कविता : मेरी मर्जी-मेरा मन

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कविता : मेरी मर्जी-मेरा मन

बदल गया है आज जमाना
बदला है परिवेश
सीधी, सरल, शान्त बाला ने
बदल दिया है देश
बहुत कठिन है उसे समझना
नहीं अधिक नादानी
खिली धूप सी करे उजाला
अपनी मर्जी की रानी
कहां किसी से पीछे है वो
भोली सी है प्यारी
डॉक्टर, इंजीनियर, कलेक्टर
सीएस की तैयारी
सेना में परचम फहराया
पहने खाकी वर्दी
पूछो क्यों तुम गुम सुम रहती
बोले “मेरी मर्जी-मेरा मन”
मन में इसके क्या चलता है
नहीं समझ कोई पाए
मंद गति सरिता सी धारा
अविरल बहती जाए
बचपन से संस्कार सिखाओ
रोशन जहां करेगी
बेटी है अनमोल खजाना
खुद ही खुद संवरेगी

कवि हरीश शर्मा
लक्ष्मणगढ़ – (सीकर)
देश की उपासना

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