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खतरनाक तत्वों से बनी होर्डिंग वायुमण्डल में जहर फैला रही है।
(प्रोफे० जी० सी० पाण्डेय, उ० प्र० सरकार द्वारा सरस्वती सम्मान प्राप्त, पर्यावरणविद)
भारत में प्रतिस्पर्धा के चलते, धार्मिक विज्ञापनों एवं स्वयं के प्रोत्साहन हेतु व्यक्ति पूजा, अधिकाधिक संख्या में विज्ञापन का होर्डिंग लगाकर अपना कद बढ़ाने के लिए सार्वजनिक स्थलों पर बैनर-पोस्टर और होर्डिंग लगाने की प्रकिया शहरों से गावों तक पहुंच गयी है। यह दशा शहरों एवं गावों को सिर्फ बदनुमा ही नहीं बल्कि वातावरण में जहर घोलने का काम भी कर रही है; अनभिज्ञ जनता बिना सोचे समझे इसे स्वीकार भी कर रही है।
प्रत्येक राज्य में विज्ञापन सम्बन्धी नियम-कानून हैं जो सिर्फ निर्धारित स्थलों के अतिरिक्त कहीं पर भी प्रदर्शित विज्ञापन सामग्री को प्रतिबंधित करती है परन्तु अनाधिकृत विज्ञापन सामग्री पर कार्यवाही के नाम पर शून्य है। आजकल बढ़ते प्रदर्शन के चलते जन्म दिन, बधाई, शुभकामना, आभार, श्रद्धांजली आदि के लिये होर्डिंग लगाये जा रहे हैं। यह चलन सार्वजनिक उत्पाद की श्रेणी में रखा जाना चाहिए क्योंकि इससे सड़क हादसों के लिए उत्तरदायी तथा सार्वजनकि स्थलों पर गंदगी भी एकत्रित हो रहा है। संदेश के लिए विज्ञापित करने वाली सामग्री कितनी जहरीली होती है, यह लोगों को पता नहीं है जो सम्पूर्ण वातावरण को प्रदूषित करते हैं। प्रयुक्त सामग्री का पुनः उपयोग नहीं होता है तथा इसका निष्पादन भी नहीं हो पाता है। निश्चित तौर पर वायु प्रदूषण का एक प्रमुख कारण बन गया है।
दशहरे पर हमने देखा कि बधाई पटट्, रावण जैसे पुतले बनाने में इस्तेमाल किये जाते हैं उनमें प्रयुक्त किये जाने वाला पी०वी०सी० सामग्री रावण जैसी आसुरी प्रवृत्ति से कम नहीं है। बांस एवं खपच्ची से रावण का ढांचा बनाया जाता है और उसके उपयोग में लाया गया सिन्थेटिक पालीमर, उसकी भराई के लिए उपयोग किया जाता है। इससे खतरनाक डाईआक्सीन वातावरण में मिल जाते हैं जो वातावरण को खराब करते हैं। एक रिपोर्ट के आधार पर पता चला है कि 80% प्रदूषण डाईआक्सीन के लिए पी०वी०सी० ही है। कार्बन श्रंखला का उत्पाद होने के कारण पी०वी०सी० के द्वारा कार्बन उत्सर्जन भी अत्याधिक मात्रा में होता है। उक्त प्रदर्शन सामग्री के अलावा निर्माण में प्रयुक्त रंगो के साथ-साथ विभिन्न तरह के रसायनों का प्रयोग भी किया जाता है जो मानवीय एवं पर्यावरणीय स्वास्थ्य के लिए घातक है।
आजकल स्टार प्लेक्स प्रिंटिंग का चलन, लागत कम होने पर बढ़ा है परन्तु इसका निष्पादन नहीं हो पा रहा है। यदि प्रदर्शित सामग्री का उपयोग जलाने याढकने में नहीं होता है तो वह कचरा डिपो में पहुंच जाता है और प्रदूषण फैलाने का लगातार सिलसिला शुरू हो जाता है।
खुला कचरा वातावरण के लिये अभिशाप है तथा इसके ऊपर उपरोक्त सामग्री एक कैटालिस्ट का काम करती है। यदि यह कचरा घर या आस-पास पहुंच जाता है तो मीथेन जैसी विषैली गैस के बनने में उम्प्रेरक का कार्य करती है। वस्तुस्थिति यह है कि क्या आम जनता की सेहत और पर्यावरण को हानि पहुंचाते हुये बधाई सन्देशों को प्रदर्शित करने की आवश्यकता है। क्या यही शक्ति प्रदर्शन का आधार है? यदि इनके प्रदर्शन पर शुल्क लगता या कोई कार्यवाही होती तो सम्भवतः इन पर अंकुश लग सकता था।
सामाजिक प्रदर्शित विज्ञापनों के उत्पाद को रोकने हेतु शासन द्वारा उचित एवं सामयिक कदम अतिशीघ्र उठाना चाहिए। शासन द्वारा दण्ड, संहितानुसार लगाया जाय अन्यथा यह चलन बढ़ता ही जायेगा जिससे वातावरण अत्याधिक प्रदूषित होता जायेगा। हम स्वस्थ रहेंगे तो देश भी स्वस्थ रहेगा। राष्ट्र समृद्ध होगा।