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डॉ. बी.आर. अंबेडकर को डॉ. बीरबल झा की श्रद्धांजलि, संविधान मूल्यों पर दिया ज़ोर
पटना, 14 अप्रैल 2025 — अंबेडकर जयंती के अवसर पर “भारतीय संविधान: आदर्श और डॉ. भीमराव अंबेडकर का योगदान” विषय पर एक संगोष्ठी आयोजित हुई, जिसमें ब्रिटिश लिंगुआ के संस्थापक, अंग्रेज़ी साहित्यकार, सुप्रसिद्ध लेखक और समाजसेवी डॉ. बीरबल झा ने डॉ. अंबेडकर की विरासत और संविधान की महत्ता पर प्रेरणादायक भाषण दिया।
डॉ. झा ने डॉ. अंबेडकर को एक दूरदर्शी नेता और आधुनिक भारत के संविधान के प्रधान शिल्पकार के रूप में स्मरण किया। उन्होंने बताया कि कैसे बाबासाहेब ने सामाजिक भेदभाव को मात देकर वंचितों के अधिकारों की पैरवी की और एक समावेशी व न्यायपूर्ण भारत की नींव रखी।
भारतीय संविधान पर बोलते हुए डॉ. झा ने उसके मूल सिद्धांतों—न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व—को रेखांकित किया, जो प्रस्तावना में निहित हैं। उन्होंने मौलिक अधिकारों, नीति-निर्देशक तत्वों और मूल कर्तव्यों को लोकतंत्र की संरचना में परिवर्तनकारी बताया।
डॉ. अंबेडकर को उद्धृत करते हुए उन्होंने कहा, “राजनीतिक लोकतंत्र तब तक टिक नहीं सकता जब तक उसके आधार में सामाजिक लोकतंत्र न हो,” और लोकतांत्रिक आदर्शों को जीवन के हर क्षेत्र में लागू करने की आवश्यकता पर बल दिया।
डॉ. झा ने डॉ. अंबेडकर के अंग्रेज़ी शिक्षा के पक्ष में विचारों को भी सामने रखा, जिसे उन्होंने शोषित वर्गों के सशक्तिकरण का माध्यम माना। “शिक्षा के बिना स्वतंत्रता निरर्थक है,” अंबेडकर ने कहा था—जिसे डॉ. झा ने भी दोहराते हुए भाषा को गरिमा, अवसर और सामाजिक उत्थान का माध्यम बताया।
समकालीन चुनौतियों की चर्चा करते हुए डॉ. झा ने संवैधानिक जागरूकता और सामाजिक एकता की अपील की, तथा नागरिकों से लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा करने का आह्वान किया।
ब्रिटिश लिंगुआ के माध्यम से डॉ. झा निरंतर शैक्षिक और सांस्कृतिक सशक्तिकरण के लिए कार्य कर रहे हैं। समापन में उन्होंने बाबासाहेब के आह्वान “शिक्षित बनो, संघर्ष करो, संगठित हो” को दोहराया और विकसित भारत की दिशा में बढ़ने का संकल्प लिया—एक ऐसा भारत जो संविधान के आदर्शों पर आधारित हो।
संगोष्ठी का समापन संविधान की वर्तमान प्रासंगिकता पर जीवंत चर्चा के साथ हुआ।