चीफ ट्रस्टी राजीव मिश्रा ने अतिथियों को अंगवस्त्र और प्रतीक चिन्ह भेंटकर स्वागत – अभिनंदन किया

Getting your Trinity Audio player ready...

चीफ ट्रस्टी राजीव मिश्रा ने अतिथियों को अंगवस्त्र और प्रतीक चिन्ह भेंटकर स्वागत – अभिनंदन किया

ब्यूरो चीफ आर एल पाण्डेय

लखनऊ। मांस और मदिरा दोनों मनुष्य को पाप के मार्ग पर ले जाते हैं। ऐसे लाखों उदाहरण भरे पड़े हैं कि जिन सनातन परिवारों में मांस और मदिरा का सेवन शुरू हुआ उनके कुल में केवल उत्पाती लोगों का ही आगमन हुआ।
सरस् श्रीराम कथा गायन के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विख्यात प्रेममूर्ति पूज्य श्री प्रेमभूषण जी महाराज ने
उक्त बातें नर सेवा- नारायण सेवा को कृत संकल्प ममता चैरिटेबल ट्रस्ट के तत्वाधान में आयोजित श्रीराम कथा अमृत महोत्सव के तीसरे दिन लखनऊ के गोमती नगर विस्तार स्थित सीएमएस विद्यालय के मैदान मे नौ दिवसीय श्रीराम कथा के तीसरे दिन व्यासपीठ से कथा वाचन करते हुए कहीं।
श्री रामकथा गायन के माध्यम से भारतीय और पूरी दुनिया के सनातन समाज में अलख जगाने के लिए सुप्रसिद्ध कथावाचक प्रेमभूषण जी महाराज ने प्रभु श्रीराम के प्राकट्य का प्रसंग सुनाते हुए कहा कि
सनातन परिवार के लोगों से मेरी करबद्ध प्रार्थना है कि इन अखाद्य वस्तुओं से अपने परिवार को बचाने के लिए संकल्पित हों। जिसके जीवन में जितना अधिक सदाचार होगा, उसकी परमात्मा के चरणों में उतनी ही प्रीति होगी। अपने जीवन का, अपने आय का दसवां भाग परमार्थ में लगाने वाले का न केवल यह जन्म सुधार जाता है बल्कि आने वाला जन्म भी सुंदर होता है।
पूज्य श्री ने कहा कि अपना भविष्य नहीं जानने में ही मनुष्य की भलाई है। मनुष्य के जीवन में सुख और दुख दोनों का ही आना-जाना लगा रहता है। ईश्वर की बनाई हुई व्यवस्था में यह एक बहुत ही अच्छी बात है कि मनुष्य अपने आने वाले कल के बारे में नहीं जानता है। यदि उसे अपने कल के बारे में आज ही पता चल जाए तो वह सर्वदा दुखी ही रहेगा।
इस संसार में कुछ भी अनिश्चित नहीं है। सब कुछ निश्चित है। भगवान की व्यवस्था है और वह संसार की भलाई के लिए ही है। धरती पर आने वाले मनुष्य का जाना भी तय है। और फिर नए स्वरूप में आना भी तय है। शरीर छोड़ने के बाद जीवात्मा को 12 दिनों में अपने स्वरूप की प्राप्ति हो जाती है, ऐसा गरुड़ पुराण में कहा गया है।
महाराज जी ने कहा कि भगवान के बनाये हुए संसार में घटनाओं का घटित होना एक निर्धारित और निश्चित सत्य है। हर मनुष्य अपने चित्त की स्थिति के अनुसार उन घटनाओं को स्वीकार करता है। हर व्यक्ति के चित्त की स्थिति सामान नहीं होती है। मनुष्य के आहार विहार और व्यवहार ही उसके मां को नियंत्रित करते हैं और उसी के अनुसार चित्त की गति भी होती है।
हम जिस युग में जी रहे हैं वहां हर मनुष्य विकारों से दूर नहीं रह पाता है। कामनाओं के मैल मन में तरह-तरह के विकार पैदा करते रहते हैं और इससे मनुष्य का जीवन कष्टमय हो जाता है।
अगर हम सहज रहना चाहते हैं और सहज जीना चाहते हैं तो हमारे पास इस कलियुग के मल को काटने और धोने का एकमात्र साधन है श्री राम कथा। काम, क्रोध,लोभ, मद और मत्सर आदि विकार कलिमल कहे जाते हैं। इससे बचने का एकमात्र सहज साधन श्री राम कथा ही है। मानस जी में लिखा है इस कथा को जो सुनेगा, कहेगा और गाएगा वह सब प्रकार के सुखों को प्राप्त करते हुए अंत में प्रभु श्री राम के धाम को भी जा सकता है।
पूज्यश्री ने कहा कि जब मन पर कलिमल का प्रभाव हो तो
चाह कर भी मनुष्य सत्कर्म के पथ पर आगे नहीं बढ़ पाता है। मनुष्य का मन और उसके बुद्धि उसके अपने कर्मों के अधीन है। हम जो भी कम करते हैं उसे हमारा क्रियमाण बनता है। यही कर्म फल एकत्र होकर संचित कर्म होता है और फिर कई जन्मों के लिए यह प्रारूप प्रारब्ध के रूप में जीव के साथ जुड़ जाता है। सत्कर्मों से जिसने भी अपने प्रारब्ध को बेहतर बना रखा है, इस जन्म में भी सत्कर्मों में उसी की गति बन पाती है । अन्यथा बार-बार विचार करने के बाद भी हम उस पथ पर अपने को आगे नहीं ले जा पाते हैं।
जीवन में सुख और शांति की अपेक्षा है तो घर में सत्संग का वातावरण बनाया जाय। घर में सत्संग का वातावरण होगा तो अगली पीढ़ी के बच्चों में वह अवतरित होगा। बच्चे कुसंगति को बहुत जल्दी अंगीकार करते हैं। अगर उन्हें कल कुसंगति से बचाना है तो उन्हें निरंतर सत्संग में गति करानी होगी।
भारत की भूमि देवभूमि है धर्म की भूमि है यहां धर्म का पालन करने वाले ही सदा सुखी रहते हैं और अधर्म पथ पर चलने वाले लोगों को दुख भोगने पड़ते हैं। पूज्य महाराज जी ने कहा कि मनुष्य अपने जीवन में अपनी संपत्ति का उत्तराधिकारी तो तय कर देता है, लेकिन उसने जो परमार्थ कार्य किया है, उसे भी आगे बढ़ाने की कोई व्यवस्था नहीं सोचता है।
महाराज श्री ने कहा कि भगवान की जीव भाव से सेवा करें। उन्हें छोटी सी कटोरी में भोग नहीं लगाएं। इसमें हमारी श्रद्धा का दर्शन होता है। कई लोगों को सांसारिक सामग्री पर तो भरोसा होता लेकिन लोग भगवान पर भरोसा नहीं करते। भगवान के भक्त को कोई कष्ट नहीं होता, बस वह भगवान पर भरोसा रखे और स्मरण करते रहे। लोग चाहते हैं कि भगवान मेरा बन जाएं लेकिन उलझे हुए हैं जगत के संबंधों को साधने में। सांसारिक ऐश्वर्य यहीं रह जाने वाला है साथ केवल भजन, सत्कर्म, यज्ञ एवं पुण्य ही जाएंगे और कुछ साथ नहीं जाने वाला।
हमारी संस्कृति धर्म पर आधारित है जैसे तैसे नहीं चलती है। धर्म और परंपराओं का सब विधि से पालन होना चाहिए और तभी समाज का कल्याण संभव है।
महाराजश्री ने कहा कि मनुष्य अपने परिवार के लोगों के लिए ही जीवन में गलत कार्य करता है धन उपार्जन करने के लिए। लेकिन उसे यह सोचने की आवश्यकता होती है कि कोई दूसरा इसके फल में उसका साथ देने वाला नहीं है फल तो उसको स्वयं अकेले ही खाना पड़ता है।
बेईमानी का संग्रह टिकता नहीं है और ना ही उससे जीवन में कोई सुखी हो पाता है। अगर मनुष्य को जीवन में सुख चाहिए तो वह उसे सिर्फ अपने सत्कर्म से ही प्राप्त हो सकता है अपने परिश्रम से अर्जित धन से जो व्यक्ति अपना जीवन व्यतीत करता है वही सुखी रह पाता है।
महाराज श्री ने कई सुमधुर भजनों से श्रोताओं को भावविभोर कर दिया। बड़ी संख्या में उपस्थित रामकथा के प्रेमी, भजनों का आनन्द लेते हुए झूमते नजर आए।ममता चैरिटेबल ट्रस्ट के संस्थापक अध्यक्ष एवं इस कथा के मुख्य यजमान श्री राजीव मिश्रा ने शुरू में सपरिवार व्यासपीठ का पूजन किया ,सीएमएस की वरिष्ठ प्रिंसिपल मनजीत बत्रा, कल्पना तिवारी एव संगीता बनर्जी ने दीप प्रज्वलन कर महराज जी से आशीर्वचन प्राप्त किया!श्री राम कथा के इस अवसर पर मा. जल शक्ति मंत्री स्वतंत्र देव सिंह,मा.लोक निर्माण मंत्री जितिन प्रसाद,मा. उच्च शिक्षा राज्य मंत्री रजनी तिवारी, मा. बृज बहादुर जी प्रदेश उपाध्यक्ष भाजपा,विधायक योगेश शुक्ला अतिथि के रूप में उपस्थित रहे ! चीफ ट्रस्टी राजीव मिश्रा ने ट्रस्ट परिवार के साथ सभी अतिथियों का अंग वस्त्र और प्रतीक चिन्ह भेंट कर अतिथियों का स्वागत – अभिनंदन किया।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *