अवध चित्र साधना के दो दिवसीय ‘फिल्म फेस्टिवल’ में लिया गया समाज को दिशा देने वाले विषयों को बढ़ावा देने का संकल्‍प

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अवध चित्र साधना के दो दिवसीय ‘फिल्म फेस्टिवल’ में लिया गया समाज को दिशा देने वाले विषयों को बढ़ावा देने का संकल्‍प

– ‘अवध चित्र साधना’ तथा जनसंचार एवं पत्रकारिता विभाग बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय (बीबीएयू) लखनऊ के संयुक्त तत्वावधान में दो दिवसीय ‘फिल्म महोत्सव’

ब्यूरो चीफ आर एल पाण्डेय

लखनऊ। ‘अवध चित्र साधना’ तथा जनसंचार एवं पत्रकारिता विभाग बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय (बीबीएयू) लखनऊ के संयुक्त तत्वावधान में दो दिवसीय ‘फिल्म महोत्सव’ का आयोजन शनिवार को किया गया। रविवार को इस कार्यक्रम का दूसरा और अंतिम दिन होगा।

आयोजकों ने बताया कि अवध चित्र साधना अवध क्षेत्र के स्थानीय फिल्मकारों, विद्यार्थियों और जागरूक लोगों के माध्यम से प्रथम बार फिल्म फेस्टिवल का आयोजन किया गया। दो दिवसीय कार्यक्रम के उद्घाटन करते हुए बाबासाहेब भीमराव आम्‍बेडकर की मूर्ति पर माल्यार्पण किया गया। उद्घाटन सत्र को सम्‍बोधित करते हुए अवध चित्र साधना के अध्यक्ष प्रो. गोविन्द जी पांडेय ने कार्यक्रम की प्रस्तावना को रखा। प्रो गोविंद जी पांडेय ने अवध चित्र साधना के उद्देश्य बताते हुए बताया कि कैसे वंचित वर्ग अब सिनेमा माध्यम से अपने समाज की बाते मज़बूती से रखने लगा । विशिष्ट अतिथि अतुल पांडेय ने कहा कि आज की फिल्में पुरानी तकनीकी से निकलकर नई तकनीक के साथ समाज को आनंदित कर रही हैं।

वहीं, कार्यक्रम बतौर मुख्य अतिथि एवं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय सह प्रचार प्रमुख नरेंद्र ठाकुर ने अपने उद्बोधन में कहा कि भारत में सिनेमा प्रारम्भ करने का श्रेय दादा साहब फाल्के को है। तत्कालीन परिस्थितियों को याद करते हुए बताया कि फिल्म ईसाई से प्रेरित न होकर अपने भारतीय संस्कृति से प्रेरित हुआ करती थी। उन्‍होंने अपनी पहली फिल्म राजा हरिश्चंद्र नामक चरित्र से बनाई। फाल्के साहब ने व्यावसायिक न होकर भारतीय संस्कृति से प्रेरित होकर फिल्‍म बनाई। भारतीय सिनेमा ने स्वाधीनता आंदोलन में अपनी महती भूमिका निभाई है।

नरेन्द्र ठाकुर जी ने कहा कि सिनेमा सामाजिक समस्याओं का चित्रण करने के साथ ही मनोरंजन भी करता है। अवध चित्र साधना फिल्म फेस्टिवल मनोरंजन के साथ-साथ भारतीय किस्से, समस्या, प्रेरक कहानियों जैसी समाज के दिशा देती विषयों को बढ़ावा देने का एक प्रयास है। नई पीढ़ी को फिल्मों के माध्यम से प्रेरणा देना। प्रोत्साहन देने के साथ ही अच्छा दर्शन दिया जा सकता है। नरेंद्र ठाकुर ने कहा कि नई पीढ़ी को फिल्मों के माध्यम से सामाजिक चेतना के साथ व्यावहारिक पक्ष के साथ समाज को दिशा देनी चाहिए।

फिल्म फेस्टिवल के उद्घाटन सत्र के अध्यक्ष बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर यूनिवर्सिटी के माननीय कुलपति प्रो. एनएमपी वर्मा ने सभी को सम्‍बोधित करते हुए कहा कि हमें फिल्मों के कंटेंट के माध्यम से समाज में अग्रणी भूमिका निभानी चाहिए। फिल्में समाज का दर्पण होती हैं। इसके माध्यम से हम मनोरंजन के साथ-साथ सामाजिक कुरीतियों का प्रदर्शन किया जाता है। प्रो. वर्मा ने कहा कि आज नई तकनीकी के आने से फिल्में अंतिम व्यक्ति के हाथ में आ चुकी हैं।उद्घाटन सत्र के बाद की मास्टर क्लास में फ़िल्म निर्माता अतुल पांडेय से बात करते हुए प्रो गोविंद जी पांडेय ने सिनेमा के विभिन्न आयाम के बारे में विस्तार से बात रखी । अतुल पांडेय ने कहा कि कैसे इतनी जनसंख्या होने के बाद भी यूपी का फ़िल्मों में कोई अस्तित्व नहीं है। हिन्दी फ़िल्मी में यूपी वाला सिर्फ़ भैया ही बना रह गया । इस चित्रण को बदलने की ज़रूरत है ।

उदघाटन सत्र में धन्यवाद ज्ञापित करते हुए अवध चित्र साधना के सचिव अरुण त्रिवेदी जी ने कहा कि अवध चित्र साधना स्थानीय स्तर के युवाओं और अवध क्षेत्र के साथ सभी प्रकार के लोगों को फिल्म प्रदर्शन के लिए मंच प्रदान करता है। अरुण जी ने कहा कि सभी अतिथियों के साथ-साथ विद्यार्थियों का भी आभार व्यक्त किया। फिल्म फेस्टिवल कार्यक्रम के इस कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्वी उत्तर प्रदेश क्षेत्र के प्रचार प्रमुख सुभाष जी, सह प्रचार प्रमुख मनोजकांत जी, अवध प्रांत के प्रचार प्रमुख डॉ. अशोक दुबे जी, काशी विद्यापीठ के पूर्व निदेशक डॉ. ओम प्रकाश सिंह जी, जनसंचार एवम पत्रकारिता विभाग के डॉ. महेंद्र कुमार पाढ़ी जी, डॉ. कुंवर सुरेंद्र बहादुर जी, डॉ . लोकनाथ, डॉ. अरविंद जी, डॉ. मो. नसीब जी सहित बीबीएयू के साथ लखनऊ में सभी पत्रकारिता संस्थान के शिक्षक और विद्यार्थी बड़ी संख्‍या में उपस्थित रहे।

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