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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुछ दिनों पहले तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद में ‘स्टैच्यू ऑफ इक्वैलिटी’ का अनावरण किया। ‘स्टैच्यू ऑफ इक्वैलिटी’ 11वीं-12वीं सदी के महान हिंदू संत रामानुजाचार्य की प्रतिमा है। बताया जाता है कि 216 फीट ऊंची यह प्रतिमा चीन से बनकर आई। कथित तौर पर चीन की एक कंपनी एरोसन कॉरपोरेशन ने सात हजार टन पंचलोहे ( कॉपर, सिल्वर, गोल्ड, जिंक और टाइटेनियम का मिश्रण) से यह प्रतिमा बनाई है। इसे 135 करोड़ रुपये में बनाया गया और करीब 1600 टुकड़ों में भारत लाया गया।
हालांकि इसका डिजाइन भारत में ही तैयार किया गया और इसे असेंबल भी यहीं किया गया। प्रतिमा के चीन में कथित निर्माण के दावे को लेकर लेकर विवाद भी छिड़ गया था। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने दावा किया कि प्रतिमा चीन में बनी है। उन्होंने पीएम मोदी के आत्मानिर्भर भारत के नारे पर सवाल भी उठाया था।
पटेल की प्रतिमा भी चीन में तैयार हुई
इससे पहले कहा गया कि देश के पहले गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल की करीब सवा तीन साल पहले गुजरात के केवड़िया में लगाई गई दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ भी चीन में बनाई गई। इस प्रतिमा की ऊंचाई 597 फीट है। इसका डिजाइन प्रसिद्ध मूर्तिकार राम वी सुतार ने बनाया था। प्रतिमा बनाने का मुख्य ठेका एलएंडटी कंपनी को दिया गया था, जिसने चीन की एक कंपनी को मूर्ति ढालने का काम सौंपा था।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक आंध्र प्रदेश सरकार भी विजयवाड़ा में भीम राव आंबेडकर की एक विशाल प्रतिमा स्थापित करना चाहती है और इसके लिए राज्य सरकार ने चीन की कंपनियों से संपर्क किया है।
ऐसे में सवाल यह उठता है कि आखिर बड़ी प्रतिमाएं चीन में ही क्यों तैयार की जाती है?
चीन की अर्थव्यवस्था में ऊंची उछाल के साथ चीन में ऊंची इमारतों और ऊंची मूर्तियों के निर्माण की प्रवृति बढ़ी। समय के सात चीन को गगनचुंबी इमारतें और मूर्तियां बनाने में महारत हासिल होती गई। 2016 में चीन ने 80 गगनचुंबी इमारतें बनाकर इसे रिकॉर्ड साल बना दिया। ये सभी इमारतें 650 फीट से अधिक ऊंची थी।
चीन में एक हजार से अधिक बुद्ध की विशाल प्रतिमाएं
इसी तरह पिछले एक दशक में चीन की कंपनियों ने कई विशालकाय कांस्य मूर्तियां भी बनाई हैं। चीन में ‘स्प्रिंग टेंपल बुद्धा’ जैसी कई विशाल प्रतिमाएं बनी हुई हैं। एक अनुमान के मुताबिक चीन में बुद्ध की एक हजार से अधिक विशाल मूर्तियां हैं, जो 500 फीट से अधिक ऊंची हैं और ये मूर्तियां पर्यटन को बढ़ावा देने में भी महत्वपूर्ण निभा रही हैं। 2016 में एक चीनी राज्य के स्वामित्व वाली कंपनी ने 58 मीटर ऊंची प्रतिमा लगाई थी। यही वजह है कि पिछले एक-डेढ़ दशक में दुनिया का ध्यान विशालकाय प्रतिमा बनाने के लिए चीन की तरफ तेजी से गया।
इसकी बड़ी वजह क्या?
चीन में मूर्तिकला की एक परंपरा रही है। चीन वर्षों से कांस्य की मूर्तियां बना रहा है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक चीन की कंपनियां विशेष रूप से कांस्य की विशाल मूर्तियों के डिजाइन और निर्माण के लिए विश्व प्रसिद्ध हैं। ये कंपनियां विशालकाय कांस्य प्रतिमाएं बनाने के लिए पारंपरिक और आधुनिक तरीकों और तकनीकों का समन्वय करती हैं और बड़े पैमाने पर ऐसी मूर्तियां बना रही हैं।
कैसे तैयार होती है विशालकाय मूर्तियां
विशाल प्रतिमाएं बनाने के लिए उसके विभिन्न हिस्सों को अलग-अलग ढाला जाता है। इसके लिए चीन में बड़े बड़े कारखाने हैं, जहां हजारों कामगार काम करते हैं। इसी वजह से बड़ी मूर्तियों के अलग-अलग हिस्सों को बहुत कम समय में ढाल कर तैयार कर लिया जाता है। इन कंपनियों के पास कुशल तकनीकी टीमों का एक समूह है जो थ्री डी तकनीकों का सहारा लेकर कई बेहतरीन मूर्तियां बना रहे हैं। चीन में ढलाई होने के बाद मूर्ति के सभी हिस्सों को वहां भेजा जाता है जहां से ऑर्डर आता है। वहां पहुंचने पर मूर्ति के सभी हिस्सों को बारी बारी से जोड़ा जाता है और फिर उन पर पॉलिश की जाती है।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक सीनो मूर्तिकला समूह लिमिटेड जैसी कंपनी कांस्य, तांबा, स्टेनलेस स्टील, एल्यूमीनियम, कॉर्टन स्टील, कार्बन स्टील और अन्य स्टील के डिजाइन और उत्पादन के लिए अग्रणी निर्माता कंपनी है। कंपनी पिछले 20 सालों से उत्कृष्ट और उच्च गुणवत्ता वाली कांस्य मूर्तियां बना रही है और दावा किया जाता है कि इसे पूरी दुनिया में सहयोगी कलाकारों, मूर्तिकारों, वास्तुकारों और डिजाइनरों से मान्यता मिली हुई है।
क्या भारत में नहीं तैयार हो सकती ये प्रतिमाएं
भारत में विभिन्न धातुओं से मूर्तियां बनाने की कला काफी पुरानी है। भारत में धातुओं से बनी देवी-देवताओं और सजावटी सामानों की मूर्तियां बनाई जाती हैं लेकिन बड़ी और विशालकाय कांस्य की मूर्तियां बनाने में भारत की विशेषज्ञता बहुत सीमित है। सैकड़ों फीट ऊंची प्रतिमाएं बनाने के लिए विशेष तकनीक और बुनियादी ढांचे की आवश्यकता होती है, जिसकी भारत में कमी है।