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सार
आजमगढ़ में सपा प्रत्याशी को सिर्फ 356 वोट मिलना पार्टी की साख पर बट्टा है। इस क्षेत्र में आजमगढ़-मऊ को मिलाकर सपा के 13 विधायक हैं। इस चुनाव में पार्टी को मिले वोट इस बात का प्रमाण हैं कि यहां पार्टी नेताओं का द्वंद्व थमा नहीं है।
विस्तार
विधान परिषद प्राधिकारी चुनाव में सपा के कई उम्मीदवारों ने पार्टी के वरिष्ठ नेताओं से अपील की थी कि स्थानीय विधायकों की संयुक्त बैठक कर चुनाव की रणनीति बनाई जाए, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। ज्यादातर वरिष्ठ नेता क्षेत्र में जाने से भी कतराते रहे। कई जगह सपा उम्मीदवारों ने मतदाताओं से मिलना भी जरूरी नहीं समझा। ऐसे में सपा के स्थानीय क्षत्रप भी इस चुनाव में एकजुट नहीं दिखे। सपा के वरिष्ठ नेताओं ने जिस तरह से इस चुनाव से दूरी बनाई, वह भविष्य के लिहाज से ठीक नहीं माना जा रहा है।
आजमगढ़-मऊ में पार्टी के 13 विधायक और वोट मिले सिर्फ 356
प्राधिकारी क्षेत्र की 35 सीट पर चुने जाने वाले 36 एमएलसी में अब तक 33 पर सपा काबिज थी। सात एमएलसी पार्टी छोड़कर भाजपा में चले गए। सिर्फ 11 दोबारा चुनाव मैदान में थे। सपा के नए उम्मीदवारों में पांच ने पर्चा वापस ले लिया तो चार के खारिज हो गए। इस तरह शेष 27 सीटों पर सपा उम्मीदवार चुनाव लड़े थे, लेकिन सभी हार गए। खास बात यह है कि आजमगढ़-मऊ में पार्टी की हर रणनीति फेल रही। यहां आपसी लड़ाई ने सपा को सिर्फ 356 वोट मिले। जबकि दोनों जिलों को मिलाकर सपा के 13 विधायक हैं।
यहां भाजपा के अरुणकांत यादव 1262 और निर्दलीय विक्रांत सिंह को 4077 वोट मिले हैं। ऐसे में आजमगढ़ में होने वाले उपचुनाव के मद्देनजर शीर्ष नेतृत्व को कड़े कदम उठाने होंगे। मुलायम सिंह के गढ़ इटावा-फर्रुखाबाद में भी सपा उम्मीदवार हरीश को सिर्फ 725, आगरा-फिरोजाबाद में सपा के दिलीप को 905, लखनऊ में सपा के सुनील सिंह साजन को सिर्फ 400 वोट मिल पाए हैं।
प्रयागराज और बुंदेलखंड मिले ज्यादा वोट
सपा को मिलने वाले वोटों को देखें तो प्रयागराज में सपा उम्मीदवार वासुदेव यादव को 1522, झांसी- जालौन- ललितपुर के श्याम सिंह को 1513, सुल्तानपुर की शिल्पा प्रजापति को 1209, मुरादाबाद-बिजनौर के अजय प्रताप सिंह को 1107, अयोध्या के हीरालाल यादव को 1047 वोट मिले। सपा उम्मीदवारों में सबसे कम सिर्फ 61 वोट सीतापुर के अरुणेश यादव को मिला है।
छिन जाएगा विधान परिषद से नेता प्रतिपक्ष का पद
प्राधिकारी चुनाव में मिली हार से सपा से विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष का पद छिन जाएगा। अभी सपा के 17 एमएलसी बचे हैं। इनमें 28 अप्रैल को तीन, 26 मई को तीन और छह जुलाई को छह एमएलसी का कार्यकाल खत्म हो जाएगा। इस तरह सपा के 5 एमएलसी बचेंगे। नवनिर्वाचित विधायकों की संख्या के अनुसार सपा गठबंधन चार एमएलसी मनोनीत कर सकेगी। इस तरह परिषद में सपा के कुल 9 ही एमएलसी होंगे। नियमानुसार विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष का पद सपा को तभी मिलेगा, जब उसके पास 10 एमएलसी हों।
पहले भी सत्ता पक्ष का रहा है कब्जा
विधान परिषद प्राधिकारी चुनाव में आमतौर पर जिसकी सरकार रही है उसके सर्वाधिक एमएलसी चुने जाते रहे हैं। वर्ष 2010 में बसपा सरकार में बसपा के 34, सपा के एक और कांग्रेस का एक एमएलसी चुना गया था। इसी तरह वर्ष 2016 में सपा को 33, बसपा, कांग्रेस व निर्दल को एक-एक सीट मिली थी।