जातीयता का ज्वार समाज व राष्ट्र के हित में नहीं: डॉ. मुरारी लाल गुप्ता

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हरदोई।जनकल्याण समिति के अध्यक्ष डॉ मुरारी लाल गुप्ता के अनुसार चुनाव आने वाले है इस समय जातिवाद चरम पर है जातीय अस्मिता के ठेकेदार बड़े बड़े झंडे उठाये निकल पड़े हैं पर हम सभी को एक सभ्य समाज की तरह सोचना पड़ेगा की इस जातिवाद का मतलब व मकसद क्या है सनातन संस्कृति में जाती व वर्ण समाज को व्यवस्थित रूप से चलाने की एक व्यवस्था थी जिसमे सभी जातियों में आपस में समन्वय था व पूरी व्यवस्था कर्त्तव्य आधारित थी इसमें यदि किसी को अधिक अधिकार थे तो उनपे पाबंदिया भी अधिक थी पर जातिवाद का वर्तमान स्वरुप है वो समाज व राष्ट्र के हित में नहीं है ऐसा मेरा मानना है।
जबसे मैंने होश संभाला है मै यही देख रहा हूँ की जाती वाद का अपने स्वार्थ के लिए उपयोग या तो अपराधियों या राजनेताओं ने किया है और दुर्भाग्य से आम आदमी ने अनजाने में इनका सपोर्ट किया है इस जातिवाद का फायदा क्या किसी सजातीय आम आदमी को मिला शायद नहीं यथार्थ ये है की ना तो नेता को न अपराधी को जाती के उत्थान से उनका  कोई मतलब है और न कोई उद्देश्य यदि ऐसा होता तो जो आज फूलन देवी की प्रतिमा उठाये घूमते हैं उनको उस फूलन की उस समय मदद करनी चाहिए जब उसको डकैतों  का गिरोह उठा कर ले गया था इसी तरह जो विकास दुबे के लिए जाती के आधार पर शोर मचा रहे है उनकी संवेदनाये उन 43 ब्राम्हण परिवारों ( जिनकी हत्या विकास दुबे ने की थी )व कश्मीर के ब्राम्हणो के लिए क्यों नहीं थी पर यथार्थ में इन लोगो का उद्देश्य जातीय विद्वेष फैला कर अपना स्वार्थ सिद्ध करना है।
कोई भी समाज या राष्ट्र विभिन्न जातियों का एक   समूह होता है राष्ट्र व समाज के उत्थान के लिए सभी जातियों आपस में समन्वय होना चाहिए न की विद्द्वेष।
मै ज़्यादा संस्कृति के बारे में ज़्यादा पढ़ा तो नहीं हूँ पर जितना कहानियों से जाना है उसके हिसाब से आप किस कुल में जन्म लिए है ये मायने नहीं रखता है बल्कि आपके कर्म मायने रखते थे वर्ण का पूरा सिस्टम ही कर्तव्यों पर आधारित था रावण व अश्वथामा जैसे अनेक उदहारण है जो उच्च ब्राम्हण कुल में जन्म लेने के बाद भी समाज में आदर न पा सके भगवान परशुराम विष्णु के अवतार होने के बावजूद ब्राम्हण धर्म छोड़ कर छत्रिय धर्म अपना लेन पर पूजित नहीं रहे इसी तरह वाल्मीकि श्री कृष्णा भगवान श्री वेदव्यास निम्न कुल में जन्म लेने के बाद समाज में इज्जत पायी
  मानव तो मानव सनातन संस्कृति में तो स्वयं भगवान तक को समाज हित में भी किये गए गलत काम के लिए श्रापित होना पड़ा सालिग्राम जी की कहानी यही दर्शाती है।
पिछली कई शताब्दियों से भारत राष्ट्र व सनातन संस्कृति को नष्ट करने का प्रयास कई लोग कई संस्थाए कई संस्कृतियां व कई देश लगातार कर रहे है वो हमारे समाज की हर छोटी से छोटी दरार को चौड़ी खाई में बदलने का प्रयास कर रहे है पहले उन लोगो ने द्रविण बनाम आर्य फिर सवर्ण बनाम मूल निवासी थ्योरी चलायी वर्तमान में जातीय द्वेष बढ़ने का काम कर रहे है
बाल्कनाइजेशन ऑफ़ इंडिया ग्रेटर बंगला देश खालिस्तान ग्रेटर तमिल ईलम ग्रीन कॉरिडोर रेड कॉरिडोर जैसे उनके प्रोजेक्ट है जिन पर वो लोग पूरी शिद्दत से काम कर रहे है दुर्भाग्य से हमारे देश के कई लोग उनके इन षड्यंत्रों में शामिल है ये सभी बाते तथ्यात्मक रूप से सही है दुर्भाग्य से हमारे नवयुवक पढ़ते नहीं है उनको अपनी संस्कृति ( मैक्स मुलर के चश्मे के बजाय भारतीय चश्मे से ) के बारे में व सामने वालो के बारे में भी पढ़ना चाहिए तभी समझ में आएगा की हमारे राष्ट्र को क्या खतरे है और हम अपने स्तर से इनसे निपटने में अपना क्या योगदान दे सकते है।
अंत में एक सवाल उठ सकता है की क्या जाती को बिलकुल इग्नोर कर देना चाहिए मेरे विचार से नहीं ।हर व्यक्ति को अपनी जाती पर गर्व होना चाहिए पर ये जातीय स्वाभिमान जातीय विद्वेष का कारण न बने। नाही किसी को जातीय श्रेष्ठता का घमंड होना चाहिए और न ही किसी को हींन भावना का शिकार समाज को सुचारु रूप से चलाने के लिए हर व्यक्ति की अपनी उपयोगिता है।
यदि हम जाती के नाम पर अपने समाज के अच्छे आदमियों होनहार युवक युवतियों को प्रोत्साहित करेंगे तो ये पूरे समाज व राष्ट्र के हित में होगा।

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