Getting your Trinity Audio player ready...
|
अयोध्या।प्रदेश मे चीरहरण महिला का हुआ पर नंगा लोकतंत्र हो गया ।यह सब उस मुल्क में हुआ जो दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने का दावा करता है। शर्म की बात यह कि यह सब निजाम की आंखों के सामने उसकी नाक के नीचे हुआ और सबके सब न सिर्फ कौरव दरबार की तरह मूक दर्शक बने रहे बल्कि दुशासनों की प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष मदद भी करते रहे । दलील ये कि पहले भी ऐसा होता रहा।मतलब साफ है कि आगे भी ऐसा होता रहेगा और ऐसा होना जायज है।यानी बचा खुचा लोकतंत्र खत्म हो गया।इस बीच निहायत सलीके से निर्विरोध की संस्कृति को लोकतंत्र के खाँचे में फिट करने की कोशिश भी तेज हो गई है। निर्विरोध का सीधा मतलब लोकतंत्र की जड़ में मठ्ठा। सत्ता के बूते हिंसा – आतंक और प्रलोभन की ऐसी बाड़ खड़ी कर दो कि कोई और चुनाव प्रक्रिया में हिस्सा ही न ले सके । ये रास्ता सीधे तानाशाही की ओर जाता है। काबिलेगौर है कि इसे खुल्लम खुल्ला चमकदार बनाया जा रहा। अखबारों की सुर्खियां और मीडिया की हेड लाइन बन रहीं- इतने पदों पर निर्विरोध कब्जा।लोकतंत्र की बुनियाद है चुनाव और उसकी पारदर्शी प्रक्रिया,अगर यही नहीं तो कैसा मतदान और कैसा मतदाता।बेहतर भी दल का मुखिया चुना हुआ नहीं है , ज्यादातर नामित है और बाकी निर्विरोध।जब दलीय व्यवस्था में ही चुनावी संस्कृति का कत्ल कर दिया गया हो तो देश के लोकतांत्रिक निजाम पर इसका असर दिखना स्वाभाविक है। राजनीति चेहरों का गुलाम बन कर रह गई है विचारधारा की कोई कीमत नहीं ऐसे माहौल में राजनीतिक फिसलन ने चुनाव का चेहरा ही बदल दिया है जिसमें हिंसा से लथपथ जीत की ख्वाहिश और उसकी कामयाबी पर जश्न लोकतंत्र का चीरहरण ही तो कर रहा है।