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नई दिल्ली : कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर ने देश में कहर बरपा रखा है। शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों में कोरोना को लेकर लोगों में डर का माहौल देखा जा रहा है। हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में देखा गया है कि कोरोना की दूसरी लहर लोगों को मानसिक तौर से विचलित कर रही है। कोरोना का डर भगाने की तरकीब खोज ली गई है। तंत्रिका विज्ञान के जरिए आईटीबीपी के डॉक्टर ऐसे मरीजों की बेचैनी दूर कर रहे हैं।
‘आईटीबीपी के 30 तनाव परामर्शदाता’, जो राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य और तंत्रिका विज्ञान संस्थान बेंगलुरु से प्रशिक्षित हैं, वे 500 ऑक्सीजन बिस्तरों वाले सरदार पटेल कोविड केयर सेंटर में ऐसे रोगियों का उपचार कर रहे हैं। यह उपचार कोरोना मरीजों के दिमाग से डर निकालने में बेहद कारगर साबित हो रहा है। तनाव प्रबंधन की विद्या में पारंगत आईटीबीपी परामर्शदाता, कोरोना संक्रमित मरीजों के परिजनों से भी मिल रहे हैं।
बता दें कि आईटीबीपी देश का एकमात्र ऐसा बल है, जो कर्मियों के बीच तनाव प्रबंधन करने के लिए अपनी रैंकों में तनाव सलाहकारों की सीधी भर्ती करता है। इसका मकसद है कि किसी भी बीमारी के दौरान मरीज को तनाव से दूर रखना है। देश के बड़े चिकित्सकों और वैज्ञानिकों ने भी यह बात मानी है कि अगर मरीज पर तनाव हावी न हो तो वह बीमारी से आधी लड़ाई जीत लेता है।
नई दिल्ली के छतरपुर स्थित राधा स्वामी ब्यास में स्थापित किए गए सरदार पटेल कोविड केयर सेंटर पर आईटीबीपी डॉक्टर और पैरामेडिकल स्टाफ के साथ साथ स्ट्रेस काउंसलर की टीम भी मरीजों के बीच मौजूद रहती है। यह टीम ऑक्सीजन बेड पर मरीजों का खास ख्याल रखती है। तीस से ज्यादा स्ट्रेस काउंसलर नियमित तौर पर मरीजों से मिलते रहते हैं। आईटीबीपी के तनाव परामर्शदाता, मुख्य चिकित्सा अधिकारी (मनोचिकित्सक) डॉक्टर प्रशांत मिश्रा की देखरेख में विभिन्न पालियों में 24×7 तैनात किए गए हैं।
आईटीबीपी के मुताबिक, तनाव परामर्शदाता को मरीज किसी भी वक्त बुला सकते हैं। उनके साथ अपने डर और बेचैनी को लेकर चर्चा करते हैं। सभी परामर्शदाता पीपीई किट में रहते हैं। उनकी किट पर ‘स्ट्रेस काउंसलर आईटीबीपी’ लिखा होता है। यह इसलिए किया गया है ताकि मरीज उन्हें आसानी से पहचान सकें। बहुत से ऐसे मरीज हैं, जिनमें कोरोना संक्रमण उतना ज्यादा नहीं था। यानी वे आसानी से ठीक हो सकते हैं। ये लोग कोरोना से भयभीत थे। उनके मन में कोरोना संक्रमण को लेकर एक डर बना रहता था। अगर ऐसा कुछ हो गया तो क्या होगा। उनके परिवार में जो सदस्य हैं, वे किस तरह स्थिति को संभालेंगे। इसी तरह के अनेक ख्याल मरीजों के दिमाग पर हावी होने लगते हैं। इसके चलते मरीज तनावग्रस्त रहने लगते हैं। उनके दिमाग में यह डर बैठ जाता है कि कहीं कुछ गलत तो नहीं होने जा रहा।
आईटीबीपी परामर्शदाता, ऐसे मरीजों के साथ खुलकर बातचीत करते हैं। मरीजों से उनकी किसी भी जरूरत के लिए चर्चा की जाती है। आवश्यकता पड़ने पर मरीजों के तीमारदारों और परिवार के सदस्यों का भी मार्गदर्शन किया जाता है। कई मरीजों के दिमाग में परिजनों को लेकर टेंशन रहती है। ऐसे में परामर्शदाता उनके परिजनों से भी मुलाकात करते हैं। उन्हें बीमारी के बारे में बता दिया जाता है। वे यह चर्चा भी करते हैं कि मरीज उनके बारे में क्या सोच रहा है। इससे मरीजों में बेचैनी और डर की भावना दूर हो जाती है। जब मरीज को उनके परिवार के बारे में बताया जाता है तो वे बड़ी राहत महसूस करते हैं। इस केंद्र में कोरोना महामारी की पहली लहर के दौरान भी आईटीबीपी के परामर्शदाताओं ने तनाव प्रबंधन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उसी अनुभव से प्रेरित होकर आईटीबीपी ने इस केंद्र में प्रशिक्षित तनाव परामर्शदाताओं को तैनात करने का निर्णय लिया था।