मुनि आगमन, अहिल्या उद्धार, गंगा अवतरण का मंचन हरदोई(अम्बरीष कुमार सक्सेना)

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मुनि आगमन, अहिल्या उद्धार, गंगा अवतरण का मंचन
हरदोई(अम्बरीष कुमार सक्सेना)
पठकाना रामलीला मेला मंच पर वृंदावन के कलाकारों द्वारा मुनि आगमन, ताडका वध, अहिल्या उद्धार, गंगा अवतरण तथा जनकपुरी में 88 हजार ऋषियों समेत महर्षि विश्वामित्र सहित राम लक्ष्मण प्रवेश की लीलाओं का सफल मंचन कर दर्शकों को मन्त्रमुग्ध कर दिया गया और महिलाओं, बच्चों श्रद्धालुओं को कहीं पर भावविभोर तो कहीं पर लोटपोट कर दिया गया।
पठकाना मेला मंच पर टकटकी लगाए माताओं बहनों बच्चों समेत तमाम श्रद्धालुगण कहीं पर तड़ातड़ तालियां बजाते नजर आए तो कहीं पर हँसते खिलखिलाते दिखाई दिए और कहीं पर मंच की तरफ तब और ज्यादा उचक – उचक कर उत्साहित दृष्टव्य हुए जब मुर्गा बोला कुकरूँकूँ – कुकरूँकूँ क्योंकि गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या को बरगलाने के लिए इन्द्र को छल करना था और उसका पतिव्रत धर्म भंगकर अपनी कामवासना को तृप्त करना था किन्तु अहिल्या का शील भंग करने से पहले जब इन्द्र साथी साथी चंद्र मुर्गा बनकर गौतम ऋषि की कुटिया के पास बोला कुकरूँकूँ – कुकरूँकूँ तो गौतम ऋषि अपनी कुटिया से निकलकर गंगा माँ की गोद में कूदने के लिए कदम तो बढ़ाये परन्तु गंगा मईया ने गौतम ऋषि की आहत पाते ही ललकारा कि कौन है दुष्ट जो रात में चला आया अशांति उत्पन्न करने के लिए और इतना सुनते हुए गौतम ऋषि को झटका लगा। उन्होंने जैसे ही माता मैं हूँ गौतम वैसे ही गंगा मईया ने चेताया कि शीघ्र लौट जा, कुटिया में जाकर देख गौतम, तेरे साथ छल हुआ है। इतना सुनते ही गौतम लौटे तो देखा कि चन्द्रमा मुर्गा बना उनकी कुटिया के बाहर बैठा है तभी उन्होंने चेतावनी देते हुए अहिल्या को कातर स्वर से पुकारा कि सकपकाई अहिल्या कुटिया का द्वार खोलकर बाहर आई और गौतम को देखते ही जहाँ एक ओर ठगी – ठगी सी स्तब्ध रह गई वहीं दूसरी ओर इन्द्र एवं चन्द्र भागा तो गौतम ने उन दोनों को ललकारा और जैसे ही दोनों रुके कि गौतम ने दोनों को श्राप दे दिया। यद्वपि उनका गुस्सा यहीं शांत नहीं हुआ अपितु उन्होंने इन्द्र एवं चन्द्र के साथ अहिल्या को ही नहीं बल्कि अपनी पुत्री अंजना को भी श्राप दे दिया हालांकि उन्होंने गुस्सा शांत होने पर अहिल्या को श्राप से मुक्ति का उपाय बता दिया और अंजना को यशस्वी पुत्र प्राप्ति का वरदान भी दिया। परिणाम स्वरूप हनुमान इस कलियुग में भी अत्यंत ईश्वर्यशाली बलबान रोग दुख के हर्ता हैं।
इसी श्रंखला में लीला में दर्शाया गया कि ब्रम्हर्षि विश्वामित्र जहाँ यज्ञ का अनुष्ठान कर रहे हैं वहीं यज्ञ में असुरीय शक्तियां विघ्न डाल रहीँ हैं जिसमें ताड़का द्वारा विघ्न डाला जा रहा है। इसी कारण ब्रम्हर्षि विश्वामित्र अपने यज्ञ की रक्षा के लिए महाराज दशरथ से मिलने अयोध्या गए। महाराज दशरथ को ब्रम्हर्षि विश्वामित्र केे आगमन की सूचना द्वारपालों से मिली तो वे भागे – भागे आए और ब्रम्हर्षि विश्वामित्र को सम्मान के साथ अपने राज दरबार में ले जा करके उनका स्वागत किया तथा उनके आने का प्रयोजन पूछा। राजा दशरथ के वाणी को सुन करके ब्रम्हर्षि विश्वामित्र ने कहा कि असुर समूह सतावहि मोेहि मैं आयऊ नृप जांचन तोहि।। महाराज मेरे अनुष्ठान में असुरों द्वारा विघ्न डाला जा रहा है। मैं आपके पास श्रीराम लक्ष्मण को यज्ञ की रक्षा के लिए मांगने आया हूँ। जिससे हमारे यज्ञ की रक्षा हो सकें। ब्रम्हर्षि विश्वामित्र के बात को सुनकर महाराज दशरथ ने श्रीराम लक्ष्मण को देने से इंकार कर दिया। राजा के इंकार को सुनकर ब्रम्हर्षि विश्वामित्र क्रोधित हो उठे। उनके क्रोध को देखकर महाराज दशरथ केे कुल गुरू महर्षि वशिष्ठ ने अनेको प्रकार सेे महाराज दशरथ को समझाया और कहा कि हे राजन आप राम लक्ष्मण को ब्रम्हर्षि के हवाले कर दीजिए, इसी में भलाई है। गुरूदेव की आज्ञा पाकर महाराज दशरथ ने अपने दोनो पुत्रों राम लक्ष्मण को विश्वामित्र के साथ यज्ञ की रक्षा के लिए भेज देते है। ब्रम्हर्षि विश्वामित्र राम लक्ष्मण को लेकर अयोध्या से अपने आश्रम के लिए चल देते है। रास्ते में श्री राम ने शिला देखी। उन्होने शिला के बारे में गुरूदेव से पूछा। गुरूदेव विश्वामित्र ने बताया कि हे राम यह शीला गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या का है जिसे किसी क़ारणवश गौतम ऋषि ने अपने पत्नी को श्राप देकर शिला बना दिया हे राम ऋषि पत्नी अहिल्या आपके चरण रज को चाहती है। यह सुनकर राम ने मर्यादा का परिचय दोहराते हुए कहा कि ऋषिवर मैं एक क्षत्रिय होकर ब्रह्माणी अहिल्या को कैसे पैर से स्पर्श कर सकता हूँ तभी उन्होंने उपाय बताया। जिसे सुनने के बाद श्रीराम ने उक्त शिला को बिना पांव लगाए चारों ओर तेजी से घूमकर अपने चरणों की धूल को शिला पर उड़ा दिया, जिसके स्पर्श मात्र से शिला रूपी अहिल्या का उद्धार हो गया और वह महिला के रूप में परिवर्तित हो गईं। आगे थोड़ी दूर जंगल में पहुँचने पर श्रीराम ने पद चिन्ह को देखा। उन्होंने पुनः ब्रम्हर्षि विश्वामित्र से पदचिन्ह के बारे में जानना चाहा, श्रीराम के आग्रह पर विश्वामित्र ने बताया कि हे राम यह पद चिन्ह राक्षसी ताड़का का है, इतना कहने के बाद उन्होंने श्रीराम सेे ताडका का वध करने का इशारा किया। गुरूदेव के इशारा पर श्रीराम ने अपने एक ही बाण से ताडका का वध कर दिया। कुछ दिन बीतने के बाद श्रीराम लक्ष्मण ब्रम्हर्षि के आश्रम पर रहने लगे, उधर बाद महाराज जनक द्वारा जनकपुर में स्वयम्बर रचाया गया था। जिसमें ब्रम्हर्षि विश्वामित्र को निमंत्रित किया गया था। निमंत्रण पाकर ब्रम्हर्षि विश्वामित्र अपने 88 हजार ऋषियों के साथ अपने दोनों शिष्यों राम व लक्ष्मण को लेकर जनकपुर के लिए प्रस्थान कर गए। महाराज जनक जब ब्रम्हर्षि विश्वामित्र के आने की सूचना पाए तो वे विप्र वृन्द के साथ उनका स्वागत करने के लिए द्वार पर आए और उन्हे एक सुन्दर आश्रम में विश्राम करने का अनुरोध करते हुए अपने साथ ले गए। द्वितीय दिवस गुरू विश्वामित्र के पूजा हेतु पुष्प वाटिका में पुष्प लेने के लिए राम लक्ष्मण पहुँचते है। किन्ही कारणवश उसी पुष्प वाटिका में सीता जी भी सखियो के साथ पहुँचती है, जहाँ सीता का राम से नयनाभिराम हो जाता है।

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