मनुष्य का भाग्य स्वयं की सोच का निर्माता है, मनुष्य जो देखता है जो सुनता है जो पढ़ता है या जो सीखता है उसका आकलन ही अपने स्वयं के बुद्धि विवेक से करता है, और उस दिशा में लगातार चलता रहता है,
ये और बता है की कुछ व्यक्ति प्रकृति के अनुसार अपने जीवन जीने की शैली को अपनाते है,
कुछ सामाजिक बंधनों और परंपराओं के अनुसार अपने जीवन जीने की शैली को अपनाते है,
बस देखना ये होता की हम क्यों और किसके लिए अपने भाग्य को बनाते है,
वर्तमान में भी कुछ नेताओं ने जनता को भ्रमित कर, जनता के भविष्य (भाग्य) को वर्तमान के उद्योगपतियों को बेच (लीज पर) दिया है और आगे भी बेचा का प्लान चल रहा है,
ये और बात है कि गरीब जनता को आपसी जाति धर्म की नफरत के कारण ये सब समझ नहीं आ रहा है,
लेकिन समझना तो होगा, कही दूसरो को नीचा दिखाते दिखाते हम स्वयं इतने नीचे न गिर जाए की हम स्वयं अपने आपको उठने के योग्य ही न रहे….