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अयोध्या (संवाददाता) सुरेंद्र कुमार।पैगम्बरे इस्लाम हजरत मोहम्मद साहब के नवासे हजरत इमाम हुसैन सहित कर्बला के 72 शहीदों की याद मनाने के लिए मोहर्रम की शुरूआत बुधवार से हो गयी। मंगलवार की रात से ही हर अजादार शोक में डूब गया। बुधवार को सुबह से ही घर-घर से गमे हुसैन में सोगवारों के रोने की सदाएं बुलंद होने लगीं। हालांकि शासन की ओर से कोविड 19 की गाइडलाइन के अनुसार इस बार भी मोहर्रम में कहीं मातमी जुलूस नहीं निकाला जा रहा। केवल घरों में आयोजित हो रही मजलिसों में सीमित संख्या में ही अजादार शामिल हो रहे हैं।
अजाखानों में मजलिसे हुसैन का सिलसिला बुधवार से शुरू हो गया। मजलिसों में दीने इस्लाम की शिक्षाओं, हजरत मोहम्मद साहब और उनके परिवार के सदस्यों की फजीलत बयान करने के साथ हजरत इमाम हुसैन की शहादत की रूदाद सुनायी गयी। इसके अलावा मोहर्रम की मजलिसों को मौलाना मोनिस, मौलाना कमर मेंहदी, मिर्जा डॉ.शहाब शाह, मिर्जा मोहम्मद अब्बास, मौलाना, जावेद आब्दी, मंजर मंहदी, मौलवी मीजान आब्दी, जिना हैदर, इरफान रजा आब्दी, तकी मेंहदी आब्दी, शिराज हुसैन खिताब कर रहे हैं। अवध के तीसरे नवाब शुजाउद्दौला की कब्रगाह स्थित गुलाबबाड़ी के अजाखाने में मजलिस आयोजित हुई। इस मजलिस को मौलाना जफर अब्बास कुम्मी ने खिताब किया।
इस्लामिक मान्यता के अनुसार दसवीं मोहर्रम आशूरा के दिन मोहम्मद साहब के नाती इमाम हुसैन की शहादत के दिन रूप में मनाया जाता है। इस पर्व को शिया और सुन्नी दोनों समुदाय के लोग अपने-अपने तरीके से मनाते हैं। यह कोई त्योहार नहीं बल्कि मातम का दिन है जिसमें शिया मुस्लिम व अन्य लोग सवा दो माह तक खास कर मोहर्रम के दस दिनों तक इमाम हुसैन की याद में शोक मनाते हैं।