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एक समय चीन से मोहित श्रीलंका ने जापान की भावनाओं को आहत किया था। लेकिन अब गहरे संकट के बीच वह जापान से अपना रिश्ता सुधारने के लिए हाथ-पांव मार रहा है। कई पर्यवेक्षकों की राय है कि संकट की घड़ी में चीन से उम्मीदें पूरी ना होने के कारण अब श्रीलंका सरकार को जापान की याद आई है।
एक समय श्रीलंका ने जापान को दी गई दो बिलियन डॉलर की दो परियोजनाओं को एकतरफा ढंग से रद्द कर दिया था। 1.5 बिलियन डॉलर की लाइट रेल ट्रांजिट (एलआरटी) और 50 करोड़ डॉलर की ईस्ट कॉरिडोर टर्मिनल (ईसीटी) परियोजनाओं के रद्द होने से जापान तब काफी नाराज हुआ था। अब श्रीलंका गहरे आर्थिक संकट और राजनीतिक अस्थिरता के दौर में है। इसके बावजूद ज्यादातर देश उसकी मदद के लिए सामने नहीं आए।
राजपक्षे सरकार है वजह
यह बात सरकारी अधिकारियों और सत्ताधारी दल- श्रीलंका पोडुजुना पेरामुना (एसएलपीपी) के नेताओं ने स्वीकार की है कि ऐसा श्रीलंका सरकार के पहले के ‘गैर-कूटनीतिक’ रुख के कारण हुआ है। एसएलपीपी के एक नेता और पूर्व कैबिनेट मंत्री ने वेबसाइट इकोनॉमीनेक्स्ट.कॉम से कहा- कुछ देशों ने परोक्ष रूप से सरकार को यह बताया कि जब तक महिंद राजपक्षे और उनके परिवार के लोग सत्ता में हैं, वे श्रीलंका की मदद नहीं कर सकते।
इस बीच विदेश मंत्री जीएल पीरिस ने जापान के उप विदेश मंत्री मियाके शिन्गो से मुलाकात की है। इस बैठक में जापान के उच्च पदस्थ अधिकारी भी शामिल हुए। ये मुलाकात जिनेवा में हुई, जहां पीरिस और जापानी अधिकारी संयुक्त राष्ट्र मानव अधिकार परिषद के सत्र में भाग लेने गए थे।
शिन्गो से बातचीत के बाद श्रीलंका के विदेश मंत्रालय की तरफ से जारी एक बयान के मुताबिक पीरिस ने अतीत में श्रीलंका को जापान से मिली मदद को याद किया। उन्होंने उन परियोजनाओं का जिक्र किया, जो जापान की मदद से तैयार हुई हैं। उन्होंने कहा कि जापान का रुख हमेशा ही श्रीलंका के लिए सहायक रहा है। इसके अलावा उन्होंने इस बात को भी याद किया कि दूसरे विश्व युद्ध में जापान की हार के बाद हुए सैन फ्रांसिस्को सम्मेलन में श्रीलंका ने जापान की मदद की थी। इसके बाद उन्होंने एक बार फिर जापान के सहयोग बढ़ाने की श्रीलंका सरकार की इच्छा जापानी दल को बताई।
2001 में भी जापान ने की थी मदद
विश्लेषकों के मुताबिक 2019 में राष्ट्रपति बनने के बाद गोटबया राजपक्षे ने चीन के साथ करीबी रिश्ता बनाने को ज्यादा अहमियत दी। उनकी ही सरकार ने ईसीटी और एलआरटी परियोजनाओं को एकतरफा ढंग से रद्द करने का फैसला किया था। इससे श्रीलंका-जापान संबंधों में कड़वाहट पैदा हो गई थी। जबकि जापान श्रीलंका को कर्ज देने वाले सबसे प्रमुख देशों में एक रहा है। अतीत में जापानी कंपनियों ने श्रीलंका में कई इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं का निर्माण किया है।
श्रीलंका 2001 में भी आर्थिक संकट में फंसा था। तब जापान ने उसे बड़ी मदद दी थी। जापान की पहल पर अनुदान दाता देशों का एक फोरम बनाया गया था, जिसने श्रीलंका की मदद के लिए 4.5 बिलियन डॉलर की रकम इकट्ठा की थी। फिलहाल, श्रीलंका 2001 की तुलना में कहीं ज्यादा बड़े आर्थिक संकट में फंसा हुआ है। लेकिन इस बार जापान उसकी मदद के लिए आगे नहीं आया। पर्यवेक्षकों के मुताबिक उसकी कमी अब श्रीलंका सरकार को महसूस हो रही है।