भदोही में है हजारों साल पुरानी सूर्य प्रतिमा : मंदिर की परिक्रमा करने पर बनता है ‘ओम’ का आकार

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भदोही

मखमली कालीनों के लिए पूरे विश्व में विख्यात भदोही की ऐतिहासिकता अपने आप में काफी समृद्ध है। 15वीं शताब्दी में यहां आए बघेल राजवंशों की छावनी आज भी जिले में हैं। यहां आज भी राजवंश परिवार से जुड़े लोग रह रहे हैं। भदोही के हरियावं स्थित बघेल छावनी काफी दूर-दूर तक प्रसिद्ध है। यहां हजारों साल पुरानी सूर्य की प्रतिमा की सही उम्र आज भी कोई नहीं बता पाता। पुरातत्व विभाग के मुताबिक मूर्ति कोणार्क कालीन है। यह संभवतः एकलौती दुर्लभ सूर्य प्रतिमा है।
भदोही के हरियावं में स्थित बघेल छावनी समृद्ध इतिहास को अपने अंदर समेटे हुए है। इस मंदिर में विशाल पीपल के वृक्ष का भी अपना एक इतिहास है। बघेल परिवार से जुड़े ऋषभ देव सिंह बताते हैं कि पहले पीपल के वृक्ष के पास ही सूर्य देवता का प्राचीन मंदिर बना हुआ था। लगातार विशाल हो रहे वृक्ष के स्वरूप के कारण मंदिर टूटने लगा। जिसके बाद उनके पिता स्व. अजीत कुमार सिंह ने 1993 में एक नया मंदिर बनवाया। जिसका नाम सिद्धपीठ शिवायतन व सूर्य मंदिर रखा। ऋषभ के पिता ने मंदिर में पंचायतन मूर्तियों की स्थापना करवायी। जिसमें भगवान शिव, विष्णु, मां दुर्गा, श्रीगणेश और प्राचीन सूर्य देवता की प्रतिमा हैं। बताया कि वैदिक शास्त्रों के अनुसार यह पंच देव ही प्रमुख है, शेष देवता इनके अंगीय हैं। खास बात यह है कि मंदिर जिस चबुतरे पर बनाया गया है। उसकी परिक्रमा ओमकार है, यानि परिक्रमा करने पर ओम का आकार बनता है।
2007 में मूर्ति लेने पहुंची पुरातत्व की टीम

ऋषभ बताते हैं कि 2007 में पुरातत्व सर्वेक्षण की टीम बघेल छावनी पहुंची और मूर्ति की जांच पड़ताल की। जांच के बाद उन्होंने बताया कि मूर्ति कोर्णाक कालीन हो सकती है। मंदिर में जो प्राचीन सूर्य मूर्ति है। उसमें भगवान सूर्य देवता को जूता पहनाया गया है। बताया कि कोणार्क कालीन मूर्तियों के ही पैरों में जूते पहनाए जाते थे। इससे यह अंदाजा लगाया गया कि यह सूर्य मूर्ति कोणार्क कालीन हो सकती है। पुरातत्व विभाग इसे दुर्लभ बताते हुए अपने साथ ले जाने की बात कहीं, लेकिन बघेल राजवंश के कुल देवता और आराध्य होने के कारण उनके पिता ने मूर्ति ले जाने से मना कर दिया।

सूर्य मंडल के साथ है मूर्ति

हजारों सालों से पुरानी इस मूर्ति में सूर्य पूरे मंडल के साथ हैं। इसमें छह देवता, दो अश्वनी कुमार और ऋषियों के साथ ही दो असुर भी हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सूर्य मंडल में यह सभी लोग होते हैं। यह इकलौती ऐसी दुर्लभ मूर्ति है। जिसमें सूर्य अपने मंडल के साथ विराजमान हैं। ऋषभ बताते हैं कि पूरे भारत में शायद ही कोई ऐसा स्थान होगा। जहां सूर्य देव की मूर्ति होगी। बताया कि मंदिर में हर सप्तमी तिथि के साथ ही संक्रांति व ग्रहण इत्यादि पर विशेष पूजन होते हैं।

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