कोविड-19: क्या भारत में कोरोना की दूसरी लहर का पीक आ चुका है?

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नई दिल्ली  : भारत में कोविड-19 की दूसरी लहर ने हाहाकार मचा दिया था। अस्पताल में मरीजों को बेड नहीं मिल रहे थे, तो श्मशान घाटों और कब्रिस्तानों में लोगों के अंतिम संस्कार के लिए जगह की कमी होने लगी थी। लेकिन पिछले कुछ दिनों में देश में संक्रमण के मामलों में कमी आई है, परंतु हर दिन मरने वालों की संख्या अभी भी 4 हजार से अधिक है। पिछले हफ्ते के डाटा के मुताबिक नए मामलों की संख्या कम हो ही रही है, साथ ही सात दिनों का औसत (मूविंग एवरेज) भी कम हुआ है।

साथ ही संक्रमण दर और अस्पतालों में भरे हुए बेड की संख्या में भी गिरावट आई है। छह मई को भारत में संक्रमण के करीब 4,14,000 नए मामले दर्ज किए गए थे।महामारी के दौरान एक दिन में संक्रमितों की ये सबसे अधिक संख्या थी।

 

हाल के सप्ताहों में कोरोना की दूसरी लहर ने देश की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली की पोल खोल कर रख दी है, अस्पतालों को कोरोना का सामना करने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। महत्वपूर्ण दवाओं और ऑक्सीजन की आपूर्ति कम हो गई है। लेकिन अब संक्रमण कम होता दिख रहा है। 14 अप्रैल के बाद पहली बार सोमवार को मामले 2,00,000 से कम मामले सामने आए।

तो क्या दूसरी लहर खत्म हो रही है?
विशेषज्ञों का मानना है कि राष्ट्रीय स्तर पर दूसरी लहर कम हो रही है। स्वास्थ्य अर्थशास्त्री डॉ रिजो एम जॉन के अनुसार, लहर के पीक के दौरान दर्ज किए गए नए मामलों का सात-दिवसीय औसत 3,92,000 पर पहुंच गया था, लेकिन पिछले दो हफ्तों से लगातार गिरावट आ रही है।

लेकिन कुछ लोगों का कहना है कि भले ही दूसरी लहर समग्र रूप से भारत के लिए घटती हुई प्रतीत हो, लेकिन यह किसी भी तरह से सभी राज्यों के लिए सही नहीं है। जहां एक ओर कोरोना के मामले महाराष्ट्र, दिल्ली और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में सबसे ज्यादा है, वहीं यह तमिलनाडु में भी बढ़ रहा है। उदाहरण के लिए, उत्तर पूर्व के अधिकांश हिस्सों में भी बढ़ रहा और आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल में स्थिति स्पष्ट नहीं है।

भारत में आने वाले रोजाना नए मामले और सात दिनों का औसत
नोट:- 23 मई 2021 तक के आंकड़े, सोर्स:- वर्ल्डोमीटर

डॉ जॉन के अनुसार, इन आंकड़ों के आधार पर कह सकते हैं कि लहर एक समान नहीं है और ऐसे कई राज्य हैं जो अभी तक दैनिक नए मामलों में अपने चरम का पता नहीं कर पाए हैं, निश्चित तौर पर ज्यादातर बड़े शहरों में संक्रमण में कमी आ रही है।

उन्होंने कहा कि ‘लेकिन गांवों में कमजोर निगरानी इस तस्वीर को जटिल बनाती है।’ मिडलसेक्स यूनिवर्सिटी लंदन के गणितज्ञ डॉ मुराद बनाजी ने कहा कि ‘यह संभव है कि देश भर में कुल संचरण (ट्रांसमिशन) अभी तक चरम पर नहीं पहुंचा है, लेकिन यह मामलों की संख्या में दिखाई नहीं दे रहा है क्योंकि संक्रमण अब ज्यादातर ग्रामीण क्षेत्रों में फैल रहा है।’

चेन्नई में गणितीय विज्ञान संस्थान के एक वैज्ञानिक डॉ. सीताभरा सिन्हा के अनुसार, स्थानीय स्तर पर इस तरह की विविधता से यह अनुमान लगाना बहुत मुश्किल हो जाता है कि सक्रिय मामलों में तेज गिरावट का भारतव्यापी रुझान टिकाऊ है या नहीं। मिशिगन विश्वविद्यालय के जैव सांख्यिकीविद् भ्रामर मुखर्जी, जो महामारी पर बारीकी से नजर रख रहे हैं, उनके इस विचार से सहमत हैं।

भ्रामर मुखर्जी का मानना है कि ‘यह धारणा कि कोरोना की दूसरी लहर का पीक बीत चुका है, हर किसी को सुरक्षा की झूठी भावना दे सकती है जब उनके राज्य वास्तव में संकट में प्रवेश कर रहे हों।’ उन्होंने कहा कि ‘हमें यह स्पष्ट करना चाहिए कि कोई भी राज्य अभी तक सुरक्षित नहीं है।’
क्या वायरस के जन्म का कोई सुराग है?
वायरस की प्रभावी प्रजनन संख्या या किसी बीमारी के फैलने की क्षमता का मूल्यांकन करने का तरीका यही है कि पहले से संक्रमित व्यक्ति द्वारा संक्रमित लोगों की संख्या का अनुमान लगाया जाता है।

डॉ सिन्हा ने कहा कि वायरस के मामलों की संख्या में कमी आ रही है। भारत में वायरस की मामलों की संख्या 14 से 18 मई के बीच एक से नीचे गिर गई। यदि यह एक निरंतर प्रवृत्ति है और बाद के हफ्तों में और भी कम हो जाती है, तो हाँ, हम मामलों की संख्या में तेज गिरावट देखने की उम्मीद कर सकते हैं।

उन्होंने कहा यह संभव है कि अगर कुछ राज्य उच्च वायरस के होने के साथ स्थिति खराब कर सकते हैं, लेकिन इस समय सक्रिय मामलों की एक कम संख्या चार्ट पर है, जिसके परिणामस्वरूप महामारी ठीक से समाहित नहीं होती है।

दूसरी लहर कब खत्म होने की संभावना है?
पहली लहर में मामलों में गिरावट की दर धीमी थी- पिछले साल सितंबर के अंत से ही सक्रिय मामलों में गिरावट शुरू हो गई थी, यह ट्रेंड फरवरी के मध्य में दूसरी लहर की शुरुआत तक जारी रही।

इससे ऐसा प्रतीत होता है कि दूसरी लहर में गिरावट तेज हो गई है, और यह स्पष्ट नहीं है कि क्यों। विशेषज्ञों का कहना है कि इसका एक कारण यह भी हो सकता है कि आबादी के एक बड़े हिस्से में वायरस खत्म गया हो।

छह राज्यों महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, मध्यप्रदेश और राजस्थान में कोरोना मामलों के सात दिनों का औसत आंकड़ा प्रक्षेपवक्र (ट्रेजेक्टरी) के रूप में दिखता है। लेकिन जब इस तथ्य पर गौर करते हैं तो पता चलता है कि दूसरी लहर म्यूटेंट स्ट्रेन द्वारा संचालित हो रही है, जिससे सवाल उठता है कि क्या पहले से संक्रमित लोग पूरी तरह से प्रतिरोधी नहीं हो सकते हैं?

डॉ. मुखर्जी ने कहा कि उनके मॉडल ने संकेत दिया है कि मई के अंत तक मामले 1,50,000 से 2,00,000 के बीच आ जाएंगे, और जुलाई के अंत तक वे फरवरी, 2021 की स्थिति में वापस आ सकते हैं। लेकिन, उन्होंने कहा कि ‘बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि भारत के राज्य स्थानीय लॉकडाउन से कैसे बाहर निकलते हैं।’

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