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अयोध्या। सरदार वल्लभ भाई पटेल और आचार्य जे॰ बी॰ कृपलानी एक आत्मा, दो शरीर थे। उनके परस्पर सम्बन्ध इतने प्रगाढ़ थे कि प्रत्येक फैसला वे साथ-साथ लेते थे। यह विचार डॉ॰ राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय के वित्तअधिकारी प्रो॰ चयनकुमार मिश्र ने व्यक्त किए। श्री मिश्र अमर शहीद संत कँवरराम साहिब सिंधी अध्ययन केंद्र में आयोजित सिंधी, सिंध और सरदार पटेल विषय पर आयोजित संगोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे थे.
उन्होंने कहा कि ब्रिटिश भारत के सिंध प्रदेश में देश की आज़ादी के लिए चलाए जा रहे आन्दोलन के तरीकों से कांग्रेस के तत्कालीन राष्ट्रीय नेता बहुत प्रभावित थे, उनमें से सरदार पटेल एक थे। सरदार पटेल ने अनेक अवसरों पर डॉ॰ चोइथराम गिदवानी, जयरामदास दौलतराम और आचार्य कृपलानी के कार्याें की सराहना भी की थी। प्रो॰ मिश्र ने कहा कि सरदार पटेल ही कृपलानी को गुजरात विद्यापीठ ले गए थे। जहाँ उन्हें 06 साल तक एक दूसरे को नजदीक से जानने समझने का न केवल अवसर मिला बल्कि कृपलानी को इसी दौरान आचार्य की पदवी भी मिली। संगोष्ठी के मुख्य अतिथि वास्तुविद् अनूप रामानी ने बताया कि 1946 में आचार्य कृपलानी को कांग्रेस के अध्यक्ष पद के लिए सरदार पटेल ने ही समर्थन किया था। श्री रामानी ने इसी परिप्रेक्ष्य में एक सवाल उठाया कि इस विषय पर खोज होनी चाहिए कि विभाजन के समय कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर जे॰ बी॰ कृपलानी के होने के बावजूद आधा पंजाब और आधा बंगाल तो भारत को मिला, किन्तु राजस्थान सीमा से जुड़े सिंध का एक भी हिंदू बहुल गाँव भारत को नहीं मिल सका.
इस अवसर पर एम॰ ए॰ सिंधी के विद्यार्थियों रेखा खत्री, शालिनी साधवानी, संगीता खटवानी, जयप्रकाश क्षेत्रपाल, आरती केशवानी, अशोककुमार, पायल मोटवानी और सागर माखेजा ने अपने शोध आलेख प्रस्तुत किए। अध्ययन केंद्र के मानद निदेशक प्रो॰ आर॰ के॰ सिंह ने स्वागत तथा आभार एवं संचालन केंद्र के मानद सलाहकार ज्ञानप्रकाश टेकचंदानी ‘सरल’ ने किया।