आजादी की 75वी वर्षगाँठ पर छलका शहीद परिवार का दर्द

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राज्य सरकार की बेरुखी रवैये से शहीद परिवार ने जताई नाराजगी

केराकत /

भारत की उर्वरा मिट्टी में अनेकों क्रान्तिकारियों ने‌ जन्म लिया जिन्होंने अपनी वीरता के बल पर देश‌ का नाम रोशन किया और समय आने पर अपने प्राणों की आहुति भी दी और इतिहास में अमर हो गए । जिनका इतिहास नहीं बन सका उन्हें हमारे समाज ने भुला दिया । भारत के पूर्वांचल में स्थित जौनपुर जिला मुख्यालय से 37 किलोमीटर पूर्व तहसील केराकत के अंतर्गत भौरा ग्राम निवासी सीआरपीएफ जवान शहीद संजय सिंह पुत्र श्याम नारायण सिंह 25 जून, 2016 को कश्मीर के पंम्पोर में पाकिस्तान द्वारा किए गए कायराना हमलें में अपनी शहादत देकर शहीदों के इतिहास में अमर हो गए । शहीद संजय सिंह का‌ पार्थिव शरीर जब तिरंगे में लिपटा भौरा गांव में आया तो शहीद के अंतिम दर्शन के लिए जनसैलाब उमड़ पड़ा । लोगों ने नम आंखों से शहीद को विदाई दी। देश के सैनिकों की शहादत के समय राजनेता और जनप्रतिनिधि शहादत की राजनीति करण करने के लिए तो पहुंच जाते हैं लेकिन उसके बाद उनका रवैया उदासीन हो जाता है । खुद को समाज का प्रतिनिधि और परम हितैषी बताने वाले नेता और जनप्रतिनिधि आते हैं , बड़े—बड़े वादे करते हैं और फिर लुप्त हो जाते हैं । शहीद संजय सिंह के पिता श्याम नारायण सिंह के अनुसार संजय सिंह के शहादत के समय तत्कालीन सांसद रामचरित्र निषाद ने शहीद की पत्नी के नाम पर पेट्रोल पंप या नौकरी दिलाने का वादा किया था पर दुर्भाग्य यह रहा कि कि आज चार साल का एक लंबा समय गुजर जाने के बाद भी प्रशासन द्वारा कोई सार्थक परिणाम नहीं निकला। श्याम नारायण सिंह के अनुसार शहीद संजय सिंह के नाम तालाब का नामकरण, मार्ग का नामकरण व मूर्ति की स्थापना होनी थी जो अभी तक नही हो पाया! गांव के के रास्ते पर प्रस्तावित प्रवेश द्वार पर अभी तक कोई निर्णय नहीं लिया गया । इस संबंध में शहीद के परिजनों ने तहसील से लेकर जिले तक ज्ञापन दिए लेकिन उनके प्रयास का परिणाम शून्य रहा । शासन-प्रशासन और जनप्रतिनिधियों की तरफ से किसी भी प्रकार की कोई पहल नहीं की गई। श्याम नारायण सिंह अपने शहीद बेटे के सम्मान के लिए पिछले चार सालों से तहसील प्रशासन से लेकर जिला प्रशासन तक का चक्कर काट‌ चुके हैं लेकिन उनकी आवाज को सुनने वाला कोई नहीं है ।‌ स्थानीय प्रशासन और जनप्रतिनिधियों द्वारा स्मृति शेष शहीद संजय सिंह का अपमान करना करना बेहद संवेदनशील है ।
यह अत्यंत विचारणीय प्रश्न है कि देश के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले शहीदों को उनको उचित सम्मान क्यों नहीं दिया जाता ? 15 अगस्त और 26 जनवरी को बड़े शान और उत्साह से तिरंगा फहरा कर यह संकल्प लेते हैं कि देश और समाज की सेवा तन-मन से करेंगे ।‌ सरकार बड़ी-बड़ी योजनाओं की घोषणा कर यह सन्देश देती है कि वह अपने वीर योद्धाओं के लिए आवश्यक कदम उठाएगी । सांसद , विधायक , विधान परिषद सदस्य और जिला पंचायत अध्यक्ष के अलावा स्थानीय शासन-प्रशासन का यह दायित्व बनता कि वे अपने क्षेत्र के ऐसे सपूतों का उचित सम्मान करे जिन्होंने ने देश के लिये बलिदान दिए।अगर जनप्रतिनिधि अपने क्षेत्रीय बजट का एक छोटा सा हिस्सा भी ऐसे पुनित कार्यों के लिए खर्च करें तो भी बेहतर होगा शहीद के घर तक अभी तक आरसीसी रोड़ ना बनाना दुर्भाग्यपूर्ण है!साल में दो बार जिले पर बुलाकर सम्मान पत्र देने मात्र से शहीद परिवार को सम्मान नही मिलता है! जरूरत है शहीद को सम्मान और उचित स्थान देने की। शहीद परिवार शहीद संजय फाउंडेशन बना कर गरीब व असहाय लोगों की मदद कर रहा है जिसकी क्षेत्र में चर्चा का विषय बना रहता है!

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