एम्स गोरखपुर हुआ दुर्व्यवस्था का शिकार, मात्र 3 घण्टे ओपीडी खुलने से मरीज बेहाल

Getting your Trinity Audio player ready...

गोरखपुर। सीएम योगी और बीजेपी के फ्लैगशिप प्रोजेक्ट में से एक गोरखपुर का एम्स हॉस्पिटल जिसका अभी औपचारिक रूप से उद्घाटन होना बाकी है, उद्घाटन से पहले ही मिस मैनेजमेंट का शिकार होता दिख रहा है। कोरोना की दूसरी लहर के बाद एम्स गोरखपुर जबसे जनता के लिए दोबारा खोला गया है तभी से मरीज बेहाल हैं।
बता दें कि दूसरी लहर के बाद जब एम्स गोरखपुर पब्लिक के लिए दोबारा खोला गया तो सिर्फ 3 घण्टे का ही समय निर्धारित किया गया, जिसके अनुसार सुबह 8 बजे से 11 बजे तक ही ओपीडी तथा अन्य कार्य जैसे नया पेशेंट कार्ड बनाना तथा कार्ड का रिन्यूअल आदि हो रहा है। सबसे बड़ी बात यह है कि डायरेक्ट ओपीडी की सुविधा अभी भी शुरू नही की गई है, अभी यह नियम है कि फोन द्वारा संबंधित विभाग के डॉक्टर से अपॉइंटमेंट लेना है, जिसके बाद नम्बर आने पर ही ओपीडी में दिखाया जा सकता है।
अब मुश्किल यह है कि ओपीडी हेतु डॉक्टर से अपॉइंटमेंट लेने के लिए एम्स प्रशासन ने जो टेलीफोन नम्बर 0551-2205501 जारी किया है वह फोन कभी उठता ही नहीं। ऐसे में मरीज और उनके परिजन परेशान हाल इधर से उधर भटकने को मजबूर हैं। फोन न उठने के कारण ओपीडी के लिए परेशान मरीज सुबह 8 बजे के पहले से ही एम्स के गेट पर जमा हो जा रहे हैं, लेकिन भारी भीड़ के चलते 11 बजे तक भी वे ओपीडी के लिए अपॉइंटमेंट लेने में सफल नहीं हो पा रहे हैं।
मालूम हो कि एम्स गोरखपुर में अच्छे इलाज की आस में यूपी के अन्य जिलों के अलावा बिहार और नेपाल से भी मरीज यहाँ आने लगे हैं। दूर दराज से आने वाले लोग यहाँ एक दिन पहले ही आकर सड़क किनारे ही डेरा डाल देते हैं। ऐसे में सिर्फ 3 घण्टे के लिए एम्स के खुलने से लोगों का कोई काम नहीं हो पा रहा है और दूर दूर से आने वाले लोग निराश होकर वापस अपने घरों को लौट जा रहे हैं।
बिहार के सिवान से इलाज की आस में यहाँ आये रामप्रसाद शर्मा का कहना है कि बेहतर इलाज की उम्मीद लेकर एक दिन पहले ही घर से चल दिये थे लेकिन यहाँ आने पर ओपीडी का नम्बर ही नहीं आया और 11 बजते ही एम्स बन्द कर दिया गया। आना बेकार हो गया, नाम तो बहुत सुने थे लेकिन सिर्फ नाम का एम्स अस्पताल है जब डॉक्टर से दिखाने ही नहीं मिले तो क्या फायदा बाकी सुविधा होने का।
एम्स गेट के पास मेडिकल स्टोर चलाने वाले एक दवा व्यवसायी से जब एम्स के बारे में बात की गई तो वो बिफरते हुए बोला- सिर्फ नाम का ही एम्स है ये, कोई फायदा नहीं यहाँ आने का, यहाँ न तो अनुभवी डॉक्टर ही मौजूद हैं और न ही भारी संख्या में आ रहे मरीजों की ओपीडी के लिए कोई व्यवस्था ही कि गयी है। बेचारे मरीज दूर दूर से आकर खाली हाथ लौट जा रहे हैं लेकिन एक विभाग में 2-2 डॉक्टर मिलकर 20-30 मरीज भी नहीं देख रहे, ऐसे में इतनी बड़ी संख्या में यहाँ आने वाले मरीज बिना दिखाए ही लौटने को मजबूर हैं।
दवा व्यवसायी ने आगे बताया की एम्स गोरखपुर के डॉक्टर मरीजों पर अपने द्वारा लिखे ब्रांड और कम्पनी की ही दवा खरीदने का भी दबाव बनाते हैं, ऐसे में दूसरे ब्रांड और कम्पनी की दवा हम लोग किसी भी मरीज को नहीं बेच पा रहे, जिससे हमारा घाटा हो रहा है। जबकि यदि साल्ट और फार्मूला वही है तो दूसरे कम्पनी की वैकल्पिक दवा देने में कोई हर्ज नहीं है। 10-10 लाख पगड़ी देकर दुकानें ली हैं लेकिन ओपीडी नहीं चलने और एक विशेष कम्पनी और ब्रांड की ही दवा खरीदने के दबाव के चलते हम लोगों की बिक्री न के बराबर है।
यदि इन बातों पर गौर किया जाय तो प्रधानमंत्री जन औषधि योजना में खुली सस्ती दवा की दुकानों का भी कोई औचित्य नहीं रह जाता, क्योंकि वहां भी सभी दवाएं वैकल्पिक ही मिलती हैं। उदाहरण के लिए आयरन की एक टेबलेट है Orofer-XT जो कि 157 रुपये की 10 गोली बाजार में मिलती है, अब यदि इसके सस्ते विकल्प की बात करें तो प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र पर इसका सस्ता विकल्प मात्र 20 रुपये में उपलब्ध है। अब सोचने वाली बात ये है कि दोनों आयरन की ही टेबलेट्स हैं तो जो महंगी दवा नहीं खरीद सकता क्या उसे सरकार द्वारा उपलब्ध कराई जा रही सस्ती दवाएं खरीदने का भी अधिकार नहीं है।
जल्द ही यदि एम्स गोरखपुर प्रशासन ने इन सब अनियमितताओं पर ध्यान नहीं दिया तो जोर शोर से शुरू किया गया एम्स गोरखपुर भी अन्य सरकारी अस्पतालों की तरह ही दुर्व्यवस्था और भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाएगा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *