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प्रेस सेवा पोर्टल ने डाला प्रकाशकों को विषम परिस्थितियों में
लघु एवं मध्यम समाचार पत्रों को समाप्त करने की योजना
सभी प्रकाशक प्रेस सेवा पोर्टल का करें बहिष्कार
ब्यूरो चीफ आर एल पाण्डेय
लखनऊ। ऑल इंडिया न्यूज़पेपर एसोसिएशन, आईना की महत्वपूर्ण बैठक में संगठन के कार्यो की समीक्षा करते हुए लघु एवं मध्यम समाचार पत्रों पर छाए संकटों पर भी कोर कमेटी ने चिंता व्यक्त करते हुए विचार विमर्श किया। भारत सरकार द्वारा बनाए गए प्रेस सेवा पोर्टल के अंतर्गत नई नियमावली जो बनाई गई है उसमें उन्होंने ऐसे नियम बनाए हैं कि जिसमें छोटे समाचार पत्रों पर इतना शिकंजा कस दिया गया है कि उन नियमों के तहत अहर्ताओं को पूरा करने में कोई भी लघु एवं मध्यम समाचार पत्र के प्रकाशक सक्षम नहीं है।
केंद्र सरकार द्वारा लागू की जाने वाली नई नियमावली के विरोध में आईना ने यह प्रस्ताव रखा की भारत के प्रधानमंत्री और रजिस्ट्रार, RNI, प्रेस इनफॉरमेशन ब्यूरो के साथ-साथ भारत के उन उच्च अधिकारियों और भारत के न्याय तंत्र को पत्राचार के माध्यम से नियमों को शिथिल कराने की मांग आईना संगठन द्वारा की जाएगी। यदि जरूरत पड़ी तो लघु एवं मध्यम समाचार पत्रों के प्रकाशकों और पत्रकार हितों तथा उनके संरक्षण को लेकर काम करने वाले कई संगठनों के माध्यम एवं उनके सहयोग से दिल्ली जन्तर मंतर पर सांकेतिक धरने की रणनीति भी बनाई जाएगी।
इस मौके पर श्यामल त्रिपाठी द्वारा छोटे अखबार सांसत में खबर लगाए जाने का प्रोत्साहन करते हुए जनतंत्र प्राइम भारत समाचार समूह द्वारा प्रतीक चिन्ह भेंट स्वरूप दिया गया।
आईना संगठन का मानना है कि लघु एवं मध्यम समाचार पत्रों के सभी प्रकाशकों को इस प्रेस सेवा पोर्टल का बहिष्कार करना चाहिए। जब तक प्रेस सेवा पोर्टल में वार्षिक विवरण को दाखिल करने में सरलीकरण न कर दिया जाए ।
ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार के इशारे पर भारत के समाचार पत्रों को नई नियमावली के तहत प्रकाशकों को विषम परिस्थितियों में डाल दिया गया है। यह कटु सत्य है कि प्रेस सेवा पोर्टल के माध्यम से समाचार पत्र व पत्रिकाओं को बंद करने का केंद्र सरकार द्वारा कुचक्र रचा गया है।
इन सब प्रकरणों को निस्तारित किए बिना प्रेस सेवा पोर्टल को लागू किया जाना न्याय संगत नहीं है। ज्ञातव्य हो कि प्रेस सेवा पोर्टल में अनेक ऐसे प्राविधान रखे गए हैं, जिन्हें छोटे व मझोले समाचार पत्रों व पत्रिकाओं के प्रकाशकों के द्वारा पूरा किया जाना असंभव है।
वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए सभी प्रकाशकों को एकता के साथ इस सरकारी कुचक्र का कड़ा विरोध करने की जरूरत है।