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नई दिल्ली : कोरोना वायरस का सबसे ज्यादा हमला लोगों के फेफड़ों पर हो रहा है। लेकिन इस मामले में मृत्यु दर काफी कम है। अमेरिका, इटली और ब्राज़ील जैसे देशों में जहां कोरोना का अब तक का सबसे खतरनाक हमला सामने आया है, वहां भी इस मामले में मृत्यु दर पांच फीसदी से कम ही रही है। लेकिन जैसे ही कोरोना के साथ ह्रदय रोग के खतरे को जोड़ देते हैं, इस मामले में मृत्यु दर 50 फीसदी पहुंच जाती है। यानी किसी ह्रदय रोगी के कोरोना संक्रमित होने की स्थिति में उसके मरने की संभावना सामान्य कोरोना रोगी से दस गुना ज्यादा होती है। यही कारण है कि विशेषज्ञ ह्रदय रोगियों को कोरोना से बचाने में विशेष सावधानी बरतने की सलाह दे रहे हैं।
अमेरिका के ऑरलैंडो स्थित रोकलेज रीजनल मेडिकल सेंटर में ह्रदय रोग विभाग के चेयरमैन डॉक्टर अमित शर्मा के अनुसार कोरोना संक्रमण के मामलों में कई बार 35 से 45 वर्ष के युवाओं में भी अचानक मौत की घटनाएं देखने को मिल रही हैं। इसका सबसे बड़ा कारण उनका ह्रदय रोगी होने के साथ-साथ कोरोना की चपेट में आना है।
ह्रदय रोगियों की कैसे हो पहचान
डॉ. अमित शर्मा बताते हैं कि अगर किसी व्यक्ति को अचानक केवल ह्रदय में हल्का या तेज दर्द होने की शिकायत शुरू हो जाती है तो ज्यादा संभावना इसी बात की है कि यह हार्ट अटैक का मामला है। ऐसे रोगियों को तत्काल अस्पताल पहुंचाना चाहिए। ईसीजी और ईको रिपोर्ट निकालकर डॉक्टर जल्दी ही यह तय कर सकते हैं कि यह हार्ट अटैक का ही मामला है या यह कोई अन्य मामला है।
लेकिन अगर किसी ह्रदय रोगी को पहले एक या दो दिन तक कोरोना के सामान्य लक्षण जैसे थकान, खांसी, बुखार या कंपकंपी महसूस होती है और इसके साथ छाती में दर्द की शिकायत होती है, तो यह कोरोना संक्रमण के साथ ह्रदय रोग की समस्या है। ऐसे मामलों में रोगी को तुरंत अस्पताल ले जाना जरूरी है क्योंकि यह सामान्य कोरोना से दस गुना से ज्यादा घातक साबित हो सकता है।
क्या होता है इस स्थिति में
डॉ. अमित शर्मा के मुताबिक सामान्य तौर पर हार्ट अटैक के मामले में ह्रदय की कोशिकाओं पर हमला होता है। अगर यह हमला हार्ट के किसी एक हिस्से पर होता है तो बाकी के हिस्से काम करना जारी रखते हैं। ऐसे रोगियों को सही समय पर अस्पताल पहुंचाकर उन्हें ब्लड थिनर (रक्त को पतला करने की दवाएं) देकर या आवश्यकता पड़ने पर स्टंट डालकर उनकी जान बचायी जा सकती है। नजदीक में अच्छी स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध होने के कारण अमेरिका जैसे देश में इस तरह के मामलों में पांच फीसदी रोगियों की भी मौत नहीं होने पाती।
लेकिन जिन रोगियों पर ह्रदय रोग के साथ-साथ कोरोना का हमला भी होता है तो उनमें फेफड़ों के प्रभावित होने की आशंका बढ़ जाती है। इअसे रोगियों का ह्रदय पहले ही पूरी क्षमता के साथ काम नहीं कर पाता, लेकिन फेफड़ों के भी संक्रमित हो जाने से उन्हें ऑक्सीजन भी नहीं मिल पाती और यह उनकी मौत का खतरा बढ़ा देता है।
ह्रदय रोगियों को कैसे बचाएं
ह्रदय रोगी कोरोना के खतरे से बचे रहें, इसके लिए उन्हें किसी भी संक्रमण से बचाना प्राथमिकता होना चाहिए। उनका रक्तचाप हमेशा सुरक्षित सीमा में रखने की कोशिश होनी चाहिए। रोगियों को लगातार समय-समय पर जूस, पानी, चाय देते रहना चाहिए, जिससे उनके रक्त में पानी की मात्रा कम न होने पाए और रक्त के गाढ़ा होने की समस्या से बचा जा सके।
दवा हर हाल में जारी रखें
कोरोना के पहले काल में विशेषज्ञ इस बात पर एकमत नहीं थे कि कोरोना की समस्या सामने आने के बाद रोगियों की रक्तचाप और ह्रदय रोग की दवाएं जारी रखनी चाहिए या नहीं। लेकिन अब सभी विशेषज्ञ इस बात पर एकमत हैं कि कोरोना संक्रमण होने पर भी रक्तचाप और हृदयरोग की दवाएं जारी रखनी चाहिए। पाया यह गया कि जिन रोगियों की दवाएं रोक दी जाती थीं, वे फेफड़ों के साथ-साथ ह्रदय रोग की गंभीरता बढ़ने से ज्यादा जल्दी मौत के शिकार हो जा रहे थे।
कोरोना के मामले में कई रोगियों के रक्त में थक्के भी बनने लगते हैं। इस स्थिति में ह्रदय रोगियों की समस्या बहुत गंभीर हो सकती है। लेकिन अगर वे इस स्थिति में भी रक्त को पतला करने की दवाएं लेते रहते हैं तो उन्हें इसका लाभ मिलता है जिससे रक्त में थक्के नहीं बनते और उनकी स्थिति ज्यादा गंभीर नहीं होती। इसी प्रकार जिन रोगियों को उच्च रक्तचाप की समस्या थी, उनकी दवाएं रोकने पर उनकी सांस लेने की समस्या बढ़ गई और उनकी हालत ज्यादा खराब हो गई। इसलिए अब हर हाल में रोगियों की अन्य दवाएं जारी रखनी चाहिए।
वैक्सीन लगवाना बेहद जरूरी
ऐसे रोगियों को वैक्सीन लेने में कोई परेशानी नहीं है। बल्कि उनके ज्यादा खतरे को देखते हुए ही सभी देशों की सरकारों ने इसे रोगियों को सबसे पहले प्राथमिकता के साथ वैक्सीन दिलाने की व्यवस्था की है। इसलिए ऐसे रोगियों को जितना जल्द हो सके, वैक्सीन अवश्य लगवा लेना चाहिए।
नकारात्मक सोच और खबरों से बचें
किसी भी नकारात्मक सोच से बचने की कोशिश करनी चाहिए। नकारात्मक खबरों के ज्यादा संपर्क में आने से चिंता-अवसाद की समस्या बढ़ती है जो ‘ब्रोकन हार्ट सिंड्रोम’ को जन्म देती है। इससे ह्रदय की मांसपेशियां प्रभावित हो सकती हैं। इससे बचने के लिए सकारात्मक सोच को बढ़ावा देना चाहिए। अगर ज्यादा कठोर एक्सरसाइज़ करते हों या ज्यादा लंबी दूर तक टहलने जाते हों तो इस तरह के हमले के बाद लगभग एक महीने तक कठोर एक्सरसाइज करने से बचें। कुछ मिनटों के लिए अपने गली-मुहल्ले में हल्का टहल सकते हैं। तैलीय चीजों, ज्यादा मीठी-नमकीन चीजों को खाने से बचने की कोशिश करनी चाहिए। इनकी जगह हल्का सुपाच्य भोजन, फल-सब्जी का सेवन करना चहिये।