विश्व स्ट्रोक दिवस के अवसर पर मेदांता हॉस्पिटल, लखनऊ में प्रेस कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया गया

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विश्व स्ट्रोक दिवस के अवसर पर मेदांता हॉस्पिटल, लखनऊ में प्रेस कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया गया।

– न्यूरोसाइंसेज, न्यूरोसर्जरी, इमरजेंसी, इंटरवेंशनल रेडियोलॉजी टीम के साथ स्ट्रोक पर चर्चा की गई

– देशभर में स्ट्रोक के बढ़ते मामलों को लेकर मेदांता हॉस्पिटल, लखनऊ के विशेषज्ञों ने चिंता व्यक्त की

ब्यूरो चीफ आर एल पाण्डेय

लखनऊ। स्ट्रोक के मामले देशभर में लगातार बढ़ते जा रहे हैं। यदि इसके आंकड़ों पर गौर करें तो विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया भर में हर साल 15 मिलियन लोग स्ट्रोक से पीड़ित होते हैं। इनमें से 5 मिलियन की मृत्यु हो जाती है और अन्य 5 मिलियन विकलांग हो जाते हैं, जिससे उनके परिवार पर भी बोझ बढ़ता है। इसीलिए जागरूकता हेतु विश्व स्ट्रोक दिवस के मद्देनजर मेदांता हॉस्पिटल के स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने इसके बढ़ते मामलों को लेकर चिंता जताते हुए विभिन्न मुद्दों पर चर्चा की। यह चर्चा 27 अक्टूबर शुक्रवार अपराह्न 3.00 बजे छठवीं मंजिल मेदांता ऑडिटोरियम में आयोजित की गई।

डॉ ए के ठकर, डायरेक्टर न्यूरोलॉजी, ने बताया कि यह समस्या अधिकतर 50 वर्ष की आयु के बाद लोगों में देखने को मिलती हैं, परंतु पिछले कुछ समय से 30 से 35 वर्ष की आयु के लोगों में भी ब्रेन स्ट्रोक के मामले बढ़ रहे हैं। अनुचित खानपान, व्यायाम की कमी व तनाव के कारण स्ट्रोक की संख्या हर साल बढ़ती ही जा रही है, जो कि अपने आप में ही एक चिंता का विषय है इसलिए हर साल स्ट्रोक डे मनाया जाता है ताकि स्ट्रोक को लेकर जागरूकता बढ़ाई जा सके। इससे बचने के लिए आप इसके लक्षणों पर ध्यान रखें। मरीज को बोलने और समझने में बहुत कठिनाई होती है, वह अचानक से किसी वाक्य को बोलने में सक्षम नहीं हो पाता है, उसे यदि कोई भी संवाद करने को कहा जाए तो वह उसमें असफल हो जाता है। उसे कुछ समझ में भी नहीं आता, उस दरमियान ऐसे में मरीज को शांत रहने के लिए कहें और तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।

डॉ रित्विज बिहारी, एसोसिएट डायरेक्टर न्यूरोलॉजी, ने बताया कि स्ट्रोक की स्थिति में अस्पताल पहुंचने में गोल्डन ऑवर के महत्व पर जोर देते हुए लोगों को गोल्डन ऑवर के महत्व के बारे में शिक्षित किया, जो स्ट्रोक शुरू होने के 4.5 घंटे बाद तक रहता है। एक स्ट्रोक के बाद, प्रति मिनट 2 लाख से अधिक मस्तिष्क कोशिकाएं मर जाती हैं; इस स्थिति में, रोगी को नजदीकी अस्पताल ले जाना चाहिए, और न केवल किसी अस्पताल, बल्कि स्ट्रोक के लिए तैयार अस्पताल, ताकि रोगी को बचाने के लिए जल्दी और सर्वोत्तम उपचार दिया जा सके, इसके अलावा स्ट्रोक के लक्षणों को समझना और तुरंत डॉक्टर के पास पहुंचना बहुत आवश्यक है।

डॉ रवि शंकर, डायरेक्टर- न्यूरोसर्जरी ने बताया कि आजकल की अनियमित जीवनशैली, अस्वस्थ आहार, तनाव व शराब, सिगरेट और गुटखा के अत्यधिक सेवन इत्यादि के चलते व्यक्ति को हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज, दिल की बीमारी उत्पन्न हो जाती है जिसके कारण स्ट्रोक आने की संभावना बनी रहती है। साथ ही उन्होंने बताया कि क्लॉट-बस्टर प्राप्त करने वाले 30% व्यक्तियों में सुधार नहीं होता है क्योंकि वे प्रमुख स्ट्रोक या बड़े पोत अवरोध (एलवीओ) से पीड़ित होते हैं। ऐसी परिस्थितियों में भी इलाज में प्रगति हुई है। एक न्यूरो-रेडियोलॉजिस्ट-एक्स, न्यूरो-इंटरवेंशनिस्ट मस्तिष्क की धमनियों से क्लॉट हटाने के लिए एक डिवाइस का उपयोग कर सकता है। यदि अस्पताल तक पहुंचने के लिए त्वरित विश्लेषण और कार्रवाई की जाती है, तो उपचार रोगियों को उनकी जान बचाने के लिए अधिक प्रभावी ढंग से मदद कर सकता है।

डॉ लोकेंद्र गुप्ता एसोसिएट डायरेक्टर- इमरजेंसी ने बताया कि इसके लक्षणों में मरीज को बोलने और समझने में बहुत कठिनाई होती है, वह अचानक से किसी वाक्य को बोलने में सक्षम नहीं हो पाता है, सीटी स्कैन और एमआरआई जैसे परीक्षणों के साथ मस्तिष्क की नैदानिक परीक्षा के बाद, डॉक्टर उपचार का सर्वोत्तम तरीका निर्धारित कर सकता है। यदि रोगी को गोल्डन ऑवर के दौरान लाया जाता है, तो चिकित्सक मस्तिष्क का सफलतापूर्वक उपचार कर सकता है। इस समस्या से बचने के लिए आपको अपनी जीवनशैली में सुधार करना चाहिए, पोषण युक्त आहार को अपने जीवन में शामिल करना चाहिए, सैचुरेटेड फैट, नमक, ट्रांस फैट और हाई कोलेस्ट्रॉल वाली चीजों से बचना चाहिए, फल और सब्जियां भरपूर मात्रा में खानी चाहिए। इसके अलावा व्यायाम योगाभ्यास को भी अपने जीवनशैली में सम्मिलित करना बहुत आवश्यक है और साथ ही शराब का सेवन व तंबाकू इत्यादि के सेवन से दूर रहें, तनाव मुक्त जीवन जीएं और स्वस्थ रहें।

डॉ रोहित अग्रवाल, एसोसिएट डायरेक्टर- इंटरनेशनल रेडियोलॉजी ने बताया कि जब शरीर की नसों में खून एकत्रित हो जाता है और इस कारण सिर में खून का प्रवाह किसी एक या कुछ नसों में रुक जाता है। इसके चलते ऑक्सीजन तत्व भी नहीं पहुंच पाते और सिर के अंदर की कोशिकाएं तुरंत मर जाती हैं। कई बार इसका दूसरा कारण सिर में ब्लीडिंग भी हो सकता है। यदि रोगी को गोल्डन ऑवर के दौरान लाया जाता है, तो चिकित्सक मस्तिष्क का सफलतापूर्वक उपचार कर सकते है। स्ट्रोक शुरू होने के 4.5 घंटे बाद तक को गोल्डन ऑवर कहा जाता है। इस समस्या से बचने के लिए आपको अपनी जीवनशैली में सुधार करना चाहिए, पोषण युक्त आहार को अपने जीवन में शामिल करना चाहिए, सैचुरेटेड फैट, नमक, ट्रांस फैट और हाई कोलेस्ट्रॉल वाली चीजों से बचना चाहिए, फल और सब्जियां भरपूर मात्रा में खानी चाहिए

मेदांता हॉस्पिटल, लखनऊ स्ट्रोक के लिए एक तैयार अस्पताल है। यहां स्ट्रोक के मरीजों का इलाज विश्वस्तरीय स्वास्थ्य विशेषज्ञों द्वारा किया जाता है। मेदांता हास्पिटल, लखनऊ में मरीजों की अत्याधुनिक देखभाल के साथ उन्हें हर प्रकार की स्वस्थ्य सुविधाएं प्रदान की जाती हैं, जिससे मरीज को एक बेहतर जीवन प्राप्त होता है।

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