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5 नवम्बर – श्रीरामचरितमानस की भाव सहित चौपाई
नमो राघवाय 🙏
एहिं जग जामिनि जागहिं जोगी ।
परमारथी प्रपंच बियोगी ।।
जानिअ तबहिं जीव जग जागा
जब सब बिषय बिलास बिरागा ।
होइ बिबेकु मोह भ्रम भागा ।
तब रघुनाथ चरन अनुरागा ।।
( अयोध्याकाण्ड 92/2-3)
राम राम 🙏🙏
वन जाते हुए राम जी श्रृंगवेरपुर पहुँचे हैं , वहाँ निषाद जन आते हैं व वे राम जी को कंद मूल आदि खाने को देते हैं । निषादराज ने रात्रि विश्राम के लिए राम जी को अशोक का वृक्ष दिखाया है वही राम लखन व जानकी ने विश्राम किया है । राम जी को अशोक वृक्ष के नीचे सोता देख निषादराज दुःखी हो जाते हैं तब लक्ष्मण उन्हें समझाते हैं । वे कहते हैं कि इस जगतरूपी रात्रि में योगी लोग जागते हैं जो ईश्वर में लगे हुए हैं और जगत के प्रपंच से छूटे हुए हैं । संसार में सामान्य जीव को तब जगा हुआ जानना चाहिए जब भोग विलास से उसे वैराग्य हो जाए । विवेक होने पर मोह रूपी भ्रम भाग जाता है तब राम चरणों में प्रेम होता है ।
इस संसार में जो ईश्वर में लगा होता है वही जगत के बंधनों से मुक्त होता है , बंधन मुक्त तब मानें जब जगत के भोग बिलास आपको लुभाना बंद कर दें । मोह दूर होने पर जगत के भोग नहीं भाते हैं तब जीव राम जी में लगता है । आपको राम जी लुभाने लगें तब अपने को जगत से छूटा हुआ समझें । अत: राम युक्ति ही जगत मुक्ति है । अथ ! राम राम जय राम राम 🚩🚩🚩
संकलन तरूण जी लखनऊ