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प्रयागराज : कवि-आलोचक डॉ.क्षमाशंकर पांडेय नहीं रहे। एक निजी अस्पताल में इलाज के दौरान बुधवार की दोपहर उन्होंने अंतिम संास ली। दोपहर बाद छतनाग घाट पर उनका अंतिम संस्कार किया गया। दर्जनों पुस्तकों के लेखक डॉ.क्षमा शंकर ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से शिक्षा हासिल करने के बाद काशी हिंदू विश्वविद्यालय से साहित्यकार डॉ.शिव प्रसाद सिंह के निर्देशन में शोध पूरा किया। वह इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में रिसर्च एसोसिएट भी रहे। मिर्जापुर स्थित एक राजकीय महाविद्यालय में हिंदी अध्यापन के दौरान वह एसोसिएट प्रोफ़ेसर होकर रिटायर हुए।
उनकी प्रमुख किताबों में मुक्तिबोध की काव्य भाषा, शताब्दी बदल रही है, उग्र विमर्श, तुलसीदास: एक अध्ययन, नए सवाल मिले, पांय न पांख, भारतीय नारीवाद: स्थिति और संभावना, धूमिल, रामकथा विविध संदर्भ, हर गवाही आपकी, संदर्भ 1857, महिला सशक्तिकरण: उपलब्धियां और भविष्य, हमीरपुर और महोबा जनपदों का फाग, हिंदी का बाज़ार:बाज़ार की हिंदी, 1857 स्मृति और यथार्थ तथा कारागार के अतिरिक्त गांधी का देश, हंसी खो गई है एवं समय संवादी उग्र (यंत्रस्थ) आदि शामिल हैं।
सम्मान-पुरस्कार
- उ.प्र. हिंदी संस्थान का आलोचना के लिए रामचंद्र शुक्ल पुरस्कार
- .हिंदी साहित्य सम्मेलन प्रयाग से साहित्य महोपाध्याय की उपाधि
रचनाकारों ने निधन पर जताया शोक
वरिष्ठ पत्रकार गोपाल रंजन ने कहा, सेवानिवृत्ति के बाद भी वह झूंसी के सरायतकी स्थित मकान में रहकर स्वतंत्र रूप से हिंदी की सेवा में तत्पर थे। साहित्य भंडार के विभोर अग्रवाल ने भी उनके निधन पर दुख व्यक्त करते हुए उन्हें श्रद्धांजलि दी। कहा, साहित्य भंडार से उनकी दो किताबें धूमिल, संदर्भ-1857 प्रकाशित हुई हैं। साहित्यकार रविनंदन सिंह ने कहा, डॉ.क्षमाशंकर का जाना साहित्य जगत पर बज्रपात है। वह नवगीत के सशक्त हस्ताक्षर थे।