नरेंद्र दुबे जी का श्राद्ध पक्ष में स्मरण: डा. पुष्पेंद्र

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नरेंद्र दुबे जी का श्राद्ध पक्ष में स्मरण: डा. पुष्पेंद्र

ब्यूरो चीफ आर एल पाण्डेय

लखनऊ। विनोबा विचार प्रवाह के सूत्रधार रमेश भइया ने बताया कि श्री नरेंद्र दुबे के हस्तलिखित कागज जीर्ण-शीर्ण अवस्था में हैं। उनके विचार उनके द्वारा स्थापित *’सर्वोदय मिशन’ खादी मिशन* सहित देश की सभी खादी संस्थाओं के लिए आज भी प्रासंगिक हैं।

*श्री नरेंद्र दुबे : अपने शब्दों में*

किंतु विनोबा जी से मैं जब भी मिलने जाता तो बाबा विनोबा पवनार गांव में वस्त्र स्वावलंबन करने के लिए कहते थे। अंतत: उनकी भावना के अनुसार *सन 1977* में मैंने पवनार गांव में काम करना शुरू किया। ग्राम सम्पर्क के पश्चात मैं चाहता था कि ग्राम स्तर की ही एक संस्था बनायी जाए। उसके मार्फत गांव में काम किया जाए। किंतु इसी समय ग्राम सेवा मंडल ने रुचि ली और मैं विनोबा जी के आदेश से ग्राम सेवा मंडल के द्वारा गांव में काम करने लगा।
मेरा यह प्रयास था कि पवनार प्रयोग के लिए *खादी ग्रामोद्योग आयोग से सहायता न लेकर काम किया जाए।* गांव से, आम जनता से कुछ निधि संग्रह किया जाए। लेकिन जब ग्राम सेवा मंडल ने मदद देना प्रारंभ किया तब उसी की नीति मान्य करनी पड़ी।
उस समय पवनार गांव की *आबादी छ: हजार* थी। मैंने माना कि हमारे कितना ही प्रयास करने पर गांव के लोग अधिक से अधिक *दस मीटर प्रति व्यक्ति खादी* इस्तेमाल करेंगे। इस प्रकार पवनार गांव के लिए प्रारंभ में *साठ हजार मीटर वस्त्र* की जरूरत होगी। पवनार गांव में कपास पैदा होता था और अच्छी उन्नत किस्म का कपास पैदा होता था। इसलिए कच्चे माल की समस्या नहीं थी।

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