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सुलतानपुर :
आम के गुणवक्तायुक्त उत्पादन के लिए रोगों से बचाव अति आवश्यक है। बौर निकलने से लेकर आम का फल लगने तक का समय काफी संवेदनशील होता है। ऐसे में किसानों को इसके प्रति सजगता बरतना आवश्यक है।
इस संबंध में कृषि विज्ञान केंद्र बरासिन के उद्यान वैज्ञानिक डॉ विनोद कुमार सिंह कहते हैं कि बदलीयुक्त एवं बूंदाबांदी के मौसम में आम को खर्रा रोग अधिक लगता है। साथ ही भुनगा कीट के लगने की भी आशंका अधिक होती है। इन रोगों से ग्रसित पुष्प, वृंत तथा डंठलों पर सफेद चूर्ण के समान फफूंद की भी वृद्धि दिखाई देती है। इससे मंजरियां सूख कर गिर जाती हैं। साथ ही प्रभावित फल भी पीले पड़ पड़ कर झरने लगते हैं। इस रोग से बचाव के लिए घुलनशील गंधक दो मिलीलीटर प्रति लीटर पानी या डाइनोकैप एक मिली लीटर प्रतिलीटर पानी में डालकर छिड़काव करें। आम में भुनगा कीट कोमल पत्तियों एवं छोटे फलों से रस चूसकर हानि पहुंचाते हैं। प्रभावित भाग सूख कर गिर जाता है साथ ही यह कीट मधु की तरह का पदार्थ भी विसर्जित करते हैं। जिससे पत्तियों पर काले रंग की फफूंद जम जाती है। फलस्वरूप पत्तियाें में हो रही प्रकाश संश्लेषण की क्रिया मंद पड़ जाती है। भुनगा कीट के नियंत्रण हेतु इमिडाक्लोप्रिड .तीन मिली लीटर प्रति लीटर पानी में या क्लोरपाइरीफस दो मिली लीटर प्रति लीटर पानी में डालकर छिड़काव करके खर्रा रोग पर नियंत्रण किया जा सकता है। इसके अलावा कार्बरिल 50 डब्लूपी या डायमेथोएट का भी मानक और मात्रा के हिसाब से इस्तेमाल किया जा सकता है। आम बागवान सुहेल आलम ने बताया कि पिछले वर्ष की अपेक्षा इस बार फसल अच्छी है मौसम भी बौर के लिए अच्छा साबित हुआ है जिससे रोग और कीट कम लगे हैं फिर भी कहीं कहीं खर्रा रोग देखा जा रहा है जिसके लिए समय के अंदर ही उपचार करना अच्छा होगा वरना फसल प्रभावित हो सकती है। दवा किसी विश्वसनीय दुकान से ही खरीदें। आवश्यकता पड़ने पर विशेषज्ञों से राय ले।फल बनने के बाद सिंचाई अत्यंत आवश्यक है।