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मछली शहर। वैसे तो भगवान शिव का रुद्राभिषेक कभी भी किया जा सकता है वह उन्हें अत्यंत प्रिय है । लेकिन श्रावण मास में किया गया रुद्राभिषेक विशेष फलदायी माना जाता है। श्रावण मास में भगवान शिव की पूजा व रुद्राभिषेक अनंत गुना अधिक फलदायी माना गया है। क्योंकि श्रावण मास में भगवान शिव के सौम्य स्वरूप के दर्शन होते हैं। रुद्राभिषेक से शिव अत्यधिक प्रसन्न होते हैं और शीघ्र ही अभीष्ट कामनाओं की प्राप्ति होती है।ज्योतिष एवं तंत्र आचार्य डॉ0 शैलेश मोदनवाल के अनुसार भिन्न-भिन्न वस्तुओं के द्वारा रुद्राभिषेक कराने से भिन्न भिन्न फलों की प्राप्ति होती है । यदि जल की धारा से भगवान शिव का अभिषेक किया जाए तो इससे हर कार्यों की सिद्धि प्राप्त होती है जबकि कुश के जल की धारा से व्याधि की शांति होती है। यदि दधि की धारा से रुद्राभिषेक किया जाए तो पशु प्राप्ति की कामना पूर्ण होती है। इसी प्रकार गन्ने के रस से लक्ष्मी की प्राप्ति तो अर्थ एवं धन की कामना के लिए मधु से रुद्राभिषेक कराने का विधान शास्त्रों में वर्णित है। तीर्थों के जल का विशेष महत्व है, इसलिए उक्त जल से अभिषेक करने पर मोक्ष की प्राप्ति तथा को गोदुग्ध की धारा से पुत्र प्राप्ति की कामना पूर्ण होती है। सर्व कल्याण एवं वंश वृद्धि की कामना हो तो घृत की धारा से अभिषेक कर आना चाहिए। जबकि शर्करा मिश्रित जल से अभिषेक करने पर रूप सौंदर्य की प्राप्ति होती है।कर्मकांड के विद्वान मुरारि श्याम पांडेय का कहना है कि पौराणिक मान्यता अनुसार रुद्राभिषेक के एक पाठ से बाल ग्रहों की शांति, तीन से उपद्रव की शांति, पांच से ग्रहों की शांति, सात से महाभय शांति, नौ से सर्व विध शांति होती है।