सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को राजद्रोह कानून की धारा 124ए पर पुनर्विचार के लिए समय दे दिया है। जब तक पुनर्विचार की ये प्रक्रिया पूरी नहीं हो जाती तब तक इस धारा के तहत कोई केस दर्ज नहीं होगा। यहां तक कि धारा 124ए के तहत किसी मामले की जांच भी नहीं होगी। कोर्ट ने कहा कि जिन लोगों पर इस धारा में केस दर्ज हैं और वो जेल में हैं वो भी राहत और जमानत के लिए कोर्ट जा सकते हैं। 162 साल में पहली बार ऐसा हो रहा है जब राजद्रोह के प्रावधान के संचालन पर रोक लगाई गई है।
धारा 124ए है क्या? इसके आरोपी को कितनी सजा हो सकती है? रोक लगने का क्या असर होगा? सरकार का इस पर अब तक क्या रुख रहा है? इस कानून से जुड़े हालिया चर्चित मामले कौन से हैं? इस कानून को लेकर पहले का क्या रुख रहा है? आइये जानते हैं…
कोर्ट में अभी क्या हुआ है?
राजद्रोह कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दायर की गई हैं। याचिकाकर्ताओं में सेना के सेवानिवृत्त जनरल एसजी वोमबटकेरे और एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया शामिल है। चीफ जस्टिस एनवी रमण की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच इन याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि ये कानून अंग्रेजों के जमाने का है। यह स्वतंत्रता का दमन करता है। इसे महात्मा गांधी और तिलक जैसे स्वतंत्रता सेनानियों के खिलाफ इस्तेमाल किया गया था। क्या आजादी के 75 साल बाद भी इसकी जरूरत है?
मंगलवार को कोर्ट ने इस कानून पर केंद्र से अपनी राय बताने को कहा था। केंद्र की ओर दायर हलफनामे में इस कानून पर उचित तरीके से पुनर्विचार की बात कही गई। इस दौरान कोर्ट ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा कि हम साफ कर देना चाहते हैं कि हम दो बातें जानना चाहते हैं- पहला लंबित मामलों को लेकर सरकार का क्या रुख है और दूसरा सरकार भविष्य में राजद्रोह के मामलों से कैसे निपटेगी। इन सवालों के जवाब के लिए कोर्ट ने सरकार को बुधवार तक का वक्त दिया था। इसके बाद सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि वह सरकार से निर्देश लेकर बुधवार को कोर्ट के सामने उपस्थित होंगे।
इससे पहले सोमवार को केंद्र सरकार ने कहा था कि उसने धारा 124ए की समीक्षा और पुनर्विचार का फैसला किया है। उसने आग्रह किया था कि जब तक सरकार फैसला न कर ले, तब तक के लिए सुनवाई को टाल दिया जाए। हालांकि, कोर्ट ने केंद्र का ये आग्रह स्वीकार नहीं किया।
अब इस मामले में आगे क्या होगा?
सुप्रीम कोर्ट इस मामले में दायर याचिकाओं पर अब जुलाई में सुनवाई करेगा। तब तक केंद्र सरकार के पास समय होगा कि वो धारा 124ए के प्रावधानों पर पुनर्विचार करे। अगली सुनवाई में केंद्र को इसे लेकर अपना जवाब दाखिल करना होगा। तब तक धारा 124ए के तहत कोई केस दर्ज नहीं होगा। यहां तक कि धारा 124 ए के तहत किसी मामले की जांच भी नहीं होगी। कोर्ट ने कहा कि जिन लोगों पर इस धारा में केस दर्ज हैं और अगर वो जेल में हैं वो भी राहत और जमानत के लिए कोर्ट जा सकते हैं।
राजद्रोह कानून क्या है?
1837 में अंग्रेज इतिहासविद और राजनेता थॉमस मैकाले राजद्रोह को परिभाषित किया था। उनके मुताबिक अगर कोई शब्दों द्वारा बोलकर या लिखित, द्रश्य संकेतों द्वारा या किसी अन्य तरीके से भारत में कानून द्वारा स्थापित सरकार के प्रति उत्तेजित या असंतोष को उत्तेजित करने कोशिश करता है या घृणा या अवमानना में फैलाने का प्रयास करता है तो यह राजद्रोह माना जाएगा।
अन्य देशों में क्या है प्रावधान?
इसी तरह का कानून अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, सऊदी अरब, मलेशिया, सूडान, सेनेगल, ईरान, तुर्की और उज्बेकिस्तान में भी है। ऐसा ही कानून अमेरिका में भी है, लेकिन वहां के संविधान में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता इतनी व्यापक है कि इस कानून के तहत दर्ज मुकदमे लगभग नगण्य हैं। जबकि ऑस्ट्रेलिया में सजा की जगह सिर्फ जुर्माने का प्रावधान है।
भारत में इस कानून को अंग्रेज सरकार भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों की अभिव्यक्ति को दबाने के लिए लेकर आई थी। इसके जरिए महात्मा गांधी, लोकमान्य तिलक और जोगेंद्र चंद्र बोस जैसे नेताओं के लेखन को दबा दिया गया। इन लोगों पर राजद्रोह कानून के तहत मुकदमे चलाए गए।
इस कानून में कितनी सजा का प्रावधान है?
1870 में राजद्रोह को कानूनी जामा मिला। जब भारतीय दंड संहिता की धारा 124 ए में इसे शामिल किया गया। अनुच्छेद 124ए के मुताबिक राजद्रोह एक गैर-जमानती अपराध है। इसके दोषी को तीन साल से लेकर उम्रकैद तक की सजा के साथ जुर्माना तक हो सकता है। जिस व्यक्ति पर राजद्रोह का आरोप होता है वह सरकारी नौकरी नहीं कर सकता। उसका पासपोर्ट भी जब्त कर लिया जाता है। जो अंग्रेज राजद्रोह का ये कानून लेकर आएं उनके देश में भी साल 2010 में इसे खत्म कर दिया गया। न्यूजीलैंड में भी पहले यह कानून था जिसे 2007 में खत्म कर दिया गया। पिछले साल ही सिंगापुर में भी इस कानून को खत्म कर दिया गया है।
तो क्या राजद्रोह करने वाले देशद्रोही कहा जा सकता है?
धारा 124ए राजद्रोह की बात करती है। अक्सर ऐसा माना जाता है कि ये धारा देशद्रोह से जुड़ी है, लेकिन ऐसा नहीं है। कानून में इस धारा को राजद्रोह या फिर सरकार विरोधी एक्ट कहा गया है। यानी, यह देश के खिलाफ किया गया अपराध नहीं है।
केंद्र का इसे लेकर क्या रुख रहा है?
सुप्रीम कोर्ट ने जुलाई, 2021 में पहली बार केंद्र को राजद्रोह कानून की धारा 124ए को लेकर नोटिस जारी किया। इसके बाद 27 अप्रैल 2022 को कोर्ट ने पांच मई को मामले की सुनवाई के लिए तारीख दी। दो मई को केंद्र ने अपने जवाब में कहा कि वो इस कानून पर पुनर्विचार के लिए तैयार है।
इससे पहले 2018 में लॉ कमीशन ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि संविधान बनाने के दौरान संविधान सभा ने राजद्रोह कानून का विरोध किया था, क्योंकि ये कानून अभिव्यक्ति की आजादी का हनन करता है। हालांकि, इसके बाद भी ये कानून आज तक चला आ रहा है।
क्या कभी संसद में इसे हटाने की मांग नहीं हुई?
2011 में सीपीआई सांसद डी राजा राज्यसभा में एक प्राइवेट मेंबर बिल लेकर आए थे। इसमें उन्होंने धारा 124ए को खत्म करने की मांग की थी। हालांकि, यह बिल पास नहीं हो सका। 2015 में कांग्रेस सांसद शशि थरूर लोकसभा में एक प्राइवेट मेंबर बिल लेकर आए। इसमें उन्होंने धारा 124ए में संशोधन का प्रस्ताव रखा।
इस कानून से जुड़े हालिया चर्चित मामले कौन से हैं?
अप्रैल, 2022 में महाराष्ट्र में सांसद नवनीत राणा और उनके विधायक पति रवि राणा पर राजद्रोह का केस दर्ज हुआ। दोनों नेताओं ने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के घर के बाहर हनुमान चालीसा का पाठ करने का एलान किया था। राज्य सरकार का कहना था कि दोनों सरकार और मुख्यमंत्री के खिलाफ घृणा फैला रहे थे। फरवरी, 2022 में उत्तर प्रदेश में डॉक्टर नीरज चौधरी पर राजद्रोह का केस दर्ज हुआ। डॉक्टर चौधरी सपा-रालोद गठबंधन के उम्मीदवार थे। एक वीडियो के आधार पर उनके ऊपर ये मुकदमा दर्ज हुआ। ऐसा कहा गया कि वीडियो में चौधरी के समर्थक पाकिस्तान जिन्दाबाद के नारे लगा रहे हैं। हालांकि, चौधरी ने दावा किया कि उनके समर्थक आकिब भाई जिन्दाबाद के नारे लगा रहे थे।
फरवरी 2022 में ही उत्तर प्रदेश में कांग्रेस उम्मीदवार अजय राय पर भी राजद्रोह का मुकदमा दर्ज हुआ। साल की शुरुआत में एक्टिविस्ट दिशा रवि पर राजद्रोह का मामला दर्ज हुआ। यह मामला काफी सुर्खियों में रहा था। उत्तर प्रदेश के पूर्व राज्यपाल अजीज कुरैशी, सपा सांसद शफीकुर्रहमान बर्क, फिल्म मेकर आइशा सुल्तान, छत्तीसगढ़ कांग्रेस के विधायक शैलेंद्र पांडेय पर भी बीते एक साल के भीतर राजद्रोह का केस हुआ है।
देश में हर साल राजद्रोह के कितने मामले दर्ज होते हैं?
एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक साल 2020 में राजद्रोह के कुल 73 मामले दर्ज किए गए। 2019 में राजद्रोह के 93 तो वहीं, साल 2018 में 70 मामले दर्ज हुए। इस दौरान राजद्रोह के मामलों में दोषी पाए जाने वालों का आंकड़ा बहुत कम रहा है। 2018 में महज दो तो 2019 में एक दोषी पाया गया। वहीं, 2020 में दो लोगों को दोषी पाया गया।
सरकारों का इस कानून को लेकर रुख क्या रहा है?
पिछले कुछ समय से राजद्रोह के मामले तेजी से बढ़ें हैं, लेकिन इन मामलों में दोष साबित होने की दर ना के बराबर है। इसके बाद भी पिछले 75 साल में किसी भी सरकार ने इस कानून को खत्म करने के लिए कोई गंभीर कदम नहीं उठाया है। इसके पक्ष में सरकारों की दलील रही है कि यह कानून उन्हें अराजकता और अव्यवस्था से निपटने में मदद करता है।