गांव के लोग तय करते हैं कि हम अपने गांव का बना।कपड़ा ही पहनेंगे,बाहर का लेंगे ही नहीं,तो गांव के लोगों का सुन्दर रक्षण होगा।उस हालत में आठ_दस तकुए का चरखा हो और उसे बिजली लगाकर काम किया जाए। गांव का कपड़ा गांव में बिक्री हो ,बाहर बेचना ही नहीं।इससे क्या होगा? एक हजार जनसंख्या के लिए 60 हजार की पूंजी लगेगी और 40 लोगों को पूरा समय काम मिलेगा। बुनना, पींजना, कातना आदि सब मिलकर 40 लोगों को काम मिलेगा। बाबा विनोबा ने इसको नाम दिया लोकवस्त्र सरकार से मदद लेना नहीं।पहले आरम्भ में चाहे जितनी पूंजी लगे वह सरकार दे,लेकिन बाद में मदद नहीं लेनी है। 1000 लोगों में से 40 लोगों को काम मिलेगा यानी 25 वें हिस्से को काम मिलेगा।यानी अगर 25 करोड़ लोग इसमें शामिल होते हैं,तो देश के एक करोड़ लोगों को काम मिलेगा। यह वस्त्र मिल के कपड़े से दो रुपया महंगा पड़ेगा।उदाहरण के लिए मिल का कपड़ा 20 रुपए मीटर होगा तो लोकवस्त्र 22 रुपए में होगा। अगर गांव में 1000 लोग होंगें तो 2000 रुपए ज्यादा खर्च करने पड़ेंगे।ऐसे पांच लाख गांव भारत में हो जाएं तो कितने लोगों को काम मिलेगा? तो हिसाब आया 2 करोड़ लोगों को काम मिलेगा। गांव वस्त्र में स्वाबलंबी बना तो गांव की कम्युनिटी बनेगी, गांव का समाज बनेगा।आज खादी में दस लाख लोगों को काम मिलता है।इस योजना में दो करोड़ लोगों को काम मिलेगा,यानी आज से बीस गुना लोगों को काम मिलेगा और पूंजी एक ही बार तीन हजार करोड़ की लगेगी।फिर उसमें से मिलता जाएगा।यह जो खादी या लोकवस्त्र बनेगा गांव के आधार पर बनेगा।गांव को स्वाबलंबी बनाएगा, गांव को खड़ा करेगा,क्रांति लाएगा ।

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