मेरे अनुभवों पर आधारित है ‘द कलेक्टर टुडे’: आईएएस अलोक रंजन

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मेरे अनुभवों पर आधारित है ‘द कलेक्टर टुडे’: आईएएस अलोक रंजन

-पुस्तक मेले में हुआ यूपी सरकार के पूर्व मुख्य सचिव की पुस्तक का विमोचन

-किताब में जिलाधिकारी के कर्तव्यों और चुनौतियों का किया गया है वर्णन

ब्यूरो चीफ आर एल पाण्डेय

लखनऊ: राजधानी स्थित बलरामपुर गार्डन में दस दिवसीय राष्ट्रीय पुस्तक मेले में शनिवार का दिन बेहद ही अहम रहा। उत्तर प्रदेश सरकार के पूर्व मुख्य सचिव, अर्थशास्त्री एवं स्माल इंडस्ट्रीज एंड मैन्युफैक्चर एसोसिएशन (SIMA) के मुख्य संरक्षक आईएएस आलोक रंजन ने अपनी पुस्तक ‘द कलेक्टर टुडे’ का विमोचन किया। साथ ही इस पुस्तक का हिंदी अनुवाद ‘जिलाधिकारी, जिला प्रशासन की चुनौतियां’ को भी रिलीज किया गया।

28 साल पहले लिखी किताब का अपग्रेडेड वर्जन है ‘द कलेक्टर टुडे’

पुस्तक विमोचन कार्यक्रम में अपनी किताब की खूबियों का जिक्र करते हुए पूर्व मुख्य सचिव अलोक रंजन ने बताया कि 1995 में उन्होंने इस किताब को लिखा था। तब का दौर अलग था और आज का दौर बेहद ही अलग है। उन्होंने बताया, ‘मैंने पांच जिलों में जिलाधिकारी के तौर पर अपनी सेवाएं दी हैं। जिनमें गाजीपुर, बांदा, गाजियाबाद, प्रयागराज और आगरा शामिल थे। मैंने अपने अनुभवों के आधार पर इस किताब को लिखा है। आपको बता दूं कि मैंने प्रशासनिक अधिकारी के तौर पर कई सालों तक काम किया है। जनहित के कार्यों से मैं बखूबी परचित हूं। 1995 में जब मैंने इस किताब को रिलीज किया था उस वक्त कई आईएएस अधिकारियों ने इसे पढ़ा और उनका फीडबैक भी मुझे मिला। सभी ने एक स्वर में कहा कि इस किताब में लिखे अनुभवों से बहुत कुछ सीखने को मिला है। हालांकि, नए आईएएस अधिकारियों ने जब इसे पढ़ा तो उन्होंने मुझसे वर्तमान परिपेक्ष में अपने अनुभवों को साझा करने की प्रेरणा दी जिसके बाद मैंने यह अपनी किताब को अपग्रेड करके आज रिलीज किया है।’

जिलाधिकारियों के अंदर नेतृत्व करने की क्षमता होनी बेहद ही जरूरी: अलोक रंजन

आईएएस अलोक रंजन ने बताया कि जो भी आईएएस जिलाधिकारी के पद पर बैठता है उसके अंदर नेतृत्व की क्षमता जरूर होनी चाहिए। नए आईएएस अफसरों को सलाह देते हुए उन्होंने बताया कि अध्ययन करना कभी भी नहीं छोड़ना चाहिए। जिले और वहां की अवाम के लिए योजनाएं बनानी चाहिए। शासन स्तर की योजनाओं को जमीनी स्तर पर लागू करने के लिए भी रणनीति बनानी चाहिए और उसपर काम करना चाहिए। जिलाधिकारी के पद पर बैठने के बाद पब्लिक कनेक्शन सबसे जरूरी है क्योंकि जनता को इस पद से बहुत उम्मीदें रहती हैं। आपको पॉलिटिकल प्रेशर के साथ–साथ अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन करना होगा। अगर आपको ऐसा लगता है कि कहीं कुछ गलत हो रहा है तो उसपर स्टैंड लीजिए क्योंकि अपने जिले में कानून व्यवस्था को दुरुस्त रखना आपकी ही जिम्मेदारी है।

बेहतर सुशासन के लिए जिलाधिकारी को ही करने होंगे सार्थक प्रयास

बेहतर सुशासन के सवाल पर जवाब देते हुए अलोक रंजन ने कहा कि जिले की जिम्मेदारी जिलाधिकारी के कन्धों पर होती है। आईएएस सेवा में ‘डीएम’ बेहद ही महत्वपूर्ण पद है। डीएम की पर्सनालिटी को देखकर ही उस जिले की कार्यशैली का अंदाज़ा लग जाता है। इस पद पर जो भी अधिकारी बैठता है उससे जनता की आस्था जुड़ी होती है। जनता को विश्वास रहता है कि उनकी समस्याओं का निदान जिलाधिकारी के माध्यम से हो जाएगा। इसलिए जरूरी है कि इस आस्था को टूटने न दिया जाए। नए आईएएस अफसरों से निवेदन है कि जनता के बीच जाएं, उनके दुःख-दर्द को सुनें, उनकी समस्याओं से उन्हें निजात दिलाएं, उन्हें दिलासा न दें, उनका काम करें। अपने कार्यकाल के दौरान मैंने इन्हीं सब पर सबसे ज्यादा ध्यान दिया और कोशिश की कि पब्लिक को ज्यादा से ज्यादा डिलीवर कर सकूं। उन्हें सकारात्मक हल देने का काम करूं। इससे पब्लिक का भी मुझे सपोर्ट मिला। नए आईएएस अफसरों को यह समझना पड़ेगा कि जनता को ही सेवाएं देनी है। गरीब असहायों के लिए खड़े होना पड़ेगा और इसके लिए स्वंय से ही बदलाव की शुरुआत करनी होगी। जिलाधिकारी के पद पर बैठकर छोटे-छोटे लोगों की जिंदगी को बेहतर करने का मौका मिलता है, इस मौके को गंवाना नहीं है।

बदलाव जरूरी है, सामंजस बैठाकर कार्य करना उससे भी जरूरी

SIMA के मुख्य संरक्षक आलोक रंजन ने अपने अनुभवों को साझा करते हुए बताया कि आज के दौर में बदलाव जरूर आया है और यह जरूरी भी है। हालांकि, इससे भी ज्यादा जरूरी यह है कि बदलाव कि वजह से आप अपनी जिम्मेदारियों को न भूलें। पहले के दौर में जिलाधिकारी के नेतृत्व में सभी विभागों को कार्य करना होता है। हालांकि, अब ऐसा नहीं है, सभी विभागों के अपने-अपने हेड हैं। इन सभी से सामंजस बैठा कर कार्य करना, शासन की योजनाओं को धरातल पर लागू करना, किसी के साथ भी भेदभाव न करना, यही एक अच्छे जिलाधिकारी की जिम्मेदारी है।

अपने पद का महत्व समझें, बहकें नहीं

अलोक रंजन ने अपने कार्यकाल के अनुभवों को साझा करते हुए बताया कि व्यक्तिगत तौर पर मुझे ऐसे लगता है कि डीएम-एसएसपी मॉडल से बेहतर परिणाम मिलते हैं। डीएम और एसएसपी साथ मिलकर काम करते हैं तो बेहतर नतीजे निकलते हैं। इसका मतलब यह नहीं है कि कमिश्नरी प्रणाली सही नहीं है। अपग्रेडेशन होना बहुत जरूरी है, बस ध्यान इसी पर दें कि जनता को किसी भी तरह की तकलीफ न पहुंचे। लोगों को ऐसा लगता है कि जहां-जहां कमिश्नरी लागू है वहां-वहां आईएएस vs आईपीएस है। ऐसा बिलकुल भी नहीं है। पब्लिक को जिस भी योजना से फायदा मिल रहा है, वो ही योजना बेहतर है। जनता की सेवा में आपको ‘नीति’ की परिभाषा समझना जरूरी है। नीति और नीयत, इन दोनों के साथ अगर आपने अपनी सेवाएं दीं तो आप एक बेहतर अधिकारी बनकर उभरेंगे। शासन का कार्य होता है विजन देना और अधिकारियों का काम होता है विजन को रियलिटी में तब्दील करना। यह तभी मुमकिन है जब आप जनता के बीच में जाएं और उनसे जुड़ें। इससे यह फायदा होगा कि आप धरातल पर शासन की योजनाओं को उतार सकेंगे।

फ़ाइल छोड़कर फील्ड पर जाएं अधिकारी, पब्लिक कनेक्ट को दें बढ़ावा: अलोक रंजन

उत्तर प्रदेश सरकार के पूर्व मुख्य सचिव ने नए आईएएस अफसरों को सालाह दी है कि वे बहकें नहीं, आदर्शों पर चलें। फाइल के जाल से निकल कर फील्ड पर जाएं जिससे जनसमस्याओं के बारे में पता चल सके। जनसमस्यों का हल करना ही एक आपको एक बेहतर अधिकारी बनाता है। कभीं यह मत सोचें कि यह मेरा काम नहीं है, हर चीज़ परफेक्ट हो इसकी जिम्मेदारी आपको स्वंय लेनी पड़ेगी तभी आप बेहतर अधिकारी के रूप में उभरेंगे।

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