क्या हासिल हुआ जी-7 और सहयोगी देशों की हिरोशिमा शिखर बैठक में?

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जी-7 शिखर बैठक के मौके पर आए विश्व नेताओं की यहां रवानगी के बाद अब विश्लेषक यहां हुई वार्ताओं के सार को समझने की कोशिश कर रहे हैं। जी-7 के सदस्य देशों- अमेरिका, जापान, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, इटली, कनाडा और यूरोपियन यूनियन के अलावा यहां भारत, ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया, दक्षिण कोरिया और वियतनाम के नेताओं और अफ्रीकन यूनियन के प्रतिनिधि को भी आमंत्रित किया गया था। उनके अलावा यहां बिना पहले से तय कार्यक्रम के यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदीमीर जेलेन्स्की भी आए।

जी-7 शिखर बैठक के मौके पर दुनिया का ध्यान यहां टिका रहा और इसके बीच पूरा लाइमलाइट जेलेन्स्की बटोर ले गए। शुक्रवार से रविवार तक यहां हुई अनेक बैठकों में अलग-अलग देशों के नेताओं ने भाषण दिए, लेकिन जितनी चर्चा जेलेन्स्की के भाषण की हुई, उतना ध्यान कोई और नहीं खींच सका। जेलेन्स्की यहां जुटे धनी देशों के नेताओं से और अधिक सैनिक सहायता मांगी। खास कर उन्होंने अमेरिका से एफ-16 लड़ाकू विमानों को देने की मांग की। जेलेन्स्की की अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन से द्विपक्षीय वार्ता भी हुई, जिसके बाद बाइडेन ने एलान किया- ‘जी-7 यूक्रेन की पीठ के पीछे खड़ा है। आपने अभी तक जो कुछ किया है, उसे देख कर हम अचंभित हैं।’

वैसे जहां तक जी-7 की बात है, तो इस बैठक में इन देशों के बीच आर्थिक सुरक्षा और चीन जैसे देशों की तरफ से की जा रही ‘आर्थिक जोर-जबर्दस्ती’ का मुकाबला करने के लिए नए ढांचे के गठन पर जो सहमति बनी, उसे हिरोशिमा में हासिल हुई सबसे बड़ी उपलब्धि के रूप में देखा जा रहा है। हालांकि जी-7 की विज्ञप्ति में आर्थिक जोर-जबर्दस्ती के सिलसिले में चीन का नाम नहीं लिया गया है, लेकिन विशेषज्ञों के मुताबिक निशाना चीन पर है, इसमें कोई संदेह भी नहीं छोड़ा गया है।

हिरोशिमा शिखर बैठक का एक अन्य खास पहलू भारत और ब्राजील को यहां बुलाना था। यूनिवर्सिटी ऑफ टोरंटो में जी-7 रिसर्च ग्रुप के निदेशक डेनिसे रुडिच ने कहा- ‘ये दोनों दुनिया की दो सबसे बड़ी उभरती अर्थव्यवस्थाएं हैं, जिन्हें जी-7 देश अपने साथ ले सकते हैं।’ विशेषज्ञों ने कहा है कि विश्व जीडीपी में जी-7 देशों का योगदान 50 फीसदी का है, लेकिन विकासशील देशों की अर्थव्यवस्थाएं भी बढ़ रही हैँ। इसलिए उन देशों के साथ मिल कर काम करना जी-7 को जरूरी महसूस हो रहा है।

हिरोशिमा में क्वैड्रैंगुलर सिक्युरिटी डॉयलॉग (क्वैड) की बैठक भी हुई। भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के नेताओं के बीच इस बैठक में समुद्र के अंदर केबल इन्फ्रास्ट्रक्चर बनाने और उनसे मेंटेनेन्स को लेकर खास सहमति बनी। इसका मकसद एशिया प्रशांत क्षेत्र में सहमना देशों के बीच कनेक्टिविटी में सुधार करना है।

जेलेन्स्की के यहां पहुंचने के पहले हिरोशिमा में हुई चर्चाओं में चीन छाया रहा। ज्यादातर समय बात उसकी लेकर होती रही। इस सिलसिले में ताइवान को लेकर जी-7 देशों ने जो कहा, उसे महत्त्वपूर्ण माना गया है। उनके बयान में कहा गया- ‘हम ताइवान जलडमरुमध्य में शांति और स्थिरता के महत्त्व को दोहराना चाहते हैं। यह अंतरराष्ट्रीय समुदाय की सुरक्षा और समृद्धि की अपरिहार्य शर्त है।

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