लखनऊ: जनता पर बढ़ेगा ज्यादा गृहकर का बोझ, राज्य वित्त से मिलने वाली मदद बंद करने की तैयारी

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house tax will be increased in Lucknow.

नगर निगम को राज्य वित्त से मिलने वाली मदद बंद करने को लेकर अंदरूनी तैयारी चल रही है। यह मदद बंद हुई तो शहरवासियों पर गृहकर का बोझ बढ़ना तय है। नगर निगम प्रशासन पहले ही कई साल से गृहकर बढ़ाने की कोशिश में लगा है, लेकिन बीच-बीच में चुनाव आ जाने से ऐसा नहीं कर सका। निगम पर पहले से ही करीब 300 करोड़ की देनदारी है। ऐसे में राज्य वित्त में कटौती शहरवासियों पर गृहकर का बोझ बढ़ा सकती है।

कर्मचारियों के वेतन-पेंशन को छोड़कर नगर निगम को सफाई, मार्ग प्रकाश, पार्षद कोटा आदि पर ही 600 करोड़ से अधिक खर्च करना पड़ता है। वहीं, आय करीब 400 करोड़ के आसपास है। ऐसे में यदि राज्य वित्त का पैसा न आए तो कर्मचारियों को वेतन नहीं मिल पाएगा। करीब 300 करोड़ की देनदारी और शहर के रखरखाव पर बढ़ते खर्च को देखते हुए नगर निगम प्रशासन पिछले पांच साल से गृहकर बढ़ाने के प्रयास में है, लेकिन राजनीतिक दबाव के चलते गृहकर नहीं बढ़ा। अब राज्य वित्त में कटौती हुई तो गृहकर बढ़ना तय है।

12 साल से नहीं बढ़ा गृहकर
वर्ष 2010 में गृहकर का रिवीजन किया गया था। उसके बाद अब तक  उन्हीं दरों पर गृहकर वसूल किया जा रहा है, जबकि नगर निगम अधिनियम में हर दो साल पर गृहकर रिवाइज करने का प्राविधान है। ऐसे में नगर निगम की आय में बढ़ोत्तरी नहीं हो पा रही है। बीते साल भाजपा पार्षद व कार्यकारिणी सदस्य साधाना वर्मा ने महापौर को पत्र लिखकर सवाल भी उठाया था कि जब दो साल में गृहकर रिवाइज करने का प्रावधान है तो वह अब तक क्यों नहीं किया गया। उसके बाद कार्यवाही शुरू हुई, लेकिन कोरोना व अन्य कारणों से मामला दब गया। जानकारों ने बताया कि पूर्व में गृहकर में बढ़ोत्तरी का जो प्रस्ताव बना था, वह लागू हुआ तो गृहकर की दरों में दो गुना तक की बढ़ोत्तरी हो सकती है।

गृहकर बढ़ते ही बढ़ जाएगा जलकर
जलकल विभाग की ओर से अभी जलकर की गणना गृहकर के आधार पर की जाती है। हाउस टैक्स के लिए जो एआरवी (एनुअल रेंटल वैल्यू) निकाली जाती है उसी पर जलकल 12.5 प्रतिशत की दर से वाटर टैक्स लेता है। ऐसे में जब गृहकर बढ़ेगा तो वाटर टैक्स भी खुद व खुद बढ़ जाएगा।

कटौती हुई है, अभी बंद नहीं हुआ है
महापौर संयुक्ता भाटिया और नगर आयुक्त अजय द्विवेदी का कहना है कि राज्य वित्त में कटौती इधर बढ़ी है, लेकिन अभी बंद किए जाने जैसी बात नहीं है। इस संबंध में कोई आदेश भी नहीं आया है। बजट कम होने के चलते ही कार्यदायी संस्था के कर्मचारियों की संख्या में कटौती करनी पड़ी।

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