टीकाकरण का है दम, “मिजिल्स” रोग हुआ पूरी तरह कम  

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मिजिल्स इम्यूनाइजेशन-डे पर विशेष

टीकाकरण से समाप्ति के कगार पर है बच्चों में होने वाला यह रोग

जौनपुर, 15 मार्च 2022

बच्चों में होने वाली खतरनाक बीमारी मिजिल्स अब समाप्ति की ओर है। इसे “दुलारो माता” के नाम से भी जाना जाता है। साथ ही इसे खसरा भी कहते हैं। यह बीमारी वायरस से फैलती है और इसका वायरस बहुत ही खतरनाक होता है।

जिला प्रतिरक्षण अधिकारी (डीआईओ) डॉ नरेन्द्र सिंह बताते हैं कि यह बीमारी जहां कहीं भी होती है   महामारी का रूप ले लेती है । पूरे गांव और कभी-कभी आसपास के गांवों में भी फैल जाती है। इससे संक्रमित होने के बाद तेज बुखार आता है। उसके अगले दिन चेहरे और पूरे शरीर पर लाल-लाल दाने निकल आते हैं जिनमें खुजलाहट और जलन होती है। बीमारी से प्रभावित बच्चों में कई प्रकार की जटिलताएं आती हैं, जो कि आगे चलकर मौत का भी कारण बन जाती हैं। जैसे मस्तिष्क ज्वर, न्यूमोनिया, डायरिया (दस्त रोग) आदि। यह तीनों जटिलताएं अक्सर जानलेवा साबित होती हैं और मिजिल्स की वजह से बच्चों की मौत भी हो सकती है। वसंत ऋतु में यह बीमारी ज्यादा होती है जबकि पूरे साल कभी भी होने की भी आशंका रहती है।

मिजिल्स से बचाव के लिए नियमित टीकाकरण कार्यक्रम-

“मिजिल्स” से बचाव का सबसे उत्तम साधन बच्चों का टीकाकरण ही है। यह टीकाकरण कार्यक्रम 1979 में शुरू किया गया जिसमें नौ माह की उम्र पर मिजिल्स का टीका लगाया जाता था। इससे बच्चों को 95 प्रतिशत इस बीमारी से सुरक्षाकवच मिला । 2009 से यह टीका नौ माह की उम्र पर तथा इसका दूसरा टीका 16 से 24 माह के बीच लगाया जाने लगा जिससे बच्चों को इस बीमारी से और भी सुरक्षा मिलने लगी। 2018 में इस टीके के साथ ही रुबेला का भी टीका जोड़ दिया गया जिससे टीके का नाम मिजिल्स रुबेला (एमआर) हो गया। 2018 नौ माह से 15 वर्ष तक के बच्चों को अभियान चलाकर एमआर का टीका लगाया गया। 2018 में चले अभियान के बाद सप्ताह के प्रत्येक बुधवार और शनिवार गांव-गांव सत्र आयोजित कर एमआर नियमित टीकाकरण कार्यक्रम चलाया जाने लगा। इसका टीकाकरण कवरेज भी 90 प्रतिशत से ऊपर जा रहा है। इसके चलते यह बीमारी बच्चों में अब बहुत ही कम हो रही है। साथ ही इसकी महामारी भी देखने को नहीं मिलती। नियमित टीकाकरण के माध्यम से ही 2022 तक इस बीमारी को लगभग समाप्त करने का लक्ष्य रखा गया है।

2018 से पहले प्रतिवर्ष 1000 के लगभग मिजिल्स के रोगी चिह्नित मिल जाते थे और उनका उपचार होता था। 2018 में एमआर टीकाकरण अभियान चलाए जाने तथा बड़े पैमाने पर नियमित टीकाकरण होने से मिजिल्स के मरीजों की संख्या बहुत ही कम हो गई है। 2019 में 12 के लगभग मरीज मिले, 2020-21 में आठ और 2022 में अभी तक मात्र पांच ही मरीज मिले हैं। टीकाकरण की अच्छी कवरेज होने से मिजिल्स के मरीजों की संख्या न के बराबर है।

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