Getting your Trinity Audio player ready...
|
गांव के जीवन में प्रेम की बुनियाद चाहिए:रमेश भइया
ब्यूरो चीफ आर एल पाण्डेय
लखनऊ।गांव में शोषण बहुत चलता है, जिससे उसकी शक्ति क्षीण होती है।गांव में एक श्रमशक्ति और दूसरी कुशलता या ज्ञानशक्ति , ये दो शक्तियां होती है।ये दोनों शोषण के कारण गांव के बाहर चली जाती है। गांव के मजदूरों को और भूमिहीनों को गांव में काम नहीं मिलता इसलिए उद्योग की खोज में वे शहर में आते हैं।वह एक बड़ी समस्या है। हजारों लोगों का।शहर पर आक्रमण होता है।फिर वहां भी उन्हें खास सुविधा मिलती हो,ऐसा नहीं। अगर गांव में आनंदमय , सुखमय जीवन होता, तो लोग शहरों में कभी नहीं जाते। इस तरह श्रम करनेवाले बाहर जाते हैं,तो गांव की शक्ति का क्षय होता है। गांव के पढ़े_ लिखे लोग भी गांव छोड़कर शहर में जाते हैं,तो ज्ञानशक्ति और श्रमशक्ति , दो बहुत बड़ी शक्तियां गांव से बाहर चली जाती है,जिससे गांव का सतत क्षय होता है।फलस्वरूप न गांव सुखी होता है, न शहर और न देश ही,क्योंकि देश को इमारत देहातों की नींव पर ही तो खड़ी है। गांव में एक तीसरी भी शक्ति है, उसे हम प्राप्त करें, तो दो शक्तियां जो बाहर जा रही है,उन्हें रोककर गांव में ही रख सकते हैं। वह है,प्रेम की शक्ति। गांव में किसी के घर में जन्म हुआ,कहीं मृत्यु हुई,कोई बीमार हुआ,तो फौरन सारा गांव जान जाता है।इस तरह सुख _ दुःख में सभी लोग हिस्सा लेते हैं।आज यह प्रक्रिया अवश्य कम हुई है, लेकिन कहीं_कहीं कुछ अंशों में चलती ही है।यह प्रेम शहर में बहुत ही कम है। जहां शहर का मुख्य आधार लोभ और पैसा है, वहीं गांव का मुख्य आधार प्रेम है।यह प्रेम प्राप्त करेंगें, और इसके आधार पर गांव की व्यवस्था करेंगें,तो श्रमशक्ति और ज्ञान शक्ति, दोनों गांव में रहेंगी।