मंदिरों में पूजा, आरती के लिए होगी विशेष व्यवस्था, संत समिति, अखाड़ा परिषद और काशी विद्वत परिषद संभालेगी कमान

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वाराणसी काशी के मंदिरों में हर दिन नियमित पूजन, भोग-राग, आरती के साथ ही मंदिरों में दर्शन, पूजन आदि की विशेष व्यवस्था की जाएगी। इसके लिए अखिल भारतीय संत समिति, अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद व श्रीकाशी विद्वत परिषद् कमान संभालेगी। बृहस्पतिवार को विश्वनाथ गली स्थित विनायक गणेश, त्रिभुवनेश्वर महादेव का पूजन कर हमारे काशी हमारे देवालय अभियान का शुभारंभ संत समिति के महामंत्री स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती, अन्नपूर्णा मंदिर के महंत स्वामी शंकरपुरी, विद्वत परिषद के महामंत्री प्रो. रामनारायण द्विवेदी ने किया। अभियान के बारे में समिति से जुड़े संतों ने बताया कि धर्मनगरी काशी के उपेक्षित पड़े देवालयों में पूजन और पुजारी दोनों का योगक्षेम अखिल भारतीय संत समिति वहन करेगी। ऐसे देवालयों, शिवालयों में पूजा, आरती एवं शृंगार-भोग के लिए प्रतिमाह ढाई हजार रुपये और सेवारत पुजारी को पांच हजार रुपये मानदेय स्वरूप दिए जाएंगे। पहले चरण में काशी के 108 मंदिरों से इसका प्रारंभ हो रहा है। अखिल भारतीय संत समिति धर्मरक्षार्थ संकल्प की पूर्णता के लिए अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के साथ मिलकर यह अभियान चलाएगी। श्रीकाशी विद्वत परिषद के मार्गदर्शन में चलने वाले इस अभियान को ‘हमारी काशी हमारे देवालय’ नाम दिया गया है। उपेक्षित देवालय व्यवस्थित किए जाएंगे अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष व महानिर्वाणी अखाड़े के महासचिव महंत रवींद्रपुरी ने कहा कि अभियान में काशी के उपेक्षित देवालय व्यवस्थित किए जाएंगे। ऐसे देवालयों में नियमित पूजन-अर्चन शृंगार आरती का प्रबंध किया जाएगा। जहां पुजारी नहीं है वहां पुजारियों की नियुक्ति की जाएगी। श्रीकाशी विद्वत परिषद के महामंत्री प्रो. रामनारायण द्विवेदी और गंगा महासभा के संगठन महामंत्री गोविंद शर्मा के नेतृत्व में एक समिति इस तरह के मंदिरों का चयन करेगी।आर्थिक प्रबंधन महानिर्वाणी अखाड़ा करेगा। उन्होंने श्रद्धालुओं से इस पुनीत कार्य में बढ़ चढ़कर सहभागिता करने का आह्वान किया। पूजा, आरती का प्रबंध करेंगी समितियां स्वामी जीतेंद्रानंद सरस्वती ने बताया कि यह अभियान धर्मरक्षा एवं जनजागरण की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। आगे चलकर स्थानीय लोगों की दस सदस्यीय समितियां बनाई जाएंगी जो मंदिरों में पूजा आरती के प्रबंध की चिंता करेंगी। पिछले वर्ष काशी में आयोजित संस्कृति संसद में अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष रवीन्द्रपुरी ने यह संकल्प व्यक्त किया था। अब दूरदर्शी सोच के साथ योजनापूर्वक एवं चरणबद्ध से इसे मूर्त रूप देने की दिशा में कार्य प्रारंभ हो रहा है।

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