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28 नवम्बर – श्रीरामचरितमानस की भाव सहित चौपाई
नमो राघवाय 🙏
हित हमार सियपति सेवकाईं ।
सो हरि लीन्ह मातु कुटिलाई ।।
मैं अनुमानि दीख मन माहीं ।
आन उपायँ मोर हित नाहीं ।।
( अयोध्याकाण्ड 177/1)
राम राम 🙏🙏
दशरथ जी के परलोक गमन के बाद भरत जी को बुलाया गया है , दशरथ जी की सारी क्रिया करने के बाद वशिष्ठ जी ने भरत जी को राज सम्भालने को कहा । भरत जी कहते हैं कि पिताजी स्वर्ग में और सीताराम जी वन में हैं , ऐसे में मुझे राज्य करने के लिए आप कह रहें हैं , इसमें मेरा हित है या आप सब का काम बन रहा है । मेरा हित तो सीताराम जी की सेवा में है जिसे माता की कुटिलता ने छीन लिया है । मैंने मन में विचार कर पाया कि किसी अन्य उपाय से मेरा हित होने वाला नहीं है ।
जिसने भी अपने को जगदीश की सेवा में लगाया , वह सुखी हो गया, उसका हर तरह से हित हो गया । भरत जी की तरह हम आप भी विचार कर , राम सेवा में लगकर अपना हित कर लें । अतएव! जय सियाराम जय जय सियाराम 🚩🚩🚩
संकलन तरूण जी लखनऊ