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11 दिसंबर – श्रीरामचरितमानस,
नमो राघवाय !! 🙏
धर्महीन प्रभु पद बिमुख
काल बिबस दससीस ।
तेहि परिहरि गुन आए
सुनहु कोसलाधीस ।।
( लंकाकांड , दो. 38 )
राम राम 🙏🙏
अंगद जी रावण का मान मर्दन कर लंका से लौट आए हैं । राम जी उनसे पूछते हैं कि आपने उसके मुकुट कैसे फेंकें , आपने उसे कैसे पाया? अंगद जी कहते हैं कि वे मुकुट नहीं राजा के धर्म गुण हैं । रावण में उन गुणों का अभाव हो गया है , रावण धर्महीन, प्रभु पद विमुख तथा काल के वश में है । इसलिए वे गुण रावण को छोड़कर आपके पास आ गये हैं ।
धर्म धारण सबसे बड़ा गुण व बल है । जो भी धर्महीन है वह बलहीन हो जाता है । बलहीन ब्यक्ति सदा नाश के आसन्न रहता है । अपने को नष्ट होने से बचाना है तो धर्ममय जीवन जीएँ तथा प्रभु पद में प्रेम करें । राम जी धर्म हैं । अस्तु राम धारण करें तथा राम पद के प्रेमी बनें । अथ ! जय राम , जय राम , जय जय राम 🚩🚩🚩
संकलन तरुण जी लखनऊ