एडेड डिग्री कॉलेजों का मामला : शिक्षकों के जीपीएफ का करोड़ों रुपये खाते से गायब

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केस-1

डॉ. अजय कुमार श्रीवास्तव, शिवपत डिग्री कॉलेज, शोहरतगढ़, सिद्धार्थनगर से वर्ष 2020 में सेवानिवृत्त हुए थे। वह बताते हैं कि जीपीएफ के करीब 48 लाख रुपये के भुगतान का आदेश हो चुका है लेकिन क्षेत्रीय उच्च शिक्षा अधिकारी गोरखपुर से अभी तक फंड रिलीज नहीं हुआ। वहां जाने पर कहा जाता है कि  खाते में पैसा नहीं है। श्रीवास्तव के मुताबिक उनके डिग्री कॉलेज के एक अन्य शिक्षक भी ऐसे ही परेशान हो रहे हैं।

केस-2
वाणिज्य शिक्षक संजीव गुप्ता ने वाईडी कॉलेज लखीमपुर से वर्ष 2020 में इस्तीफा दे दिया था। अब वह लखनऊ स्थित शकुंतला मिश्र पुनर्वास विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं। वह बताते हैं कि उनके जीपीएफ का करीब 33 लाख रुपये का फंड शकुंतला विवि के खाते में ट्रांसफर होना है। इसके आदेश हो चुके हैं लेकिन क्षेत्रीय उच्च शिक्षा अधिकारी लखनऊ के यहां से लगातार इसे टाला जा रहा है। लखीमपुर के वाईडी कॉलेज से ही पिछले वर्ष सेवानिवृत्त डॉ. एनबी सिंह का भी लाखों रुपये का भुगतान फंसा है। प्रदेश के विभिन्न जिलों में सहायता प्राप्त (एडेड) डिग्री कॉलेजों के शिक्षकों के जीपीएफ का करोड़ों रुपये खाते से गायब है। सेवानिवृत्ति के बाद इन शिक्षकों को अपनी कमाई के लाखों रुपये लेने के लिए भटकना पड़ रहा है। हालांकि उच्च शिक्षा निदेशालय से उनके जीपीएफ भुगतान की स्वीकृति का आदेश जारी हो रहा है पर क्षेत्रीय उच्च शिक्षा अधिकारी के यहां से भुगतान नहीं हो रहा है। कहीं तकनीकी समस्या तो कहीं खाते में धन न होने की बात कही जा रही है। लखनऊ विवि सहयुक्त महाविद्यालय शिक्षक संघ (लुआक्टा) के अध्यक्ष मनोज पांडेय का कहना है कि तकरीबन 19 जिलों में लगभग छह साल से लगभग पांच सौ शिक्षक इस समस्या से परेशान हैं। मामला शासन से लेकर राजभवन तक पहुंच चुका है लेकिन अब तक इसका समाधान नहीं हो पाया है। गौरतलब है कि वर्ष 2011 से पहले एडेड कॉलेजों के शिक्षकों के वेतन का भुगतान व जीपीएफ की कटौती जिला विद्यालय निरीक्षक द्वारा की जाती थी। वर्ष 2011 के बाद वेतन का भुगतान व जीपीएफ कटौती क्षेत्रीय उच्च शिक्षा अधिकारी कार्यालय से होने लगी। उच्च शिक्षा विभाग के अधिकारियों का आरोप है कि जिला विद्यालय निरीक्षकों ने जीपीएफ का कोई हिसाब नहीं दिया। यही नहीं जीपीएफ खाते में जमा राशि पर शासन से ब्याज की मांग भी नहीं की गई। चूंकि वर्ष 2005 में नई पेंशन स्कीम लागू होने के बाद जीपीएफ की कटौती कम हो गई। ऐसे में वर्ष 2011 के बाद क्षेत्रीय उच्च शिक्षा अधिकारी कार्यालय से शुरुआत में पुराने शिक्षकों की जीपीएफ कटौती से जमा धन से शिक्षकों को भुगतान हो गया। बाद में फंड खत्म होते ही दिक्कतें शुरू हो गई गईं।

सीएम से लेकर राज्यपाल तक से शिकायत, नहीं निकला हल
शिक्षकों के जीपीएफ का भुगतान न होने की शिकायत मुख्यमंत्री से लेकर राज्यपाल तक से हो चुकी है। पिछले साल मुख्यमंत्री को पत्र भेजा गया था कि गोरखपुर क्षेत्रीय कार्यालय से जुड़े सिद्धार्थनगर, बस्ती, महराजगंज आदि जिलों में वर्ष 2018 के बाद सेवानिवृत्त शिक्षकों व कर्मचारियों का जीपीएफ भुगतान अब तक नहीं हुआ है। क्षेत्रीय उच्च शिक्षा अधिकारी कहते हैं कि जीपीएफ खाते में पैसे नहीं है। जब शासन से पैसे मिलेंगे, तब भुगतान होगा। बीती एक जून को लुआक्टा ने इस मुद्दे को राजभवन में उठाया था। लुआक्टा के अध्यक्ष डॉ. मनोज पांडेय के मुताबिक उस वक्त उच्च शिक्षा विभाग व वित्त विभाग की बैठक बुलाकर जल्द इस मामले का हल निकलवाने की बात कही गई थी लेकिन अब तक कुछ नहीं हुआ। पांडेय का कहना है कि यह समस्या लखनऊ क्षेत्रीय कार्यालय से जुड़े हरदोई, बहराइच, लखीमपुर खीरी, अंबेडकरनगर व उन्नाव के अलावा प्रदेश के तकरीबन 19 जिलों में है। पांडेय का कहना है कि अगर इस मामले का हल नहीं निकाला गया तो आंदोलन का रुख अख्तियार करना होगा। कुछ सेवानिवृत्त शिक्षक मामले में कोर्ट भी जा रहे हैं। जीपीएफ भुगतान में परेशानी वर्ष 2011 से पहले जिला विद्यालय निरीक्षकों द्वारा की गई फंड की कटौती का ब्योरा न देने के कारण है। क्षेत्रीय उच्च शिक्षा अधिकारी के जरिए वर्ष 2011 के बाद जो जीपीएफ कटौती हुई, उसे वितरित कर दिया गया। अब बजट नहीं है। इसलिए सेवानिवृत्त होने वाले शिक्षकों के भुगतान में दिक्कत हो रही है। इस संबंध में शासन स्तर पर कार्यवाही चल रही है। -अमित भारद्वाज, उच्च शिक्षा निदेशक

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