बारिश में पत्तेदार सब्जियों का सेवन हो सकता है नुकदायक, जानें वजह

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भारतीय भोजन विविधताओं से भरा है। जहां दुनिया भर में बड़ी तादाद में मंसाहार किया जाता है। भारत में केवल शाकाहारी भोजन की ही कई हजार वैरायटीज हैं। बल्कि ये शाकाहार अब बड़े पैमाने पर विदेशियों को भी लुभा रहा है। हमारे देश मे तो इस शाकाहार के लिए भी अलग अलग मौसमों और स्थितियों के हिसाब से व्यंजन होते हैं। खासकर बारिश के मौसम में भोजन के तौर तरीके एकदम बदल जाते हैं और रसोई में आ जाती है लौकी,गिलकी, कद्दू, आदि की बहार। यही नहीं हमारे बुजुर्ग इस मौसम में कई सब्जियों से दूरी बनाने की परम्परा धार्मिक स्तर पर भी बताते हैं। रोटी-सब्जी-दाल-चावल भारतीय भोजन का अहम हिस्सा है। इनमे से भी देश के अलग हिस्सों में रोटी और चावल ऑप्शनल हो सकते हैं लेकिन सब्जी और दाल कॉमन है। सब्जियों के प्रयोग को लेकर भी हमारे देश मे कई नियम कायदे हैं। जैसे कि बारिश के दिनों में पत्तेदार सब्जियों का प्रयोग न करना। आखिर क्यों बारिश में काम में नहीं लाई जातीं कुछ सब्जियां, क्या हो सकते हैं इनके नुकसान जानिए।
भारतीय भोजन विविधताओं से भरा है। जहां दुनिया भर में बड़ी तादाद में मंसाहार किया जाता है। भारत में केवल शाकाहारी भोजन की ही कई हजार वैरायटीज हैं। बल्कि ये शाकाहार अब बड़े पैमाने पर विदेशियों को भी लुभा रहा है। हमारे देश मे तो इस शाकाहार के लिए भी अलग अलग मौसमों और स्थितियों के हिसाब से व्यंजन होते हैं। खासकर बारिश के मौसम में भोजन के तौर तरीके एकदम बदल जाते हैं और रसोई में आ जाती है लौकी,गिलकी, कद्दू, आदि की बहार। यही नहीं हमारे बुजुर्ग इस मौसम में कई सब्जियों से दूरी बनाने की परम्परा धार्मिक स्तर पर भी बताते हैं। रोटी-सब्जी-दाल-चावल भारतीय भोजन का अहम हिस्सा है। इनमे से भी देश के अलग हिस्सों में रोटी और चावल ऑप्शनल हो सकते हैं लेकिन सब्जी और दाल कॉमन है। सब्जियों के प्रयोग को लेकर भी हमारे देश मे कई नियम कायदे हैं। जैसे कि बारिश के दिनों में पत्तेदार सब्जियों का प्रयोग न करना। आखिर क्यों बारिश में काम में नहीं लाई जातीं कुछ सब्जियां, क्या हो सकते हैं इनके नुकसान जानिए।
why leafy vegetables are not good in rainy seasons?

बारिश में बदली रसोई

मानसून आने के पहले ही देश के कई हिस्सों में इस विशेष चौमासे की तैयारियां शुरू हो जाती हैं। हालाँकि अब बारिश के महीने और समय पहले की तरह नहीं रहा क्योंकि आजकल बारिश कभी भी हो सकती है। लेकिन मुख्यतः जून-जुलाई से सितंबर तक के महीने में खान-पान को लेकर कई बदलाव पारम्परिक तौर पर हमारे यहाँ किये जाते हैं और इसमें सबसे बड़ा परिवर्तन होता है सब्जियों से जुड़ा। सर्दी के मौसम को हरी-पत्तेदार सब्जियों के लिए सबसे उपयुक्त माना जाता है तो बारिश को इनके लिए सबसे अनुपयुक्त कहा जाता है। यही कारण है कि ज्यादातर घरों में पालक, मैथी, साग, पत्तागोभी और यहाँ तक कि फूलगोभी और बैंगन भी बैन हो जाते हैं। ये बैन केवल परम्परा का ही हिस्सा नहीं है। इसके पीछे बकायदा विज्ञान भी है।

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क्या है कारण?

बदलता मौसम हमेशा बीमारियों का अंदेशा भी साथ लेकर आता है। खासकर बारिश के आने के पहले तेज धूप और उसके साथ बनने वाली नमी मिलकर पसीने व चिपचिपेपन के साथ त्वचा के लिए तो मुश्किल खड़ी करती ही है। तापमान में होने वाली इस घटत-बढ़त से शरीर सामंजस्य बैठाने का प्रयास करता है। दूसरी तरह पानी गिरने के बाद पैदा होने वाले बैक्टीरिया और जर्म्स मिलकर प्रदूषित पेयजल आदि का कारण भी बन जाते हैं। बारिश के कारण पानी पीने में भी कम आता है और भोजन के पचने की प्रक्रिया में भी बदलाव आने लगता है। यही कारण है कि इस मौसम में सर्दी-खांसी, बुखार, पेट संबंधी समस्याएं जैसे फ़ूड पॉइजनिंग, उलटी-दस्त, जोड़ों में अकड़न आदि बढ़ जाते हैं। इन सबमें भोजन का संतुलन बहुत जरूरी होता है क्योंकि इम्युनिटी बनाये रखने और पोषण पाने के लिए सही भोजन की सबसे ज्यादा जरूरत होती है।

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पत्तेदार सब्जियों से दूरी

मौसम के बदलने के साथ बारिश में इम्युनिटी का स्तर कम होने लगता है। इसलिए और भी अधिक जरूरत होती है सही भोजन करने की। ज्यादातर हरी पत्तेदार सब्जियां दलदली और नम जगह पर उगाई जाती हैं। यह जगह बैक्टीरिया, वायरस, फफूंद, कीड़े-मकोड़ों और अन्य हानिकारक कारकों के पैदा होने के लिए एकदम अनुकूल हो जाती है। आम मौसम में धूप मिटटी को संक्रमणरहित बनाने में मदद करती है लेकिन बारिश में ऐसा नहीं हो पाता। ऐसे में पत्तेदार सब्जियों पर संक्रमण पैदा करने वाले जीवों के पनपने की आशंका सबसे ज्यादा होती है। चूँकि इन सब्जियों में पत्तियां आपस में पास पास गुंथी होती हैं, ऐसे में ये सूक्ष्म जीव आसानी से दिखाई भी नहीं देते। इसलिए सब्जियों को धोते या पकाते समय भी कई बार छूट जाते हैं और पेट में जाकर मुश्किल खड़ी करते हैं।

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